[नीलोत्पल रमेश बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति हैं। प्रकृति से खास लगाव रखते हैं। यही कारण है कि इनकी कहानी हो या कविता उसमें प्रकृति का साफ चित्रण दिखता है। इनकी कविता, कहानी, समीक्षा कई पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशित होती रही है। नीलोत्पल रमेश की कविताएं यहां प्रकाशित कर रहे हैं।]
हम नहीं चाहते जंग
हम नहीं चाहते जंग
हम शांति के पुजारी हैं
मीठी बातें जो कहता है
वह तलवार दुधारी है
हम हैं संतान उनके
जिनके रग-रग में अहिंसा है
महावीर, बुद्ध और गांधी की
आत्मा के हम पुजारी हैं
बहुत देखी तुम्हारी लीला
अब इसकी बर्दाश्त भारी है
तीनों लोक में मुझे देखो
हमारी ढंग निराली है
सांप छछूंदर के खेल में
हम विश्वास नहीं करते हैं
हम तो वही चाहते हैं
जो बरसों से हमें प्यारी है
समय रहते हो जाओ सचेत
जनता मेरी सारी है
हम नहीं चाहते जंग
हम शांति के पुजारी हैं।
यही तो जीवन है
यह राह बहुत कठिन है
पर चलना है तो चलना है
जब तक मंजिल मिल न जाए
पर लक्ष्य पर, पहुंचकर ही
रुकना है तो रुकना है
इस बीच
मिले बहुत रोड़े
जो पग-पग पर
बाधाएं बनकर आए
उनसे भी तो मिलकर
प्यार से आगे बढ़ना है
सिर्फ चलना है तो चलना है
पर लक्ष्य को तो पाना ही है
जीवन का रुकना ही
सब कुछ रुक जाना है
जब तक जीवन चलता है
चलता ही रहेगा
यही तो जीवन है,
यही तो जीवन है!
फिर भी कोई पास है
आज मन उदास है
फिर भी कोई पास है
जाना नहीं है कहीं
फिर भी दिन खास है
अपना भी एक दिन था
मौजें जिसमें खास थीं
दोस्त थे खासमखास
फिर भी कोई पास थी
बचपन की वे बातें
अब नहीं कोई खास है
मन में है हलचल
फिर भी कोई पास है
यादें ही यादें रहीं
तुम भूली नहीं, साथ है
मन में है धड़कन
फिर भी कोई साथ है
अब तो तू होगी कहीं
मेरी यादें न रही
फिर भी तुम पास हो
जो बातें थीं कही।
-नीलोत्पल रमेश
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