बंग्लादेश ने 1600 से अधिक रोहिंग्या शरणार्थियों को बाढ़ वाले सुदूर द्वीप पर भेजा

बंग्लादेश ने 1600 से अधिक रोहिंग्या शरणार्थियों को बाढ़ वाले सुदूर द्वीप पर भेजा

ढाका: बांग्लादेश की सरकार ने मानव अधिकार संगठनों की अपील की अनदेखी करते हुए शुक्रवार को 1,600 से अधिक रोहिंग्या शरणार्थियों के पहले समूह को एक सुदूर द्वीप पर भेज दिया है। हालांकि, बांग्लादेशी अधिकारियों का कहना है कि शरणार्थियों को उनकी इच्छा के खिलाफ द्वीप पर नहीं भेजा जा रहा है।

वहीं शरणार्थियों के ट्रांसफर की प्रक्रिया को रोकने की मानवाधिकार समूहों ने अपील की है। जबकि बांग्लादेश के सरकार का कहना है कि केवल उन शरणार्थियों को द्वीप पर भेजा जा रहा जो वहां जाना चाहते हैं। सरकार का कहना है कि शिविरों में इससे अव्यवस्था कम हो जाएगी।

भाषन चौर द्वीप पर आती है बाढ़

दूसरी तरफ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और शरणार्थियों का आरोप है है कि कुछ रोहिंग्याओं को जबरन द्वीप पर भेजा जा रहा है। रोहिंग्या शरणार्थियों को जिस द्वीप पर भेजा जा रहा है उसका नाम भाषन चौर है। 20 साल पहले इस द्वीप को समुद्र में खोजा गया था और यहां अक्सर बाढ़ आ जाती है।

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फिलहाल, बांग्लादेश के कॉक्स बाजार के शिविरों में रोहिंग्या शरणार्थी रहते हैं। इस स्थान पर करीब दस लाख रोहिंग्या शरणार्थियों के रहने का इंतजाम है। यहा शिविर शरणार्थियों से भरे पड़े हैं। शिविर में अक्सर असुविधाओं का सामना रहता है। यहां रहने वाले रोहिंग्या म्यांमार से जान बचाकर आए थे।

शरणार्थियों की शिकायत

अधिकारियों ने शुक्रवार को 1,600 शरणार्थियों के पहले जत्थे को भाषन चौर पर भेजा। अधिकारियों से कई संगठनों ने भेजने की प्रक्रिया को रोकने की अपील की। हालांकि, अधिकारियों पर इसका असर होता नहीं दिखा। बांग्लादेश के विदेश मंत्री अब्दुल मोमिन ने कहा, “सरकार किसी को भी जबरदस्ती भाषन चौर में नहीं ले जाएगी। हम अपनी इस स्थिति पर कायम है।”

हालांकि, कुछ शरणार्थियों के हवाले से रॉयटर्स समाचार एजेंसी ने खबर दी है कि सरकार द्वारा नियुक्त स्थानीय नेताओं द्वारा तैयार सूची में उनके भी नाम शामिल हैं, लेकिन उन्होंने द्वीप पर जाने की सहमति नहीं दी थी।

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नौसेना के अधिकारियों का कहना है कि सात नावों की व्यवस्था शरणार्थियों को ले जाने के लिए की गई है। जिसमें दो नाव पर खाने-पीने का सामान होगा। रॉयटर्स को 31 वर्षीय एक शरणार्थी ने बताया, “वे हमें जबरन उठाकर ले जा रहे हैं। तीन दिन पहले जब मुझे पता चला कि मेरे परिवार का नाम सूची में है, तो मैं भाग गया, लेकिन कल उन्होंने मुझे पकड़ लिया और अब मुझे द्वीप पर भेज रहे हैं।”

अपने बेटे और अन्य रिश्तेदारों को छोड़ने के लिए आईं 60 वर्षीय सोफिया बताती हैं, “उन्होंने मेरे बेटे को इतनी बुरी तरह पीटा कि उसके दांत टूट गए, ताकि वह द्वीप पर जाने के लिए तैयार हो जाए। मैं उसे और उसके परिवार को देखने आई हूं और हो सकता है कि यह आखिरी बार हो।” इसके बाद सोफिया रोने लगती हैं। अपने भाई और उसके परिवार को अलविदा कहने आए 17 साल के हाफिज अहमद ने बताया, “मेरा भाई दो दिनों से लापता था। अब हमें पता चला कि वह यहां (ट्रांजिट कैंप में) है, जहां से उसे द्वीप ले जाया जाएगा। वह खुद से नहीं जा रहा है।”

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मानवाधिकार संगठनों क्या हैं आरोप?

मानवाधिकार समूहों ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक, द्वीप पर जाने के लिए कुछ शरणार्थियों को मजबूर किया गया है। जैसा कि मालूम कि साल 2017 में म्यांमार के एक सैन्य अभियान के दौरान अधिकांश रोहिंग्या मुसलमानों के गांव नष्ट हो गए थे। संयुक्त राष्ट्र के जांचकर्ताओं के अनुसार, म्यांमार में रोहिंग्याओं के जनसंहार के बाद लाखों लोग वहां से भागकर बांग्लादेश आ गए थे।

एक बयान में संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि वह शरणार्थियों को द्वीप पर भेजने की प्रक्रिया में शामिल नहीं है और उसे इस बारे में अधिक जानकारी नहीं है। दरअसल, भाषन चौर द्वीप 13,000 एकड़ क्षेत्र में फैला है जहां पर एक लाख रोहिंग्या के लिए आश्रय का इंतजाम किया गया है। बंग्लादेश की सरकार का दावा है कि बाढ़ से बचाने के लिए द्वीप पर बांध बनाए गए हैं। लेकिन लोगों का कहना है कि तूफान के दौरान पानी द्वीप पर आ सकता है।

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