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सोहैल रिज़वी की कविता ‘अगर शब्द न होते’

सोहैल रिज़वी की कविता ‘अगर शब्द न होते’

सुहैल रिज़वी कवि, कथाकार और रंगकर्मी हैं। समय-समय पर ये देश के अलग-अलग हिस्सों में नाट्य मंचन करते रहे हैं। इन्होंने अपनी उच्च शिक्षण की डिग्री जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली से हासिल की है। फिलहाल, 'जोश टॉक' में बतौर डायरेक्टर एवं स्क्रिप्ट राइटर कार्यरत हैं। इनका ज़्यादातर लेखन कार्य समाज के उस तबके को समर्पित है जिसको हम आम आदमी बोलते है। सुबह को टिफिन लेकर जाने और शाम को खाली टिफिन लेकर लौटने वाले व्यक्ति जिनका पूरा जीवन इन दो धूरियों के बीच गुजरता है।

FEATURED STORIES

जयंती विशेष: समय की सलीबों पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’

जयंती विशेष: समय की सलीबों पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’

मौजूदा समय में दिनकर की ‛राष्ट्रवाद’ संबंधी समझ को दृढ़ता के साथ रेखांकित करने की जरूरत है क्योंकि हिंदुत्ववादी शक्तियां उनकी राष्ट्रीय भावों की ओजपूर्ण कविताओं के सहारे अपने अंधराष्ट्रवाद के अभियान को साधना चाहती हैं। यह अकारण नहीं है कि हिमालय के शिखरों पर चढ़कर उनकी कविताओं के ‛आलाप’ किए जा रहे हैं। ऐसा संभवतः इसलिए किया जा रहा...

अमृता प्रीतम के जन्मदिन पर पढ़ें उनकी पंजाबी कहानी: यह कहानी नहीं

अमृता प्रीतम के जन्मदिन पर पढ़ें उनकी पंजाबी कहानी: यह कहानी नहीं

पत्थर और चूना बहुत था, लेकिन अगर थोड़ी-सी जगह पर दीवार की तरह उभरकर खड़ा हो जाता, तो घर की दीवारें बन सकता था। पर बना नहीं। वह धरती पर फैल गया, सड़कों की तरह और वे दोनों तमाम उम्र उन सड़कों पर चलते रहे….। सड़कें, एक-दूसरे के पहलू से भी फटती हैं, एक-दूसरे के शरीर को चीरकर भी गुज़रती...

पुस्तक समीक्षा ❙ बर्नियर की भारत यात्रा : सत्रहवीं सदी का भारत

पुस्तक समीक्षा ❙ बर्नियर की भारत यात्रा : सत्रहवीं सदी का भारत

प्रसिद्ध यात्री फ्रांस्वा बर्नियर फ्रांस का निवासी था। पेशे से चिकित्सक बर्नियर 1656 से 1668 तक भारत में रहा। इस समय वृहत्तर भारत के अधिकांश क्षेत्रों में मुगलों का शासन था जिसमें अत्यधिक उथल-पुथल मचा था। शाहजहाँ के अस्वस्थ होने से उसके पुत्रों के बीच सत्ता प्राप्ति के लिए संघर्ष शुरू हो गया था। शाहजहाँ के चारो पुत्रों दारा शिकोह,...

साहित्य में नायक की पारंपरिक अवधारणा बदल दी प्रेमचंद ने

साहित्य में नायक की पारंपरिक अवधारणा बदल दी प्रेमचंद ने

मुझे पिछले वर्ष भी हाजीपुर के इस गांधी आश्रम में आने का मौका मिला था। हाजीपुर की सबसे अच्छी बात ये है कि यहां हमेशा प्रेमंचद जयंती दो तीन दिनों के बाद मनाई जाती है। वैसे भी 31 जुलाई को हर जगह प्रेमचंद जयंती कार्यक्रमों की धूम मची रहती है। पूरे बिहार में छोटी-छोटी जगहों, कस्बों व विश्वविद्यालयों में इतनी...

विचारधारा का अंत और प्रेमचंद की विचारधारा

विचारधारा का अंत और प्रेमचंद की विचारधारा

प्रेमचंद निर्विवाद रूप से आज भी हिंदी के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले व लोकप्रिय लेखक हैं। परंतु इधर, कुछ वर्षों में उन्हें लेकर विवाद भी बहुत बढ़े हैं। हिंदी में जब से विमर्शों का दौर शुरू हुआ है, तब से प्रेमचंद को विमर्शों के केंद्र में लाया गया है। विमर्शों में प्रेमचंद विवादित हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें लेकर...

डॉ. मुकुन्द रविदास की तीन कविताएं: विधवा की बेटी, लोग और उसी कमरे में

डॉ. मुकुन्द रविदास की तीन कविताएं: विधवा की बेटी, लोग और उसी कमरे में

विधवा की बेटी जीर्ण-शीर्ण वस्त्र सेलिपटी गुड़ियाबहुत सुंदर दिखती है। पड़ोसी घर खटती-पिटती ‘माँ’वह गुड्डा-गुड़िया खेलती हैरात को माँ से लिपट करखटिया में सोयी रहती है। दिन में खेत को जातीरात में शौच को निकलती हैउठवा लो एक दिनहवस का शिकारबना लोतन-मन कर दोजीर्ण-शीर्णबहुत सुंदर दिखती है। एक नहीं दो-चारबुला लोकोई हाथ पकड़ लोकोई पैर दबा लोचिखेगी-चिल्लाएगीमुँह में डाल दो...

विनोद कुमार राज ‘विद्रोही’ की 3 कविता: भेड़िए, सवाल और मेरी कविताएं

विनोद कुमार राज ‘विद्रोही’ की 3 कविता: भेड़िए, सवाल और मेरी कविताएं

भेड़िए भेड़िए-तुम फिर आनाबार-बार आनादबोच कर ले जानायहां का नूरयहां की महकयहां की नमींयहां की जन्नतपेड़, पहाड़, जंगल, झरनानदी, नाला, पनघट सब ले जानापसंद की पनिहारनियों को भी ले जाना। भेड़िए-तुम फिर आनाले जाना दबोच करयहां के लोकगीतयहां के लोकनृत्ययहां की संपदा, खान-खनिजधर्म, वेद, पुराण, शास्त्र, सब ले जानालोगों का मन, मस्तिष्क, ईमान सब ले जाना भेड़िए-तुम फिर आनाअबकी बारबदल...

भीष्म साहनी के कथाकर्म में साम्प्रदायिकता

भीष्म साहनी के कथाकर्म में साम्प्रदायिकता

किसी भी समाज को समझने में उस वक्त का साहित्य और उसका इतिहास मदद करते हैं। भीष्म साहनी के साहित्य की पड़ताल करने पर भी हमें समाज का एक चेहरा दिखाई पड़ता है। आज के पर्चे के विषय के बहाने, भीष्म जी के साहित्य के बहाने हम उनके वक्त के समाज की पड़ताल करेंगे, जिन जख्मों की लीपापोती हो चुकी...

भारतीय रेल: बिंब प्रतिबिंब

भारतीय रेल: बिंब प्रतिबिंब

अंग्रेजी की इस किताब का नाम है ‘द बॉय हू लव्ड ट्रेन’। दीपक सपरा ने रेलवे की मैकनिकल डिपार्टमेंट में एक अधिकारी के रूप में नौकरी शुरू की स्पेशल क्लास रेलवे अप्रेंटिस परीक्षा के तहत। आपको बता दें प्रतिवर्ष इस परीक्षा में मुश्किल से 20 बच्चे 12वीं के बाद संघ लोक सेवा आयोग द्वारा चुने जाते हैं। आईआईटी परीक्षा से...

पुस्तक समीक्षा  ▏  एक गोंड गांव में जीवन: वेरियर एल्विन

पुस्तक समीक्षा ▏ एक गोंड गांव में जीवन: वेरियर एल्विन

भारतीय जनजातियों पर शोध करने वाले मानवशास्त्रियों में वेरियर एल्विन (1902-64) का विशिष्ट स्थान है। वे काफी लोकप्रिय हुए और कई मामलों में विवादास्पद भी रहें। मुरिया जनजाति पर उनका शोध ‘मुरिया एंड देयर घोटुल’ विश्व स्तर पर चर्चित हुआ। उनकी पद्धति से कुछ लोगों को असहमति भी रही है, खासकर ‘काम’ सम्बन्धों के नियमन के उनके चित्रण को लेकर।...

विनोद कुमार राज ‘विद्रोही’ की 3 कविताएं: भूख का इतिहास, आओ बचाएं और गांव की औरतें

विनोद कुमार राज ‘विद्रोही’ की 3 कविताएं: भूख का इतिहास, आओ बचाएं और गांव की औरतें

भूख का इतिहास चलो-शिनाख्त करते हैंभूख कोकैसा होता है उसका रूपकैसा होता है उसका रंगकैसी होती है उसकी महककैसी होती है उसकी प्रतिबद्धताकैसी होती है उसकी वैचारिकताक्या वह दिखता है पिज्जा-बर्गर की तरहक्या वह दिखता है माड़-भात की तरहक्या वह दिखता है रोटी-साग की तरहकहां रहता है वहक्या भिखारियों के कटोरे मेंक्या झोपड़ियों के कोने मेंक्या हवेलियों के बड़े से...

पुस्तक समीक्षा: विनोद कुमार राज ‘विद्रोही’ की पुस्तक ‘जी साहेब जोहार’

पुस्तक समीक्षा: विनोद कुमार राज ‘विद्रोही’ की पुस्तक ‘जी साहेब जोहार’

विनोद कुमार राज ‘विद्रोही’ की पुस्तक ‘जी साहेब जोहार‘ रश्मि प्रकाशन लखनऊ से प्रकाशित हुई है। यह पुस्तक आते ही खूब सुर्खियां बटोर रही है। ऐसे तो कइयों ने इस पुस्तक की समीक्षा की है। किंतु हम यहां झारखंड के जाने-माने कवि, लेखक विजय कुमार संदेश, शंभु बादल और भारत यायावर की समीक्षा प्रकाशित कर रहे हैं। अपने समय का...

नीरजा हेमेन्द्र की कविताएं: अम्मा सहेजती है भरी दुपहरी से

नीरजा हेमेन्द्र की कविताएं: अम्मा सहेजती है भरी दुपहरी से

[नीरजा हेमेन्द्र मुख्य रूप से शिक्षिका हैं। लेखन के अलावा अभिनय, रंगमंच, पेन्टिंग एवं सामाजिक गतिविधियों में रुचि रखती हैं। इनकी ‘अमलतास के फूल ’, ‘जी हाँ, मैं लेखिका हूँ’ जैसी आधा दर्जन से अधिक कहानी संग्रह और साथ ही ‘अपने-अपने इन्द्रधनुष’ और ‘उन्हीं रास्तों पर गुज़ते हुए’ उपन्यास शामिल हैं। इनकी कई कविता संग्रह भी आ चुकी है। कई...

नीलोत्पल रमेश की कविताएं: हम नहीं चाहते जंग, हम शांति के पुजारी हैं

नीलोत्पल रमेश की कविताएं: हम नहीं चाहते जंग, हम शांति के पुजारी हैं

[नीलोत्पल रमेश बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति हैं। प्रकृति से खास लगाव रखते हैं। यही कारण है कि इनकी कहानी हो या कविता उसमें प्रकृति का साफ चित्रण दिखता है। इनकी कविता, कहानी, समीक्षा कई पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशित होती रही है। नीलोत्पल रमेश की कविताएं यहां प्रकाशित कर रहे हैं।] हम नहीं चाहते जंग हम नहीं चाहते जंगहम शांति के...

गुलरेज़ शहजाद की कविताएं: ताश के पत्तों की तरह फेंटते रहे मुझे लम्हे

गुलरेज़ शहजाद की कविताएं: ताश के पत्तों की तरह फेंटते रहे मुझे लम्हे

[गुलरेज़ शहजाद उर्दू, हिंदी और भोजपुरी काव्य साहित्य का एक परिचित नाम है। इनकी नज़्मों, कविताओं और ग़ज़लों में कसक, दर्द, पीड़ा, ताप-संताप के साथ रुमानियत भी है और समय के बनते-बिगड़ते स्वरूप का वास्तविक चेहरा भी है। अभी तक उर्दू, हिंदी और भोजपुरी में आपकी छह कृतियाँ पुस्तक रूप में प्रकाशित हो चुकी हैं। साहित्य-संस्कृति के साथ सिनेमा से...

जागृति सौरभ की लघुकथा: मुस्कान

जागृति सौरभ की लघुकथा: मुस्कान

शाम का वक़्त था। हर दिन की तरह उस दिन भी मैं खामोश सड़कों को देख रही थी। ज़िन्दगी में जैसे रंगों की तलाश में नज़रे यहाँ से वहाँ घूम रही थी। घर में सन्नटा पसरा था। शाम के करीब पाँच बज रहे थे। सब अपने-अपने कामों में व्यस्त थे। मेरा भी लगभग काम हो गया था इसलिए बॉलकनी में...

नीलोत्पल रमेश की दो कविताएं: गोरी तेरे ठाँव और प्रकृति के आँचल में

नीलोत्पल रमेश की दो कविताएं: गोरी तेरे ठाँव और प्रकृति के आँचल में

[नीलोत्पल रमेश बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति हैं। प्रकृति से खास लगाव रखते हैं। यही कारण है कि इनकी कहानी हो या कविता उसमें प्रकृति का साफ चित्रण दिखता है। इनकी कविता, कहानी, समीक्षा कई पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशित होती रही है। नीलोत्पल रमेश की दो कविताएं यहां प्रकाशित कर रहे हैं।] गोरी तेरे ठाँव कोयल कूकेगोरी चहकेऔर महुए सेआ रही...

फहीम अहमद की दो कविताएं: मैं कहता था कि अनगिनत सदियाँ बंध आई थी हमारे बीच

फहीम अहमद की दो कविताएं: मैं कहता था कि अनगिनत सदियाँ बंध आई थी हमारे बीच

साहित्य से गहरा अनुराग रखने वाले बेहद प्रतिभाशाली फहीम अहमद ने अभी-अभी कविता लिखना प्रारंभ किया है। इनकी शुरुआती कविता में ही सुघड़ता है। इनकी कविताओं में भावना और विचार का गज़ब का संतुलन है। हमें आशा है, समूची दुनिया में गहन निराशा और डर से भरे माहौल के बीच फहीम की लेखनी एक उम्मीद की लौ जलाने का काम...

आदिवासी दुनिया और रमणिका गुप्ता की कविताएं

आदिवासी दुनिया और रमणिका गुप्ता की कविताएं

आदिवासी साहित्य पर विचार करते वक्त एक नाम जो सबसे पहले जेहन में आता है वह नाम हैं रमणिका गुप्ता। उन्होंने आदिवासी साहित्य के उत्थान और प्रसार में अपना समूचा जीवन समर्पित कर दिया। हाशिए के समाज के लिए प्रतिबद्ध पत्रिका ‘युद्धरत आम आदमी’ के माध्यम से उन्होंने आदिवासी साहित्य को भरपूर स्पेस दिया। आज यह पत्रिका आदिवासी विमर्श के...

कुमार मुकुल की कविता: मृत्यु सूक्त

कुमार मुकुल की कविता: मृत्यु सूक्त

[पेशे से पत्रकार और मूलत: कवि कुमार मुकुल के अब तक तीन कविता-संग्रह प्रकाशित हुए हैं। प्रभात प्रकाशन से ‘डाक्टर लोहिया और उनका जीवन-दर्शन’ (2012) नामक किताब प्रकाशित। ‘अंधेरे में कविता के रंग’ (2012) शीर्षक से एक आलोचना की पुस्‍तक और ‘सोनूबीती-एक ब्‍लड कैंसर सर्वाइवर की कहानी’ (2015) का प्रकाशन। विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में राजनीतिक-सामाजिक विषयों पर प्रचुर लेखन। कुछ...

इंटरव्यू: जीवन से सीधा और सधा हुआ साक्षात्कार है त्रिलोचन का काव्य

इंटरव्यू: जीवन से सीधा और सधा हुआ साक्षात्कार है त्रिलोचन का काव्य

त्रिलोचन हिंदी की प्रगतिशील काव्य-धारा के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कवियों में हैं। उनकी कविताओं में लोक-जीवन की अभिव्यक्ति हुई है। वे सामान्य जन के कवि हैं। उन्होंने स्वयं लिखा है- उस जनपद का कवि हूँ जो भूखा है दूखा है कला नहीं जानता…। आलोचकों ने त्रिलोचन को लोकजीवन से जुड़ा मानने के साथ ही शास्त्रीय परम्परा का भी कवि माना है।...

नोबल पुरस्कार से सम्मानित पोलिश कवयित्री विस्लावा शिम्बोर्स्का की कविता: हमारे दौर के बच्चे

नोबल पुरस्कार से सम्मानित पोलिश कवयित्री विस्लावा शिम्बोर्स्का की कविता: हमारे दौर के बच्चे

हम इस दौर के बच्चे हैंइस सियासी दौर के दिन भर और फिर पूरी रातमेरी, तेरी, उसकी बात-सब-महज एक राजनीतिक मसला है। तुम्हें पसंद आए या न आएलेकिन तुम्हारे खून का एक राजनीतिक इतिहास हैतुम्हारी त्वचा, एक सियासी साँचे से गढ़ी हुई हैऔर तुम्हारी आंखें एक सियासी निगाह हैं तुम जो भी कहते होगूँजता रहता है बार बारतुम्हारी चुप्पियाँ बोलती...

गजेन्द्र रावत की कहानी: धोखेबाज़

गजेन्द्र रावत की कहानी: धोखेबाज़

सीन ही बदल गया। सारी मस्ती धरी रह गई। काली के तिपहिए से निकली लोहे की छड़, कायदे से जिस पर आईना लगा होना था, अचानक प्रकट हुए दुपहिये पर पीछे बैठे हवलदार के कान से छूकर चली गई। कान बुरी तरह लहूलुहान हो गया। दुपहिये पर पुलिस के सिपाही को देख काली के शरीर में झुरझुरी पैदा हो गई...

जयन्ती विशेष: एक मौलाना हसरत मोहानी भी थे!

जयन्ती विशेष: एक मौलाना हसरत मोहानी भी थे!

पाकिस्तान के करांची शहर में हसरत मोहानी नाम की एक बड़ी कॉलोनी है। वहाँ हसरत मोहानी नाम से एक बड़ी सड़क भी है। करांची में ही एक हसरत मोहानी मेमोरियल सोसाइटी है और एक हसरत मोहानी मेमोरियल लाइब्रेरी भी है।