11 राज्यों के लोग लॉकडाउन खत्म होने के 5 महीने बाद भी हैं भुखमरी के शिकार: रिपोर्ट

11 राज्यों के लोग लॉकडाउन खत्म होने के 5 महीने बाद भी हैं भुखमरी के शिकार: रिपोर्ट

नई दिल्ली: कोरोना महामारी के कारण देशभर में लॉकडाउन लागू किया गया जिसके चलते लोगों की जिंदगी चरमरा गई। लेकिन लॉकडाउन खत्म होने के पांच महीने बाद भी गरीबों और समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों के बीच भुखमरी की समस्या गंभीर स्थिति में बनी हुई है।

कुछ गैर-सरकारी संगठनों ने भोजन का अधिकार अभियान के तहत ‘हंगर वॉच’ रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट मुताबिक, देश के कम-से-कम 11 राज्यों ऐसे हैं जहां लोगों को भूख का सामना करना पड़ रहा है। सितंबर और अक्टूबर 2020 के बीच यह सर्वे किया गया था। 3,994 लोग इस सर्वे में शामिल हुए थे जिसमें से अधिकतर लोगों की सैलरी 7,000 रुपये प्रति महीने से कम थी।

सर्वे जिन राज्यों में किए उनमें उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, झारखंड, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु राज्य शामिल थे। ग्रामीण क्षेत्रों के 2,186 व्यक्तियों का साक्षात्कार रिपोर्ट के लिए लिया गया। बाकी का सर्वेक्षण शहरी क्षेत्रों में किया गया। सर्वेक्षण के लिए गए इंटरव्यू में मुख्य रूप से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और मुस्लिमों समेत धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को भी शामिल किया था।

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रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है, “विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों के लगभग 77 फीसदी परिवारों, 76 फीसदी दलितों और 54 फीसदी आदिवासियों ने बताया कि सितंबर-अक्टूबर में लॉकडाउन से पहले की तुलना में उनके भोजन की खपत में कमी आई है।”

आगे रिपोर्ट में कहा गया, “जहां तक अनाज, दाल और सब्जियों की खपत का सवाल है तो 53 फीसदी ने बताया कि चावल-गेहूं की खपत सितंबर-अक्टूबर में घट गई। वहीं चार में से एक का कहना था कि उनकी खपत में ‘बहुत कमी’ आई है।” रिपोर्ट के निष्कर्षों के मुताबिक, 64 फीसदी लोगों ने कहा कि पिछले दो महीनों में उनकी दाल की खपत कम हो गई है और 73 फीसदी ने कहा कि उनकी हरी सब्जियों की खपत कम हो गई है।

रिपोर्ट के हवाले से अखबार ने लिखा है, “लगभग 56 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उन्हें लॉकडाउन से पहले कभी भी भोजन छोड़ना नहीं पड़ा था। हालांकि, सितंबर और अक्टूबर में 27 प्रतिशत लोगों को बिना भोजन के सोना पड़ा। 20 में से लगभग एक परिवार अक्सर बिना खाए सोता है।”

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अन्न सुरक्षा अभियान द्वारा गुजरात में किए गए सर्वेक्षण में कहा गया है कि कभी-कभी घर में भोजन की कमी के कारण 20.6 फीसदी परिवारों ने भोजन छोड़ दिया, जबकि 28 फीसदी ने कहा कि उन्हें भोजन के बिना सोना पड़ा।

अखबार ने लिखा है कि गुजरात के नौ जिलों- अहमदाबाद, भावनगर, दाहोद, मोरबी, आणंद, भरूच, नर्मदा, पंचमहल और वडोदरा में किए गए सर्वेक्षण में ये बात सामने आया कि राज्य में कई राशन कार्ड को ‘निष्क्रिय’ कर दिया गया है।

अखबार ने ‘हंगर वॉच’ रिपोर्ट का हवाला देते हुए लिखा है, “सरकार ने परिवारों को सटीक जानकारी नहीं दी है, जिनमें से बहुत से वंचित समुदायों से हैं, कि आखिर क्यों उनके राशन कार्ड का उपयोग नहीं किया जा सकता है। राशन कार्ड को ’निष्क्रिय’ करने की यह प्रक्रिया स्थानीय तालुका और जिला स्तर पर हुई है। इसके अतिरिक्त कई क्षेत्रों में कोविद-19 के कारण तालुका स्तर की समिति की बैठकें प्रभावी ढंग से नहीं हुए है, नतीजन वंचित परिवारों को खाद्य सुरक्षा से वंचित हो रहे हैं।”

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वहीं, द हिंदू अखबार ने इन निष्कर्षों के आधार पर अपनी एक रिपोर्ट में कहा गया है, “लगभग 71% जो मांसाहारी थे, वे अंडे या मांस नहीं खरीद पाए। कोविड-19 के प्रभावों के बारे में पूछे जाने पर लगभग 66 फीसदी या दो तिहाई लोगों ने कहा कि वे पहले जितना नहीं खा पाते हैं।” भोजन का अधिकार अभियान ने इस सर्वे के आधार पर मांग की है कि सभी परिवारों को जून, 2021 तक कम-से-कम 10 किलो अनाज, 1.5 किलो दाल और 800 ग्राम तेल दिया जाए।

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