नोबल पुरस्कार से सम्मानित पोलिश कवयित्री विस्लावा शिम्बोर्स्का की कविता: हमारे दौर के बच्चे

नोबल पुरस्कार से सम्मानित पोलिश कवयित्री विस्लावा शिम्बोर्स्का की कविता: हमारे दौर के बच्चे

म इस दौर के बच्चे हैं
इस सियासी दौर के

दिन भर और फिर पूरी रात
मेरी, तेरी, उसकी बात-
सब-महज एक राजनीतिक मसला है।

तुम्हें पसंद आए या न आए
लेकिन तुम्हारे खून का एक राजनीतिक इतिहास है
तुम्हारी त्वचा, एक सियासी साँचे से गढ़ी हुई है
और तुम्हारी आंखें एक सियासी निगाह हैं

तुम जो भी कहते हो
गूँजता रहता है बार बार
तुम्हारी चुप्पियाँ बोलती रहती हैं
खुद-ब-खुद
चाहे किसी तौर देखो
तुम सिर्फ राजनीति बतिया रहे हो

यहाँ तक कि जंगल की तरफ
जो तुम जा रहे हो
दरअसल वह सियासी ज़मीन पर
की गई एक राजनीतिक पहल है

जिन कविताओं में नहीं की गई
राजनीति पर कोई भी बात
वे भी सियासी कविताएँ ही थीं

देखो इस चमकते पीले माहताब को
जानते हो
अब यह खालिस चाँद नहीं रहा

सवाल यह है कि
रहें कि न रहें
चाहे यह हाजमा बिगाड़ देने वाला सवाल है
लेकिन यह हमेशा से एक सियासी सवाल है

कोई राजनीतिक अर्थ पाने के लिए
अब तो तुम्हें कोई इंसान होने की भी जरुरत नहीं रही
बस थोड़े कच्चे माल की जरूरत है
जैसे कच्चा तेल
या प्रोटीन के थोड़े से पैकेट
या बस एक टेबल
जिसके आकार-प्रकार पर
महीनों चर्चा चली
कि जिंदगी और मौत के बीच
मध्यस्थता हम कहाँ करें
गोल टेबल पर या चौकोर टेबल पर

बहरहाल
लोग मिट गए
मवेशी मर गए
तहस नहस कर दिए गए खेत
जैसा कि बरसों बरस से होता आया है
थोड़े कम सियासी सालों में भी।

(विस्लावा शिम्बोर्स्का के इस कविता का अनुवाद सत्यार्थ अनिरुद्ध ने किया है)

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