समाजवाद को एक नई दिशा देने वाले डॉ. राममनोहर लोहिया ताउम्र अन्याय के खिलाफ लड़ते रहे। वे जातिवाद की तल्ख मुखालफ़त करते थे। डॉ. लोहिया का मानना था कि भारत के गुलाम होने का मुख्य कारण जातिवाद है। जाति के प्रति लोहिया के 60 वर्ष पुराने विचारों और लेखों को, ‘जाति प्रथा’ नामक किताब के...
Category: <span>लिटरेचर</span>
सोहैल रिज़वी की कविता ‘अगर शब्द न होते’
सुहैल रिज़वी कवि, कथाकार और रंगकर्मी हैं। समय-समय पर ये देश के अलग-अलग हिस्सों में नाट्य मंचन करते रहे हैं। इन्होंने अपनी उच्च शिक्षण की डिग्री जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली से हासिल की है। फिलहाल, 'जोश टॉक' में बतौर डायरेक्टर एवं स्क्रिप्ट राइटर कार्यरत हैं। इनका ज़्यादातर लेखन कार्य समाज के उस तबके को समर्पित है जिसको हम आम आदमी बोलते है। सुबह को टिफिन लेकर जाने और शाम को खाली टिफिन लेकर लौटने वाले व्यक्ति जिनका पूरा जीवन इन दो धूरियों के बीच गुजरता है।
निर्मल वर्मा: प्रेमचंद की उपस्थिति के बहाने अनुपस्थिति ढूंढने की कवायद
प्रेमचंद पर लिखित बहुत सारी पुस्तकों-निबंधों को पढ़ते हुए पिछले कुछ वर्षों में निर्मल वर्मा द्वारा प्रेमचंद पर लिखे गए इस निबंध के शीर्षक ने मुझे जितना आकर्षित किया शायद उतना किसी भी शीर्षक ने नहीं। निर्मल वर्मा ने अपने लेख का शीर्षक रखा है ‘प्रेमचंद की उपस्थिति’। एक साहित्यिक अध्येता के रूप में हर...
युवा कवि गोलेन्द्र पटेल की आठ कविताएँ
युवा कवि गोलेन्द्र पटेल कविता के साथ-साथ नवगीत, कहानी, निबंध और नाटक जैसी विधाओं से भी जुड़े रहे हैं। लंबे समय से इनकी रचनाएँ ‘प्राची’, ‘बहुमत’, ‘आजकल’, ‘साखी’, ‘वागर्थ’, ‘काव्य प्रहर’, ‘जन-आकांक्षा’, ‘समकालीन त्रिवेणी’, ‘पाखी’, ‘सबलोग’ जैसी पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होती रही हैं। इन्हें अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय की ओर से ‘प्रथम सुब्रह्मण्यम...
युद्ध और शांति पर बर्टोल्ट ब्रेख्त की आठ कविताएं
भूखों की रोटी भूखों की रोटी हड़प ली गई हैभूल चुका है आदमी मांस की शिनाख्तव्यर्थ ही भुला दिया गया है जनता का पसीना।जय पत्रों के कुंज हो चुके हैं साफ।गोला बारूद के कारखानों की चिमनियों सेउठता है धुआं। लड़ाई का कारोबार एक घाटी पाट दी गई हैऔर बना दी गई है एक खाई। युद्ध...
सआदत हसन मंटो की कहानी ‘टोबाटेक सिंह’
बटवारे के दो-तीन साल बाद पाकिस्तान और हिंदोस्तान की हुकूमतों को ख़्याल आया कि अख़लाक़ी क़ैदियों की तरह पागलों का तबादला भी होना चाहिए यानी जो मुसलमान पागल, हिंदोस्तान के पागलख़ानों में हैं उन्हें पाकिस्तान पहुंचा दिया जाये और जो हिंदू और सिख, पाकिस्तान के पागलख़ानों में हैं उन्हें हिंदोस्तान के हवाले कर दिया जाये।...
गोपाल राम गहमरी की कहानी: गुप्तकथा
पहली झाँकी जासूसी जान पहचान भी एक निराले ही ढंग की होती है। हैदर चिराग अली नाम के एक धनी मुसलमान सौदागर का बेटा था। उससे जासूस की गहरी मिताई थी। उमर में जासूस से हैदर चार पाँच बरस कम ही होगा, लेकिन शरीर से दोनों एक ही उमर के दीखते थे। मुसलमान होने पर...
मन्नू भंडारी की कहानी- स्त्री सुबोधिनी
प्यारी बहनो, न तो मैं कोई विचारक हूँ, न प्रचारक, न लेखक, न शिक्षक। मैं तो एक बड़ी मामूली-सी नौकरीपेशा घरेलू औरत हूँ, जो अपनी उम्र के बयालीस साल पार कर चुकी है। लेकिन उस उम्र तक आते-आते जिन स्थितियों से मैं गुजरी हूँ, जैसा अहम अनुभव मैंने पाया… चाहती हूँ, बिना किसी लाग-लपेट के...
ख़्वाजा अहमद अब्बास की कहानी: दिवाली के तीन दीये
पहला दीया दीवाली का ये दीया कोई मामूली दीया नहीं था। दीये की शक्ल का बहुत बड़ा बिजली का लैम्प था। जो सेठ लक्ष्मी दास के महलनुमा घर के सामने के बरामदे में लगा हुआ था। बीच में ये दीयों का सम्राट दीया था और जैसे सूरज के इर्द-गिर्द अन-गिनत सितारे हैं, इसी तरह इस...
अली सरदार जारी की कहानी: चेहरु माँझी
हवा बहुत धीमे सुरों में गा रही थी, दरिया का पानी आहिस्ता-आहिस्ता गुनगुना रहा था। थोड़ी देर पहले ये नग़्मा बड़ा पुर-शोर था लेकिन अब उसकी तानें मद्धम पड़ चुकी थीं और एक नर्म-ओ-लतीफ़ गुनगुनाहट बाक़ी रह गई थी। वो लहरें जो पहले साहिल से जा कर टकरा रही थीं, अब अपने सय्याल हाथों से...