एक सत्तरह-अठारह साल का खूबसूरत और आकर्षक नौजवान बगल में फाइल दबाए हुए, जिसमें उसके मॉडलिंग की कुछ तस्वीरें थीं; निर्देशक आनंद गिरधर के सामने बैठा था और अपने बालों को अपने हाथों से बीच-बीच में जुम्बिश दे रहा था। बी-ग्रेड फिल्मों के निर्देशक गिरधर ने युवक को ऊपर से नीचे तक देखा और फिर मुस्कुराते हुए कहा, “मेरी फिल्म में आपके लिए कोई भूमिका नहीं है।”
नौजवान मायूसी और नाउम्मीदी भरी नजरों से गिरधर के कमरे में लगे फिल्मी पोस्टरों को टकटकी लगाए देख रहा था, जो उमंग की एक रंगीन कहानी बयान कर रही थीं। जिस निर्देशक के ऑफिस में वह नौजवान खड़ा था दरअसल, वह सस्ती और बी-ग्रेड फिल्में बनाने के लिए खासा बदनाम था। बदनामी और बदकिस्मती के बाद, वह एक ‘बदनाम’ नाम से फिल्म बनाने की तैयारी कर रहा था जिसमें यह नौजवान काम करने का ख्वाहिशमंद था।
आनंद गिरधर ने नौजवान से निराशा भरे लहज़े में कहा कि वह एक स्कूल शिक्षक की भूमिका के लिए एक परिपक्व अभिनेता की तलाश में हैं जिस पर वह फिट नहीं बैठता है। नौजवान ने जब ये जवाब सुना तो तुरंत फाइल खोलकर अपनी तस्वीरें दिखाने लगा। उसने रिक्वेस्ट वाले अंदाज में कहा, “यह देखो, सर! मैंने दो-तीन विज्ञापन में मॉडलिंग की है। उनकी तस्वीरें देखें, आपको जरूर पसन्द आएगी।”

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अब निर्देशक का ब्लड प्रेसर हाई होने का समय था। उसने गुस्से भरे लहज़ें में कहा, “तुम्हारे चेहरे पर अगर मैं दाढ़ी और मूंछे भी लगवा दूंगा तब भी तुम इस किरदार के मुनासीब नहीं हो…. जाओ! अगर कोई फिल्म होगी, तो बुलवाऊंगा तुम्हे।”
नौजवान ने गिड़गिड़ाने वाले अंदाज में कहा, “सर, मुझे एक ब्रेक दे दीजिए। यकीन जानिए, मैं आपको मायूस नहीं करूंगा।”
अब आनंद गिरधर की बर्दाशत की हद पार करने को थी। उन्होंने बहुत तल्ख लहज़े में कहा, “तुम सलीम खान के लड़के हो न?” लड़के ने हाँ में सर हिलाया। यह सुन निर्देशक का गुस्सा और अधिक बढ़ गया। उन्होंने कहा, “अपने पिता से कहो कि वह करें तुम्हारे लिए कोशिश। मैं कुछ नहीं कर सकता। अब फौरन निकल जाओ।”
नौजवान तो जैसे कसम खाकर आया था कि चाहे जो हो जाए वह आज किसी-न-किसी फिल्म में काम लेकर घर जाएगा। उसने कहा, “सर, बस मुझे एक मौका दीजिए।”

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आनंद गिरधर ने जवाब देने से पहले घंटी बजाई। नौजवान ने सोचा कि वह जरूर अपने असिस्टेंट को बुला रहे हैं। जब चपरासी दरवाजा खोला कर आया, तो निर्देशक ने गुस्से से कहा, “इसे कमरे से बाहर निकालो! आइंदा से ये आदमी ऑफिस के आसपास भी नहीं दिखना चाहिए। चपरासी जो इस काम में माहिर लग रहा था, एकदम से आगे बढ़ा और नौजवान को कंधे से पकड़कर कुर्सी से उठाया और धक्के देकर कमरे से बाहर निकाल दिया।
मामूली से किरकार के लिए भीख मांगने वाला वह नौजवान कोई और नहीं बल्कि सलमान खान था। मशहूर पटकथा लेखक सलीम खान का बेटा, जिसकी इंडस्ट्री में तूती बोलती थी। उन्हें भी शुरू में अभिनय का शौक था। वह भी एक जमाने में काम के लिए प्रोडक्शन हाउसेज के चक्कर काटते थे।
उस घटना के कुछ दिनों बाद यानी 1987 में, वह नौजवान एकबार फिर निर्देशक जे.के. बिहारी के दफ्तर में मौजूद था, जो फिल्म ‘बीवी हो तो ऐसी’ में फारूक शेख के छोटे भाई के लिए किरदार की तलास में थे। लेकिन कोई भी एक्टर उन्हें जम नहीं रहा था।

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ऐसे में उन्होंने अपने असिस्टेंट को बुलाया और झल्ला कर कहा, “अब जो भी आएगा, मैं उस बेवकूफ को कास्ट कर लूंगा क्योंकि बाकी लोगों ने मेरा दिमाग खराब कर दिया है।”
खुशकिस्मती से अगली बारी सलमान खान की ही थी जिन्हें निर्देशक जे.के. बिहारी ने अपनी बात को रखते हुए साइन कर लिया। सलमान की ख्वाहिश तो पूरी हो गई लेकिन फिल्मांकन के दौरान उन्हें इस दुःख को सहना पड़ा कि फिल्म में उनकी अवाज नहीं रखी जाएगी और उसकी जगह किसी और की आवाज़ इस्तेमाल की जाएगी।
मगर सलमान खान खुश थे कि कम-से-कम फिल्म तो मिल गई। लेकिन यह खुशी भी उस वक्त मायूसी में बदल गई जब ‘बीवी हो तो ऐसी’ की स्क्रीनिंग रुक गई, और इतना ही नहीं एडिटिंग के दौरान सलमान खान के ज्यादातर दृश्यों को किक आउट कर दिया गया। ठीक उसी तरह जैसे आनंद गिरधर ने उन्हें ऑफिस से बाहर निकाला था। यानी वे फिल्म में होते हुए भी नहीं थे।
इस हताशा के लगभग आठ या नौ महीने बाद, उनकी प्रोडक्शन हाउस की परेड फिर से शुरू हुई। यह ऐसा था जैसे जहां खड़े थे वहीं आकर फिर से खड़े हो गए। इस दौरान, मॉडल और अभिनेत्री संगीता बिजलानी के साथ उनकी दोस्ती बढ़ने लगी और वह उनके साथ फिल्म समारोहों में दिखाई देने लगे। तब तक यह मशहूर हो गया था कि वे संगीता बिजलानी के बॉयफ्रेंड हैं पर फिल्में अभी भी की कौड़ी थी।

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सलमान खान की खुशकिस्मती ही कहिए कि 1989 की शुरुआत में, राजश्री फिल्म्स की नई फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ के जरिए युवा सूरज बड़जात्या निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखने जा रहा था। चूंकि वे खुद नौजवान थे, इसलिए उन्होंने नौवजवानों की कहानी उठाई थी। सलमान खान का नाम उन्हें विज्ञापन निर्देशक शबाना ने सुझाया था, जो उनके साथ एक एड में काम कर चुकी थीं। सलमान के शर्मीला स्वभाव, सादगी और सबसे बढ़कर उनका स्मार्ट व्यक्तित्व ने उनका रास्ता आसान कर दिया। फिर सभी ने देखा कि ‘मैंने प्यार किया’ ने सिनेमाघरों के सामने दर्शकों की लाइन लगा दी। फिल्म का गाना, भाग्य श्री के साथ उनकी रोमांटिक जोड़ी ने फिल्म को खिड़की तोड़ सफलता दिलाई।
क्या यह एक छोटा सम्मान था कि फिल्म ने अगले साल होने वाले फिल्मफेयर अवार्ड्स में विभिन्न कटेगरी में 12 नामांकन हासिल किए, जबकि उनमें से छह ने पुरस्कार जीते। सलमान खान को बेस्ट न्यू कमर का बेस्ट एक्टर अवार्ड दिया गया।
भले आपको लगता हो कि ‘मैं प्यार किया’ के बाद उनका करियर की गाड़ी पटरी पर दौड़ने लगी। सलमान खान इस फिल्म के बाद सुपरस्टार तो बन गए थे, लेकिन कमोबेश 11 महानों तक उन्हें किसी भी फिल्म में कास्ट नहीं किया गया। वे जेहनी तौर पर परेशान रहने लगे। जैसे-जैसे समय आगे बढ़ रहा था मायूसी और निराशा की परझाई और गहरी होती जा रही थी।
इसके बाद पिता सलीम खान ने एक फिल्मी चाल चली। रमेश सिप्पी के पिता जी.पी. सिप्पी से उन्होंने कहा कि वे सलमान खान को लेकर एक फिल्म बनाने का एलान करें। बस उन्हें करना ये है कि मीडिया को बताना था कि वह सलमान खान को लेकर काम कर रहे हैं। उस वक्त सिप्पी का फिल्मी दुनिया में एक बड़ा नाम था। बस चाल ये थी कि जब सिप्पी एलान करेंगे कि वह सलमान खान को अपने बैनर तले लेकर काम करने वाले हैं तो सलमान का नाम सबकी नजरों में आ जाएगा।

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वरिष्ठ लेखक सलीम खान की बात को रखते हुए जी.पी. सिप्पी ने ‘पत्थर के फूल’ बनाने का एलान कर दिया और कहा कि इस फिल्म में सलमान खान बतौर हीरो होंगे। फिल्मी दुनिया में ज्यादातर लोग भेड़ चाल चलने के आदि होते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि बॉलीवुड में ‘फिल्मों की फिल्में’ बनती हैं। अब जो सलमान खान ‘मैं प्यार किया’ में काम करने के बाद सुपरस्टार हो गए थे, अचानक सुर्खियों में आ गए। फिर क्या था उनके सामने निर्माताओं की भीड़ लग गई।
‘पत्थर के फूल’ जो एलान की हद तक थी, सलमान खान की बढ़ती मांग को देखते हुए, नकली योजना से असली योजना में बदल गई। आगे चलकर ये फिल्म बनी जिसकी कहानी सलीम खान ने लिखी थी। जिसमें सलमान खान मुख्य किरकार में नजर आए और साथ में थीं रवीना टंडन।
इसी मास्टर स्ट्रोक से सलमान खान की सफलता और कामयाबी का युग शुरू हुआ, जो आज भी जारी है।
सलमान खान इस बात को कबूल करते हैं कि अगर उस दिन निर्देशक आनंद गिरधर ने धक्के मार अपने ऑफिस से बाहर नहीं निकाला होता, तो वह बी-ग्रेड फिल्मों तक सीमित होकर रह गए होते। कहते हैं कि वक्त की मार हमेशा भले के लिए होती है। चूंकि सीढ़ियां उतरते हुए वह नौजवान फिसल कर गिर चुका था इसलिए उसे अंदाजा हो गया था कि उसे और कड़ी मेहनत और मशक्कत करनी है।
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