नई दिल्लीः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मऊ के एक युवक के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने को लेकर पुलिस को फटकार लगाई है। युवक ने इस साल मार्च महीने में तब्लीगी जमात कार्यक्रम में हिस्सा लिया था जिसके बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुए उस पर हत्या की धारा लगा दी थी। कोर्ट ने पुलिस द्वारा हत्या की धारा के तहत केस दर्ज करने को कानून का दुरुपयोग बताया है।
मऊ निवासी मोहम्मद साद के खिलाफ आईपीसी की धारा 307 के तहत हत्या के प्रयास के मामले में कार्यवाही पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। साद पर मार्च महीने में आरोप लगा था कि उन्होंने तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में शिरकत की और इसका जानकारी जान-बूझकर स्थानीय प्रशासन से छुपाई। उन पर दिल्ली से घर लौटने पर स्वेच्छा से क्वारंटीन नहीं होने का भी आरोप था।
साद ने अदालत में इस मामले में अपने खिलाफ दायर चार्जशीट को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अजय भनोट ने ये आदेश पारित किया। याचिकाकर्ता ने साद ने अदालत के समक्ष दलील दी कि आईपीसी की धारा 269 और 270 के तहत उन पर पहले घातक वायरस फैलाने के लिए चार्जशीट दाखिल की गई थी लेकिन बाद में इसे रद्द कर इसकी जगह हत्या के प्रयास के लिए आईपीसी की धारा 307 के तहत एक नई चार्जशीट दाखिल की गई।
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संबंधित पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने कहा, “आईपीसी की धारा 307 के तहत चार्जशीट दायर करना प्रथमदृष्टया कानून के दुरुपयोग को दर्शाता है।” अदालत ने इस मामले में राज्य सरकार, मऊ के एसएसपी और संबंधित पुलिस अधिकारी को अपना जवाब दाखिल करने का भी निर्देश दिया है।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली स्थित निजामुद्दीन के तब्लीगी जमात के मरकज में 13 मार्च से 15 मार्च बीच इज्तेमा हुई थी। इज्तेमा में सऊदी अरब, इंडोनेशिया, दुबई, उज्बेकिस्तान और मलेशिया समेत विश्व के कई देशों के मुस्लिम धर्म उपदेशकों ने भाग लिया था। इस सभा में देशभर के विभिन्न हिस्सों से हजारों की संख्या में भारतीयों ने भी हिस्सा लिया था, जिनमें से आगे चल कर कई लोग कोरोना संक्रमित पाए गए थे।
जब ये मामला सामना आया था तब देश में कोरोना के मामले भी तेजी से बढ़ रहे थे। लेकिन कोरोना फैलाने के लिए केंद्र सरकार, भाजपा नेता और मीडिया ने मुस्लिम समुदाय और विशेष रूप से तब्लीगी जमात के लोगों को जिम्मेदार ठहराया था। इतना ही नहीं दिल्ली की केजरीवाल सरकार भी कोरोना मरीजों की संख्या बताने के बाद अलग से तब्लीगी जमात के संक्रमित लोगों की संख्या अलग से मीडिया को बताती थी।
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आगे चलकर मई महीने में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने जन स्वास्थ्य एवं महामारी नियंत्रण अध्यादेश 2020 को मंजूरी दी थी, जिसमें कोरोना के ऐसे मरीजों के लिए अधिकतम उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया है, जो जान-बूझकर किसी की मौत का कारण बनें। यह अध्यादेश मुख्यमंत्री के उस बयान के कुछ दिनों बाद ही पारित किया गया, जब उन्होंने0 तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में शामिल लोगों के संक्रमण छिपाने का आरोप लगाया था और उन्हें अपराधी बताया था।
मुख्यमंत्री योगी ने कहा था, “यह अपराध तब्लीगी जमात से जुड़े लोगों द्वारा किया गया था।” मुख्यमंत्री ने कहा था कि तब्लीगी जमात के लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, जिससे आशंका बढ़ी थी कि अध्यादेश से सिर्फ चुनिंदा लोगों को ही निशाना बनाया जाएगा। फिर कई दूसरे राज्यों के स्थानीय और विभिन्न हाईकोर्ट ने पाया कि तब्लीगी जमात के कार्यक्रमों में शामिल लोगों के खिलाफ पुलिस विभाग द्वारा कार्रवाई करना ज्यादती थी।
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मुंबई में तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में शामिल कोर्ट ने लोगों के खिलाफ दर्ज सभी मामलों में आरोपियों को या तो बरी कर दिया था या फिर आरोपमुक्त कर दिया था। यह कदम बॉम्बे हाईकोर्ट के उस बयान के बाद उठाया गया, जिसमें अदालत ने कहा था कि तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में शामिल लोगों को बलि का बकरा बनाया गया था।
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