Author: Gajendra Sharma (गजेंद्र शर्मा)

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राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की वैचारिक दृष्टि
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राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की वैचारिक दृष्टि

रामधारी सिंह दिनकर के दृष्टिकोण को परस्पर दो प्रमुख विचारधाराओं के परिप्रेक्ष्य में रखकर समझा जा सकता है। उनके दृष्टिकोण का पहला ध्रुव मार्क्सवाद है और दूसरा ध्रुव गांधीवाद है। वे विचारधाराओं के इन्हीं दो ध्रुवों के बीच आजीवन आवाजाही करते रहे हैं। अनेक अवसरों पर गांधी से उनकी असहमतियां भी प्रकट हुई हैं, इसलिए...

जयंती विशेष: समय की सलीबों पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’
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जयंती विशेष: समय की सलीबों पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’

मौजूदा समय में दिनकर की ‛राष्ट्रवाद’ संबंधी समझ को दृढ़ता के साथ रेखांकित करने की जरूरत है क्योंकि हिंदुत्ववादी शक्तियां उनकी राष्ट्रीय भावों की ओजपूर्ण कविताओं के सहारे अपने अंधराष्ट्रवाद के अभियान को साधना चाहती हैं। यह अकारण नहीं है कि हिमालय के शिखरों पर चढ़कर उनकी कविताओं के ‛आलाप’ किए जा रहे हैं। ऐसा...

विचारधारा का अंत और प्रेमचंद की विचारधारा
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विचारधारा का अंत और प्रेमचंद की विचारधारा

प्रेमचंद निर्विवाद रूप से आज भी हिंदी के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले व लोकप्रिय लेखक हैं। परंतु इधर, कुछ वर्षों में उन्हें लेकर विवाद भी बहुत बढ़े हैं। हिंदी में जब से विमर्शों का दौर शुरू हुआ है, तब से प्रेमचंद को विमर्शों के केंद्र में लाया गया है। विमर्शों में प्रेमचंद विवादित हैं। ऐसा...

जयन्ती विशेष: एक मौलाना हसरत मोहानी भी थे!
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जयन्ती विशेष: एक मौलाना हसरत मोहानी भी थे!

पाकिस्तान के करांची शहर में हसरत मोहानी नाम की एक बड़ी कॉलोनी है। वहाँ हसरत मोहानी नाम से एक बड़ी सड़क भी है। करांची में ही एक हसरत मोहानी मेमोरियल सोसाइटी है और एक हसरत मोहानी मेमोरियल लाइब्रेरी भी है।

राही मासूम रज़ा की चिंता के केंद्र में है हिंदुस्तान की साझी संस्कृति
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राही मासूम रज़ा की चिंता के केंद्र में है हिंदुस्तान की साझी संस्कृति

राही मासूम रज़ा के सबसे बड़े आलोचक प्रो0 कुँवर पाल सिंह से मिलने अलीगढ़ जाना चाहता था। उनसे मिलना सिर्फ इसलिए नहीं चाहता था कि वे राही मासूम रज़ा के सबसे बड़े आलोचक हैं बल्कि इसलिए भी कि वे उनके सबसे अच्छे दोस्त रहे हैं। राही मासूम रज़ा ने 1966 ई0 में सबसे पहला और...

जब राम के तुलसी संकट में हैं, तो हे राम! आप सचमुच संकट में हैं
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जब राम के तुलसी संकट में हैं, तो हे राम! आप सचमुच संकट में हैं

हमारी बहुभाषिक और बहुसांस्कृतिक भारतीय राष्ट्र में अन्तर्लयित ‘राम’ एक ऐसा शब्द है जिसे अपने-अपने ढंग से समझने की अनेक कोशिशें हुई हैं और उन कोशिशों में सबके अपने-अपने ‘राम’ हैं। बाल्मीकि के अपने, भवभूति के अपने, तुलसीदास के अपने, गुप्त जी के अपने, निराला जी के अपने और न जाने कितने-कितनों के अपने-अपने ‘राम’...

रामधारी सिंह दिनकर के राष्ट्रवाद को निगलना चाहता है हिंदुत्व राष्ट्रवाद
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रामधारी सिंह दिनकर के राष्ट्रवाद को निगलना चाहता है हिंदुत्व राष्ट्रवाद

रामधारी सिंह दिनकर की ‛राष्ट्रवाद’ संबंधी समझ को दृढ़ता के साथ रेखांकित करने की जरूरत है क्योंकि हिंदुत्ववादी शक्तियां उनकी राष्ट्रीय भावों की ओजपूर्ण कविताओं के सहारे अपने अंधराष्ट्रवाद के अभियान को साधना चाहती हैं। यह अकारण नहीं है कि हिमालय के शिखरों पर चढ़कर उनकी कविताओं के ‛आलाप’ किए जा रहे हैं। ऐसा संभवतः...

हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद के ख़िलाफ़ थे रामधारी सिंह दिनकर
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हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद के ख़िलाफ़ थे रामधारी सिंह दिनकर

रामधारी सिंह दिनकर के सम्बन्ध में लगभग एक स्थापना-सी बन चुकी है कि वे थोड़े-थोड़े सबको अच्छे लगते हैं। उनमें राष्ट्रवाद के भी तत्व हैं, गांधीवाद और मार्क्सवाद के भी तत्व हैं। दिनकर के प्रायः आलोचक उन्हें थोड़ा गांधीवादी भी मानते हैं और थोड़ा मार्क्सवादी भी, थोड़ा राष्ट्रवादी भी और थोड़ा हिंदूवादी भी। संभवतः उनके...