MSP की गारंटी देने वाली मोदी सरकार ने किया खाद्य सब्सिडी पर 45 फीसदी की भारी कटौती

MSP की गारंटी देने वाली मोदी सरकार ने किया खाद्य सब्सिडी पर 45 फीसदी की भारी कटौती

पिछले दो महीने से किसान कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। किसान मांग करते रहे हैं कि एमएसपी पर केंद्र सरकार कानून लाए, जिस पर सरकार बार-बार कहती रही है कि एमएसपी पर ही खरीद होगी उसमें कोई छेड़छाड़ नहीं होगा। लेकिन अपने वादों के विपरीत और किसानों के उम्मीदों के विपरीत कल आम बजट में मोदी सरकार ने कृषि और ग्रामीण विकास के बजट में कटौती कर दी है।

सरकार ने कृषि और ग्रामीण विकास से जुड़ी कई महत्वपूर्ण योजनाओं का बजट कम कर दिया है। वहीं इसके बाद एमएसपी पर खरीद को लेकर भी आशंकाएं पैदा हो गई हैं। दरअसल, सरकार ने खाद्य सब्सिडी में लगभग 45 प्रतिशत की भारी कटौती की है। सरकार के इस निर्णय के बाद यह अनुमान है कि सरकार एमएसपी पर खरीद कम कर देगी। हालांकि, सरकार की तरफ से लगातार कहा जा रहा है कि एमएसपी पर खरीद में कोई कमी नहीं आएगी।

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वित्त वर्ष 2020-21 में भी हुई थी कटौती

एमएसपी पर सरकारी खरीद बढ़ाने के दावों के बीच नए वित्त वर्ष के लिए खाद्य सब्सिडी को 4.22 लाख करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से घटाकर 2.42 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है। ऐसे में जाहिर है कि नए वित्त वर्ष में खाद्यान्न की सरकारी खरीद को मौजूदा साल के स्तर पर बनाए रखना मुश्किल होगा। इससे सरकारी खरीद में कमी आ सकती है। जबकि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि एमएसपी की व्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन किया गया है ताकि सभी जिलों में लागत का डेढ़ गुना दाम मिल सके।

ऐसा नहीं है कि सरकार ने पहली बार खाद्य सब्सिडी में पहली बार उसने कटौती की है। हर साल केंद्र सरकार सब्सिडी में कटौती कर रही है। 2019 के मुकाबले, बीते 2020 के बजट में सरकार ने सब्सिडी में भारी कटौती की थी। सरकार ने 2020 के आम बजट में खाद्य सब्सिडी में करीब 70,000 करोड़ रुपये की कटौती की थी। तब केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए गए बजट में वित्त वर्ष 2020-21 के लिए खाद्य सब्सिडी 115569.68 करोड़ रुपये आवंटित किया था। उसके जबकि पिछले बजट में इसी योजना के लिए 184220 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था।

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बजट पर किसानों की प्रतिक्रिया

केंद्रीय वित्तीय बजट पर सोमवार को अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने कहा कि आम बजट में भारतीय कृषि के लिए कुछ नया नहीं है। उन्होंने सरकार के दावों को झूठ का पुलिंदा बताया। किसान नेता ने कहा कि बजट में निजीकरण को बढ़ावा दिया गया है और देशभर के आंदोलनकाकरी किसानों की पूरी तरह से अवहेलना की है, जो अपने श्रम के उचित पारिश्रमिक की मांग कर रहे है।

हन्नान मोल्लाह ने कहा, “2020-21 में, कृषि के लिए बजटीय आवंटन 134349 करोड़ रुपये था, जो 2021-22 में गिरकर 122961 करोड़ रुपये हो गया है। कृषि के आवंटन में 8% की कमी आई है। जबकि 2019-20 और 2020-21 में, चावल और गेहूं की खरीद अधिक थी क्योंकि खुले बाजार की कीमतें बहुत कम थीं और सरकार को अधिक अनाज की खरीद के लिए मजबूर किया गया था, हालांकि खरीद का स्तर आवश्यकता से बहुत कम था और अधिकांश किसानों ने अपनी उपज को कम कीमतों पर बेच दिया।”

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बजट से भी कम खरीद सरकार ने की

किसानों ने कहा कि वित्त वर्ष 2020-21 में पीएम-किसान योजना को 75,000 करोड़ रुपये का बजट आवंटन किया गया था, लेकिन वास्तविक खर्च केवल 2,000,000 करोड़ रुपये था। यह सरकार के खोखले दावों को दर्शाता है कि उसने लॉकडाउन अवधि के दौरान किसानों की मदद करने के लिए पीएम-किसान योजना का इस्तेमाल किया। किसान नेता हन्नान मोल्लाह ने कहा, “इसके अलावा, 2021-22 के लिए केवल 65,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। मसलन प्रधान मंत्री कृषि सिचाई योजना में, 2019-20 में वास्तविक खर्च 2700 करोड़ रुपये और 2020-21 के लिए बजट खर्च 4000 करोड़ रुपये था। लेकिन 2020-21 में वास्तविक व्यय 2563 करोड़ रुपये था, जो कि 2019-20 में वास्तविक व्यय से कम है।”

उन्होंने आगे बताया, “वित्त मंत्री ने एमएसपी उत्पादन लागत से 50% ऊपर की बात भी झूठ कही है। सच्चाई यह है कि सरकार A2 + FL लागत को उत्पादन की लागत के रूप में मानती है, न कि स्वामीनाथन आयोग द्वारा सुझाए गए C2 लागत के रूप में। यह भी एक तथ्य है कि भारत में अधिकांश किसान अभी भी खरीद नेटवर्क के बाहर हैं, और एमएसपी से वंचित हैं। हालांकि, सरकार ने खरीद या एमएसपी के लिए किसानों की पहुंच का विस्तार करने के बारे में कोई योजना की घोषणा नहीं की है।”

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खाद्य सब्सिडी में वृद्धि सिर्फ भ्रम

किसान नेता ने कहा, “वास्तव में, वित्त मंत्री ने 2013-14 में खरीद के साथ पिछले साल के अपने बजट भाषण खरीद में तुलना करके गुमराह करने की कोशिश की है, जब कई फसलों के लिए खुले बाजार मूल्य एमएसपी से अधिक थे और किसानों को सरकार एजेंसियों को उपज बेचने की जरूरत नहीं थी। वित्त मंत्री ने खुद कहा है कि 2020-21 में केवल 1.54 करोड़ किसानों को धान और गेहूं के लिए एमएसपी से लाभ हुआ है। यह एक ऐसा प्रवेश है, जिसमें अधिकांश किसानों को एमएसपी-आधारित खरीद से लाभ नहीं मिला है। वास्तव में, इसकी मध्यम अवधि की योजना खरीद को कम करना है, जो तीन कृषि अधिनियमों को लागू करने के लिए अपनी जिद के माध्यम से दिखाई देती है।”

हन्नान मोल्लाह ने कहा, “खाद्य सब्सिडी में वृद्धि सिर्फ भ्रम है। पिछले कुछ वर्षों में, सरकार एफसीआई को अपने बकाया का भुगतान करने में विफल रही है और एफसीआई को एनएसएसएफ से उच्च-ब्याज ऋण लेने के लिए मजबूर कर रही है। यह स्वागत योग्य है कि बजट में एफसीआई को कर्ज के बोझ में न डालने के अपने इरादे की घोषणा की गई है, लेकिन एफसीआई को दिए जाने वाले पिछले बकाए पर चुप रही है। जब तक इन देय राशि का भुगतान नहीं किया जाता है, तब तक एफसीआई की वित्तीय व्यवहार्यता पर जोर दिया जाएगा। यह भी देखना बाकी है कि सरकार 2021-22 में एफसीआई को इस दायित्व को पूरा करेगी या नहीं।”

गौरतलब है कि सरकार विभिन्न खाद्यान्न योजनाओं के लिए खाद्य सब्सिडी देती है। और एमएसपी पर खाद्यान्न की आपूर्ति के लिए किसानों से खरीद करती है। ऐसे में जब खाद्य सब्सिडी में कटौती की गई है तब एमएसपी पर सरकारी खरीद में भी कमी की जा सकती है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत खाद्य सामग्रियों पर सब्सिडी दी जाती है और सस्ते दाम पर लोगों को राशन दिए जाते हैं। अब इस योजना का बजट कम करने से आम लोगों पर प्रभाव पड़ने की संभावना है।

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