सोहैल रिज़वी की कविता ‘अगर शब्द न होते’

सोहैल रिज़वी की कविता ‘अगर शब्द न होते’

कविता में अगर शब्द न होते
तब कितना आसान हो जाता
हर किसी के लिए
बगैर किसी शब्द की सहायता लिए
अपने भावों को लिखना

मैंने एक विधि खोज निकाली है
जिससे मैं
सुबह काम पर जाने
शाम को कम से आने पर
अपने भावों को
पिंडलियों में बन चुके नसों के गुच्छे को
उनमें बस चुके दर्द को
उस विधि के द्वारा
एक सफेद कागज़ पर
उकेर सकता हूँ

रेखाचित्र: सुहैल रिज़वी

मैं व्यक्त कर सकता हूँ
उन तमाम अनुभवों को
जो एक अर्से से व्यक्त नहीं कर पाया
शब्दों के अभाव में

मैं उकेर पाऊंगा
दिमाग़ में बसी तीस साल की यादों को
उन यादें को जो दब चुकी है
मस्तिष्क के सड़ चुके उत्तकों की परत के नीचे

मुझे ये मालूम हो चुका है
मस्तिष्क की महीन कमज़ोर धमनियाँ
उनमें बहता तरल
सड़ रहा है धीरे-धीरे
बिलकुल वैसे
जैसे मेरे शब्द

रेखाचित्र: सुहैल रिज़वी

इसलिए
इन सड़े उत्तकों के नीचे
बदबू से भरे तरल में
बच चुकी
मेरी एक फीसदी यादें
जिनको उकेरूंगा
अपनी विधि द्वारा
बगैर शब्दों की सहायता लिए
सहजता से

आड़ी तिरछी
सपाट
सरल
सहज
रेखाएं!


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