आपने साल 2019 की इन 10 हॉरर फिल्मों को देखा है, अगर नहीं तो जरूर देखें

आपने साल 2019 की इन 10 हॉरर फिल्मों को देखा है, अगर नहीं तो जरूर देखें

यूनानी दार्शनिक अरस्तू के मुताबिक, चेतन प्रक्रिया से डरावनी कहानियों और हिंसक नाटकों के माध्यम से नकारात्मक भावनाओं को खत्म किया जा सकता है। इन्हीं कारणों के चलते कला जगत के लोग डर और भय को अपनी रचनाओं में इस्तेमाल करते आए हैं। डर का अपना एक अलग मनोविज्ञान है और ये एक नकारात्मक क्रिया है। लेकिन विज्ञान की दृष्टि से ये इंसानी दिमाग के भीतर रोमांच भी पैदा करता है। जब इंसानी दिमाग अलौकिक शक्ति, भूत-प्रेत, अनहोनी और राक्षस वगैरह देखता है तो रोमांचित होता है। सीधे शब्दों में कहें तो इंसानी दिमाग जब अपनी सोच से बाहर की चीजों को होता हुआ देखता है तो रोमांचित होने लगता है।

जब कहीं हम भय और हिंसा देखते हैं तो हमारा दिमाग उत्तेजित होने लगता है। यही वजह है कि हॉरर और साइंस फिक्शन फिल्में सबसे कामयाब होती हैं। इसकी वजह ये भी है कि इन फिल्मों में जहां लागत बहुत कम आती है वहीं इसमें नुकसान की गुंजाइश नहीं के बराबर होती है। फिल्म बनाने वालों को एक क्रोमा वाले स्टूडियो और कुछ अच्छे टेक्नीशियन की दरकार होती है।

लोकेशन चेंज करने की गुंजाइश कम रहती है। बॉलीवुड के मुकाबले हॉलीवुड की फिल्में इन्हीं चीजों के लिए जानी जाती हैं। इस साल हॉलीवुड की सबसे बेहतरीन कौन-सी फिल्में थी, इसका ठीक-ठीक अंदाजा लगाना कठिन है। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि सिनेमा का परदा अब दो हिस्सों में बंट चुका है। परंपरागत थियेटर को वेब सिनेमा ने बुरी तरह प्रभावित किया है। ऐसे में कमाई और कला के लिहाज से इसका ठीक-ठीक अंदाजा लगाना मुश्किल है फिर भी हम यहां दस ऐसी फिल्मों को बताने जा रहे हैं जिन्हें बीते वर्ष बेहद सराहा गया।

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आपने 2019  की इन दस हॉरर फिल्मों को नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा

इट चैप्टर 2 (It Chapter 2)

यह फिल्म प्रसिद्ध हॉरर लेखक स्टीफन किंग के नॉवेल ‘इट’ पर आधारित है। इसका पहला पार्ट ‘इट’ के ही नाम के 2017 में आई थी और काफी मकबूल हुई थी। इसका मुख्य पात्र कितना डरावना किरदार है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने इसे बिना कट्स के रिलीज करने से इंकार कर दिया था। कहानी है एक काल्पनिक शहर डेर्री की जहां एक खूंखार दरिंदा रहता है जो देखने में एक जोकर की वेशभूषा में है।

‘इट’ डेर्री शहर में रहने वाले बच्चों के पीछे पड़ा है और अचानक से सामने आकर डरा देता है। ‘पेनीवाइज़ द क्लाउन’ की कहानी बेहद पुरानी मानी जाती है। इस पर कई सीरीज भी बन चुके हैं। जब पहला पार्ट आया था तब अमेरिका के एक जोकर एसोसिएशन ने फिल्म पर रोक लगाने की मांग की थी। एसोसिएशन का कहना था ‘इट’ के जरिए बच्चों के प्रिय किरदार जोकर को इतना डरावना और घिनौना दिखाया गया है कि जोकरों को लेकर उनके मन में एक डर बैठ गया।

पहले वाले पार्ट में सात साल के एक बच्चे को एक भुतहा जोकर किडनैप करता है और फिर उसे खा जाता है। फिर उसका भाई और उसके दोस्तों को भी डराता है। ‘इट’ गटर से आता है और हमला करता है। चैप्टर-2 में वही बच्चे अब बड़े हो चुके हैं। ‘इट’ दोबारा लौट आया है। इस पार्ट में भी आपको ‘लूजर कलब’ और ‘इट’ पहले पार्ट को भारत में एडल्ट सर्टिफिकेट दिया था हालांकि बच्चों पर आधारित थी। इस पार्ट को भी कमजोर दिल वालों को देखने से मना किया गया है। फिल्म को रोटेन टोमैटोज ने 63 फीसद स्कोर दिया है।

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स्वीट्हार्ट (Sweetheart)

यह फिल्म जनवरी 2019 में रिलीज हुई थी। इसे निर्देशित किया है जेडी डिलाड ने। कहानी तीन लोगों ने मिलकर लिखी थी-अलेक्स थ्योरर, एलेक्स हाइनर और जेडी डिलाड। इसकी कहानी बहुत ही अलग किस्म की है। यह एक महिला जेन के चारों ओर घूमती है जो एक दुर्घटना के बाद एक निर्जन द्वीप पर पहुंचती है।

जेन को न सिर्फ कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। वहां एक रहस्यमयी समुद्री जीव भी होता है जो रात में जागता है और भोजन की तलाश करता है। यह रॉबिन्सन क्रूसो की कहानी की तरह समझ लें। बस फर्क दोनों में इतना है कि यहां मर्द की जगह एक औरत है जो एक वीरान द्वीप पर पहुंच गई है, जबकि एक समुद्री राक्षस का खतरा भी इसमें बढ़ गया है। इसीलिए यह फिल्म दर्शकों में भय और सिहरन पैदा करने में कामयाब होती है। फिल्म आलोचकों ने इसकी प्रशंसा की है। प्रसिद्ध साइट रॉटन टोमैटोज ने इसे 96 प्रतिशत स्कोर किया है।

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अस (US)

यह फिल्म भी एक महिला पर आधारित है। इसकी कहानी और निर्देशन किया है जॉर्डन पीले। अभिनय किया है-लूपीटा न्योगो, विस्टन ड्यूक शहादी राइट जोसेफ और इवान एलेक्स ने। फिल्म का पोस्टर बेहद आकर्षक है। यह एक ऐसी महिला की कहानी है जो अपने परिवार के साथ एक ऐसे घर में लौटती है जहां उसका बचपन बीता है।

वहां उसके साथ एक घटना घटित हुई होती है। वह एक फन हाउस में जाती है और खुद को एक सीसे के सामने पाती है। उसकी छवि इसके ठीक हू-ब-हू है। जब वह लौटती है तो उसे लगता है कि कहीं फिर से उसके साथ वह सब कुछ न हो जाए जो बचपन में उसके साथ हुआ था। वह खुद को बहुत समझाती है कि डरो मत। लेकिन कुछ समय बाद उसका भय वास्तविकता में बदल जाती है। अगले ही पल आधी रात को तीन नकाबपोश लोग उसके घर के सामने खड़े मिलते हैं। वे लोग अजीब रंग के कपड़े पहने होते हैं। एडिलेड और उसके पति को लगता है कि शायद कोई मदद के लिए आया। वे आवाज लगाते हैं। मगर कोई जवाब नहीं आता है।

पर कुछ ही पल में महिला, पुरुष और उनका बच्चा सामने नमूदार हो जाते हैं यह देख इन तीनों के होश फाख्ता हो जाते हैं। जब वे अपना नकाब उतारते हैं तो एडिलेड का परिवार यह देखकर दंग रह जाता है कि हमलावर शक्ल-ओ-सूरत में ठीक उनके जैसे ही हैं। फिल्म अल्फ्रेड हिचकॉक की हॉरर फिल्मों के समान है जिसमें सस्पेंस, जिज्ञासा और यहां तक कि ऐसे दृश्य भी हैं जो रीढ़ में सनसनी पैदा करता है। लेकिन हिचकॉक की फिल्म ‘द बर्ड’ की तरह ही इस फिल्म का अंत आम दर्शकों को समझ नहीं आता है। यही फिल्म की असल सस्पेंस भी है। फिल्म को रोटेन टोमैटोज ने 93 फीसद स्कोर और आईएसबीडी पर 10 में से 6.9 स्टार दिया है।

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हैप्पी डेथ डे टू यू (Happy Death Day 2U)

यह फिल्म क्रिस्टोफर लैंडन निर्देशित ‘हैप्पी डेथ डे’ की सीक्वल है। जिस तरह से पहली किस्त में कुछ यूनिवर्सिटी के स्टूडेंस्ट बुरे हालात में फंसते हैं और उससे बाहर आने की कोशिश करते हैं उसी प्रकार से इस पार्ट में भी होता है। इसमें जब लड़की को पता चलता है कि वह एक बार फिर टाइम लूप के लपेटे में फंस गई है, और इस बार उसके दोस्त भी साथ हैं।

सभी मिलकर कातिल से बचने की कोशिश करते हैं पर वह छिपकर बार-बार आ जाता है। पहले वाले की तुलना में घटनाएं बिल्कुल अलग-अलग हैं इसमें। इसमें भी लड़की बार-बार मुखौटा पहने हत्यारे का निशाना बनती है और उसकी पहचान उजागर करने के लिए संघर्ष करती है। बैटमैन के ‘जोकर’ और ’इट’ के मास्क वाले विलेन की तरह ये किरदार भी दहशत पैदा करता है और दर्शक सांस थामे कुर्सी से चिपके रहते हैं। इसे रोटेन टोमैटोज ने 70 फीसद स्कोर दिया है।

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रेडी ऑर नॉट (Ready or Not)

यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास तो नहीं कर सकी मगर फिल्म क्रिटिक के तरफ से बेहद सराही गई। वजह थी इसकी अलग तरह की कहानी। फिल्म में एक महिला है जिसकी शादी होती है। ग्रीस की शादी जब ताकतवर ली डोमोस के खानदान में हो जाती है तो यह खानदान यह जानकर हैरान हो जाती है कि उसे लुका-छिपी का खेल खेलना है।

वह यह देखकर दंग रह जाती है कि उसके ससुराली रिश्तेदारों ने हथियार उठा लिए हैं। फिर कहानी खूंरेजी में तब्दील हो जाती है। देखा जाए तो यह फिल्म हॉरर और कॉमेडी का बेहतरीन नमूना है। लेकिन इसे वैसे लोगों को देखने से परहेज करना चाहिए जिन्हें खून-खराबा पसंद नहीं है। मैट बेटिनेली-ओलपिन और टायलर गिल्लेट निर्देशित इस फिल्म को रॉटन टोमॅटोज के तरफ से 88 फीसद की स्कोर दी है।

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एनाबेल कम्स होम (Annabelle Comes Home)

‘एनाबेल कम्स होम’ फिल्म ‘एनाबेल’ की तीसरी सीरीज है। ये पहले की दो किस्तों से अधिक डरावना है। इस पार्ट में शैतानी गुड़िया ज्यादा शक्तिशाली नजर आती है। इसमें भी बार-बार गुड़िया से निजात पाने का प्रयास किया जाता है पर वह लौट आती है। हमेशा कुछ-न- कुछ अनहोनी होती रहती है।

इसकी कहानी पहले वाले हिस्से से जुड़ी है। फिल्म की कहानी में डॉक्टर की पढ़ाई कर रही बेटी को उसकी मां उसके जन्मदिन एक गुड़िया तोहफे में देती है। लेकिन गुड़िया के घर में आते ही अजीब-अजीब घटनाएं होने लगती हैं। किसी को भी समझ नहीं आता कि आखिर इसकी वजह क्या है। गुड़िया को कहीं भी रखा जाता है वह अपने पहले वाले स्थान पर लौट आती है। घरवालों को जब एहसास होता है कि यह सब कुछ शैतानी गुड़िया के आने बाद से हो रहा है तो उससे निजात पाने का प्रयास किया जाता है। तंग आकर उसे बहुत दूर फेंक आया जाता है पर वह लौट आती है।

गुड़िया से पूछा जाता है कि वह कौन है तो वह झूठ बोलती है। वह कहती है कि मेरे अंदर एक छोटे बच्चे की आत्मा है। गुड़िया कहती है कि वह उसकी लड़की के साथ ही रहना और खेलना चाहती है। पर उसके हरकत इतना डरावने होते हैं कि घरवाले को उससे बचने के लिए पैरानॉर्मल एक्सपर्ट टीम को बुलाते हैं।

फिर पता चलता है कि गुड़िया के अंदर शैतान है जो लड़की को मार डालेगा। इस वाले हिस्से में एड और लॉरेन वारेन को लगता है कि गुड़िया को कमरे में बंद करके लोगों को बचाया जा सकता है। लेकिन एक दिन रात को एनाबेल बुरी आत्माओं को जगा देती है। उसके बाद क्या होता है यही सबसे बड़ा सस्पेंस है। रोटेन टोमैटोज पर इसे 64 फीसद स्कोर दिया है।

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लिटिल मोंस्टर (Little Monsters)

यह फिल्म भी एक जॉम्बी हॉरर-कॉमेडी है जिसे लिखा और निर्देशित किया है अबे फोर्सित ने। मुख्य भूमिकाओं में हैं-लुपिता न्योंगो, अलेक्जेंडर इंग्लैंड, कैट स्टीवर्ट, डीजल ला तोरका और जोश गाड। लुपिता न्योंगो अपने अभिनय के लिए इसी साल फिल्म ‘अस’ में सराही गई हैं जिसकी बात हम ऊपर कर चुके हैं। इसका पोस्टर भी बेहद आकर्षक लगता है।

तीन बच्चे हैं जिनके इर्द-गिर्द कहानी घुमती है। डेव एक मुंहफट म्युजिसियन है जिसकी अपनी प्रेमिका के साथ अनबन हो जाती है। उसके बाद वह अपनी बहन और उसके बेटे फेलिक्स के साथ रहने को मजबूर हो जाता है। डेव फेलिक्स को छोड़ने उसके स्कूल जाता है जहां उसकी मुलाकात उसकी शिक्षक मिस कैरोलिन किंडर से होती है और वह उसके प्रति आकर्षित हो जाता है।

आगे चलकर जॉम्बीज हमला करते हैं और उसी से बचने में कहानी आगे बढ़ती है। जॉम्बीज दरअसल, हॉलीवुड हॉरर फिल्मों के प्रिय किरदार रहे हैं। हालांकि फिल्म समीक्षकों को यह किरदार अधिक नहीं लुभाता है। लेकिन फिल्मांकन के लिहाज से सराहा गया है। किरदार और कहानी के हिसाब से यह एक बढ़िया फिल्म है।

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डिप्रेव्ड (Depraved)

यह बीते साल मार्च में रिलीज हुई थी। लारी फसेंडन निर्देशित यह फिल्म क्लासिक नॉवेल मैरी शेली के ‘फ्रेंकस्टीन’ पर आधारित है। कहानी ट्रीटमेंट एकदम आधुनिक तरीके से की गई है। इसमें एक सर्जन इंसानी लाशों के अंगों से कुछ अलग तरह के विभिन्न अंगों का निर्माण करता है।

फिल्म के कुछ पहलू ‘फ्रेंकस्टीन’ के नॉवेल के हिसाब है लेकिन उसमें आधुनिक विचारों को भी उसमें शामिल कर लिया गया। यह दर्शकों के दिलों में फिल्म दहशत पैदा करता है। रोटेन टोमैटोज ने इसे 88 प्रतिशत स्कोर दिया।

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गर्ल ऑन द थर्ड फ्लोर (Girl on the Third Floor)

इस फिल्म में पूर्व रेसलिंग स्टार सीएम पंक ने मुख्य भूमिका निभाई है। फिल्म में पंक अपनी पत्नी और आने वाले बच्चे के लिए एक पुराने घर का पुनर्निर्माण करने की कोशिश करता है। इस बीच दिल दहला देने वाली घटनाओं का सामना करना पड़ता है।

काम के दौरान उन्हें अजीबो-गरीब आवाजें सुनाई देती हैं। दीवारों से विचलित करने वाले सामग्री निकलते हैं। पड़ोसी के अजीब हरकत, फिल्म में असाधारण घटनाओं की शृंखला दर्शकों को बेहद आतंकित करती है। वास्तव में यह फिल्म कुछ ‘एविल डेड’से मिलती-जुलती है। इसे 87 फीसद का स्कोर मिला रोटेन टोमैटोज पर।

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द होल इन द ग्राउंड (The Hole in the Ground)

ली क्रोनिन लिखित और निर्देशित यह फिल्म एक नाबालिग बच्चे पर आधारित है। आयरलैंड का एक इलाका जहां एक बच्चा अपने नए घर में आता है। बच्चा एक दिन एक गड्ढे में गिर जाता है लेकिन ठीक-ठाक बाहर निकल आता है। लेकिन उसकी मां को शक होता है।

उसे लगता है जो बच्चा लौटकर आया है वह उसका बेटा नहीं है। कहानी इसी प्लॉट पर आगे बढ़ती है और रोंगटे खड़े करती है। इसमें हॉरर फिल्मों के सभी पारंपरिक तरीकों का निर्देशक ने आजमाया है। लेकिन वर्तमान दौर के माता-पिता के जेहनियत को बहुत अनूठे तरीके से फिल्माया गया है। अभिनय के हिसाब से यह एक अच्छी फिल्म है। फिल्म को 85 फीसद स्कोर मिले हैं।


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