दिल्ली में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों को पिछले दिनों पुलिस ने हिरासत जिसके बाद इस समुदाय के लोगों में खौफ का माहौल है। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश की सरकार भी रोहिंग्याओं पर पकड़ मजबूत करती जा रही है। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिल्ली में सिंचाई विभाग की भूमि पर हुए कथि अवैध कब्जे को खाली कराने का आदेश दिया है।
दिल्ली सीमा से लगे यमुना खादर में उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग की कुल 1007 हेक्टेयर जमीन है। ये जमीनें ओखला, जसोला, मदनपुर खादर, आली, सैदाबाद, जैतपुर, मोलरवंद और खुरेजी खास में हैं। इसमें सिंचाई विभाग की 20.9077 हेक्टेयर यानी 51.66 एकड़ जमीनों पर कथित अवैध कब्जा है।
उत्तर प्रदेश सरकार का पक्ष है कि यमुना किनारे दिल्ली में उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग की अरबों रुपये की जमीन है जिसे पिछली सरकारों की मिली-भगत से रोहिंग्याओं ने अवैध कब्जा कर लिया है। अब मुख्यमंत्री योगी ने इस अवैध कब्जों को खाली कराने का निर्देश दिया है।
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डी.डब्ल्यू. की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में बतौर रोहिंग्या शरणार्थी साल 2008 से रह रहे रिजवान (बदला हुआ नाम) ने बताया, “भारत में रोहिंग्या इन दिनों डरे हुए हैं, पुलिस उन्हें यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी की तरफ से दिए पहचान पत्र के बावजूद उठाकर ले जाती है।”
पुलिस बुधवार को दिल्ली के कालिंदी कुंज स्थित कंचन कुंज झुग्गी बस्ती से रोहिंग्या परिवार के चार सदस्यों को थाने उठाकर ले गई। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के मुताबिक यह ‘नियमित अभियान’ है और लोग गिरफ्तार नहीं किए गए हैं।
अधिकारी ने बताया कि सभी गिरफ्तार लोगों को एफआरआरओ भेज दिया गया क्योंकि उनके पास वैध दस्तावेज नहीं थे। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकारी ने कहा, “एफआरआरओ केस पंजीकृत करेगा और उन्हें वापस उनके देश भेज देगा।”
23 मार्च को अकेले कंचन कुंज से छह लोगों और 24 मार्च को श्रम विहार कैंप से छह लोगों को पुलिस उठा ले गई। रोहिंग्या अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि जितने भी लोगों को पुलिस ने पकड़ा था उनमें से सिर्फ एक का पहचान पत्र एक्स्पायर हो गया जिसे कोरोना महामारी के चलते रिन्यू नहीं कराया जा सका है।
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रोहिंग्या मानवाधिकार इनिशिएटिव फाउंडर के संस्थापक और निदेशक, सब्बीर क्याव मीन ने बताया, “सभी 16 लोगों में से एक के पास यूएनएचसीआर के वैध शरणार्थी कार्ड हैं। एक व्यक्ति के कार्ड की समय सीमा समाप्त हो गई और वे इसे रिन्यू नहीं कर सकते क्योंकि यूएनएचसीआर कार्यालय कोरोना महामारी के कारण बंद है। पुलिस अब कुछ भी दावा कर सकती है; महामारी के दौरान इन लोगों को हिरासत में लेने का क्या मतलब है?”
रिजवान का कहना है कि म्यांमार से जान बचाकर आए रोहिंग्या शरणार्थियों के बारे में भारत सरकार को ध्यान देना चाहिए और उन्हें इंसानीयत के तौर मदद दी जानी चाहिए। साथ ही उन्होंने कि म्यांमार लौटना इस वक्त लोगों के लिए नामुमकिन है क्योंकि वहां की स्थिति खतरनाक बनी हुई है। दूसरी तरफ म्यांमार ने गुरुवार को एक 14 वर्षीय रोहिंग्या लड़की को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, जो लगभग दो साल पहले अस्पष्ट परिस्थितियों में भारत पहुंची थी।
असम के कछार जिले की पुलिस की एक टीम लड़की को लेकर मणिपुर के मोरेह में भारत-म्यांमार सीमा पर गई थी जहां उसे सौंप दिया जाना था। लेकिन पड़ोसी देश के आव्रजन विभाग ने यह कहते हुए अंतरराष्ट्रीय सीमा के गेट खोलने से इनकार कर दिया कि वर्तमान में किसी भी निर्वासन के लिए स्थिति उपयुक्त नहीं है। पिछले दिनों जम्मू में 168 रोहिंग्या शरणार्थियों को हिरासत में लिया गया था जिन्हें वापस म्यांमार भेजने की तैयारी की जा रही है।
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दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट में उनकी रिहाई की मांग को लेकर याचिका दायर की गई है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। याचिकाकर्ता की मांग है कि जो लोग होल्डिंग सेंटर में रखे गए हैं उन्हें भारत से वापस न भेजा जाए। कुछ रोहिंग्या लोगों की तरफ से वकील प्रशांत भूषण ने याचिका दाखिल की है। केंद्र सरकार के वकील तुषार मेहता ने सुनवाई के दौरान कहा कि भारत ने शरणार्थी कंवेन्शन पर हस्ताक्षर नहीं किया है।
रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए काम करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. शाहिद सिद्दीकी बताते हैं, “रोहिंग्या मुसलमान देश के अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं और वे जहां रहते हैं उस इलाके के थाने में उनका विवरण दर्ज होता है।” सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, रोहिंग्या मुस्लिमों और बांग्लादेशी नागरिकों समेत 13,700 विदेशी जम्मू और सांबा जिलों में रह रहे हैं।
देखा जाए तो कोरोना महामारी को दौरान रोहिंग्या शरणार्थियों की स्थिति और खराब भी हुई है। अधिकतर के पास आजीविका के साधन नहीं हैं। डॉ. सिद्दीकी बताते हैं कि रोहिंग्या शरणार्थी आम तौर पर मजदूरी, सब्जी बेचकर या फिर रिक्शा चलाकर गुजारा करते हैं। हालांकि, महामारी के दौरान ये अवसर भी कम हुए हैं। डॉ. सिद्दीकी के अनुसार, “महामारी के समय लॉकडाउन में रोहिंग्याओं को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, उनके सामने खाने-पीने की दिक्कतें आई।”
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देखा जाए तो भारत सरकार की ओर से रोहिंग्या शरणार्थियों के साथ यह व्यावहार ऐसे समय पर किया जा रहा है जब म्यांमार में तख्तापल्ट के बाद गृहयुद्ध की स्थिति बनी हुई है। हर दिन कोई-न-कई सेना की गोलियों के शिकार हो रहे हैं। ऊपर से कोरोना महामारी की मार अलग से है। हालांकि, कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यह सबकुछ पांच राज्यों में हो रहे चुनाव के मद्दे नजर किया जा रहा है ताकि हिंदू-मुसलमान के नाम पर गोलबंदी हो सके।
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