नीलोत्पल रमेश की दो कविताएं: गोरी तेरे ठाँव और प्रकृति के आँचल में

नीलोत्पल रमेश की दो कविताएं: गोरी तेरे ठाँव और प्रकृति के आँचल में

[नीलोत्पल रमेश बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति हैं। प्रकृति से खास लगाव रखते हैं। यही कारण है कि इनकी कहानी हो या कविता उसमें प्रकृति का साफ चित्रण दिखता है। इनकी कविता, कहानी, समीक्षा कई पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशित होती रही है। नीलोत्पल रमेश की दो कविताएं यहां प्रकाशित कर रहे हैं।]

गोरी तेरे ठाँव

कोयल कूके
गोरी चहके
और महुए से
आ रही है गंध
खड़खड़ बजाई
प्रकृति ने अपनी झाँझ
जंगल-जंगल
चहक रही है
पायल की झंकार

पीले सरसों ने
कर दी है धरती का श्रृंगार
आम के मंजर भी हैं
रस से भींगे
नयन नशीली
बहके तेरे पांव

पेड़ों के पत्तों ने
कर दिए उद्घोष
अब तेरे साथ
नहीं रहा कोई नाता
जैसे सांप
उतार फेंकता है केंचुल
उसी तरह पेड़ भी
प्रकृति से सिंगार करने को
उतार फेंके हैं अपना केंचुल

दूर-दूर तक पहाड़ों पर
नंगे खड़े हैं पेड़
किसी की आशा में
कि कोई आए
और हमें श्रृंगारित कर दे

लहर-लहर खेतों में करती
जौ-गेहूं की बाली
मटर-तीसी-चना भी
रहते उनके साथ
झूम-झूम कर
ये बुलाते
गोरी अपने ठाँव

चहुँ ओर फैल गई है
वासंती रंग
जिससे मानव
और प्रकृति है सारा बोर

गोरी तेरे ठाँव
प्रकृति भी आ पहुंची है
करने को शृंगार
अब तो थोड़ी रुक जा
कर लेने दो
मन मितवा से
दो-चार दिल की बात

गोरी तेरे ठाँव
मचलती है
कवियों की लेखनी
कर लेने को शृंगार

अब तो तू रुक जा गोरी
कवि की वाणी को
कर लेने दो
मदिरा का पान।

प्रकृति के आँचल में

प्रकृति के आंचल में
है रंगों की टोकरी
जिसमें भरे पड़े हैं
कई रंगों की धोकरी

कहीं दीखते हैं फूल
और दीखते हैं पतझड़
वासंती हवा के झोंके से
पत्ते गिरते हैं झरझर

रंगों की बारात लेकर
निकल पड़ी है संग
भौंरों की गुंजार ने
सबको कर दिए तंग

आम और महुए की डाली
गर्भवती महिलाओं की तरह
हो गई है भारी
रूई में पानी तरह

प्रकृति के आंचल में हमने
देखे कई हैं रंग
मानव की करनी को देखो
जिसमें डाल रहे हैं भंग।

-नीलोत्पल रमेश

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