हबीब-उर-रहमान की कहानी: चोर की माँ

हबीब-उर-रहमान की कहानी: चोर की माँ

जब तेइसवां रोजा बीत गया तब उसे लगा कि अब देर हो रही है। हालाँकि, वह नहीं चाहता था कि इस बार ईद पर घर जाए। घर जाओ तो पचास तरह के झंझट, खासकर ट्रेन का टिकट लेना सबसे बड़ी मुसीबत का काम है। पहले लंबी लाइन में लगो और उसके कुछ ही सेकंड में रिज़र्वेशन फुल हो जाता है। अगर रिज़र्वेशन मिल भी गया तो ट्रेन में लोगों की भीड़ देख हालत पतली हो जाती है। रश इतना कि पूछो मत, पैर धरने की भी जगह नहीं मिलती है। अगर ग़लती से बैतूल खला का एहसास हो आया तो टॉयलेट तक जाते-जाते दम निकल जाता है। वह पहली बार घर से बाहर इतनी दूर आकर आज़ाद महसूस कर रहा था। दो महीने पहले ही तो आया था घर से, सोचा क्या जाना घर-वर। जाओ तो नमाज़ पढ़ो। सेवइयां खाओ। दो-चार लोगों से गले मिलो और फिर दो दिन बाद लौटना आओ। जब बार-बार घर वालों ने चले आने का इसरार किया तो उसने टालने के लिए ‘हाँ’ कह दी; पर अब्बा का ख्याल आया तो सोचा हो आने में ही भलाई है। ठीक उसी दिन शाम को अम्मी का कॉल आया। उसने हालचाल लेने के बाद पूछा- “बेटा तेरे पास पैसे-वैसे हैं, तुमने अपने लिए कपड़े-वपड़े लिए या नहीं अभी तक?”

हामिद ने कहा- ” हाँ अम्मी, हैं पैसे। अभी बहुत वक़्त है, ले लेंगे।”

“आज सत्रहवां रोजा था, तुझे नहीं पता क्या। अब मुश्किल से एक हफ्ते बचे हैं ईद को। अब क्या तुम चाँद रात को घर आओगे!” उधर से अम्मी ने कहा।

“ठीक है, जल्दी आ जाएंगे, चलो अब फोन रखो।” इससे पहले की उधर से उसकी माँ कुछ कहती उसने झुंझला कर कॉल काट दिया और दोस्तों से मिलने निकल गया। उधर, माँ मन मसोसकर रह गई। वह और बात करना चाहती थी। माँ फोन टेबल पर रखते हुए बुदबुदाने लगी- “पता नहीं यह लड़का कब सुधरेगा। भला इतना कौन लापरवाह होता है। कैसे खाता-पीता है अल्लाह ही जाने।” यह कहते हुए वो अब्बा के लिए चाय बनाने चली गई।

हामिद कोई बीस-इक्कीस साल का लड़का था जिसने इसी साल बी.टेक में दाखिला लिया था। पिता ए-ग्रेड के सरकारी मुलाजिम हैं। सम्पन्न परिवार है और कुल मिलाकर पाँच लोग रहते हैं। दो बड़ी बहनें और हामिद उन सब में सबसे छोटा। इकलौता होने के चलते लाड-प्यार सबसे अधिक उसको ही मिला है। सख्त मिज़ाज़ बाप के सामने उसकी तो खैर एक नहीं चलती पर माँ के लिए वह दुनिया का सबसे प्यारा बच्चा है। और बहनें हैं कि उसकी हर बुराई को ताक पर रख जाती हैं। जब वह चारों तरफ से मुसीबत में घिर जाता है तो उसकी बहनें ही उसका आखिरी सहारा होती हैं।

आज जब उसको याद आया कि आज तेइसवाँ रोजा है और इससे पहले की अब्बा का कॉल आए उसने सोचा अब चुपचाप निकल लेना चाहिए। इसलिए उसने सबसे पहले अपनी बड़ी बहन को फोन लगाया- “हेल्लो आपा!”

उधर से चहकते हुए आवाज़ आई- “वाह! तुमको हमारी कैसे याद आ गई। तू कब आ रहा है।”

“कल का तत्काल टिकट निकाला है।” उसने बताया।

“लेकिन तुमने तो एक महीने पहले कहा था कि ईद का टिकट लेकर रखा है?” कुलसुम ने गुर्राते हुए पूछा।

हामिद ने दबे लहज़े में कहा- “मैंने झूठ बोला था। कोई टिकट-विकट नहीं ली थी।”

“अच्छा तो अब वहाँ जाकर झूठ भी बोलने लगे हो! चल ठीक है फिर मैं अब्बा को बताती हूँ कि तुम घरवालों से भी झूठ बोलते हो, बेवकूफ बनाते हो…।”

“प्लीज! आपा अब्बा को मत बताना।” उसने इल्तिजा की।

“ठीक है नहीं बताऊँगी, लेकिन एक शर्त पर।” कुलसुम ने ब्लैकमेल करने वाले अंदाज़ में बोली।

हामिद ने पूछा- “कौन-सी शर्त!”

“जो-जो बोलेंगे तुम खरीद कर लाओगे वहाँ से।” उसने कहा।

“ठीक है बताओ। कोशिश करूँगा लेकिन उसके पैसे कौन देगा!”

“तुम दोगे और कौन देगा।”

“मेरे पास नहीं है उतने पैसे।”

“अब्बा ने एक हफ्ते पहले ही तुमको तीस हजार भेजा था न।”

“भेजा था तो, इसका क्या मतलब। वे हिसाब मुझसे माँगेंगे तो तुम दोगी उसका हिसाब।”

“तुमसे कोई हिसाब नहीं मांगता है, मुझे पता है। ख़ैर! तू रहने दे। समान लेता आ, मैं यहाँ अम्मी से बोलकर अपने हिस्से का पैसा दिला दूँगी।”

हामिद खुश होकर बोला- “फिर ठीक है। ला देंगे। जो चाहिए व्हाट्सएप कर दो।”

उसके बाद उसने छोटी बहन को फोन देने को कहा। कुलसुम ने हिन्दा को आवाज़ लगाई- “हामिद का कॉल है, तुझसे बात करेगा।”

कुछ ही पल में हिन्दा फोन पर थी- “हेल्लो! हामिद।”

“आपी तुमको क्या चाहिए यहाँ से।” हामिद ने पूछा।

“अब्बा सबके लिए कपड़ा लेकर आ गए हैं। अम्मी, आपा और मेरे लिए दो-दो जोड़ी सलवार कमीज और तुम्हारे और खुद अब्बा अपने लिए कुर्ता-पजामा।”

“तुम दोनों के लिए दो-दो जोड़ी और हमें एक, अच्छा!” हामिद ने तंज वाले लहज़े में बोला।

हिन्दा चिड़चिड़ाते हुए बोली- “तुमने भी खरीदा होगा वहाँ सूट-बूट, उसका क्या।”

“अभी कुछ नहीं खरीदा है। आज जाने का इरादा है, इसलिए सोचा तुमलोगों पर भी कुछ मेहरबानी कर दूं।” हामिद ही-ही-ही करते हुए बोला।

उधर से हिन्दा ने फुसफुसा कर पूछा- “आपा ने क्या-क्या बोला है अपने लिए लाने को?”

“क्या-क्या चाहिए मैंने उसे व्हाट्सएप करने बोला है।” हामिद ने बताया।

हिन्दा ने कहा- “मुझे भी वह सब कुछ चाहिए जो तुम आपा के लिए लेकर आओगे।”

“ठीक है तुम दोनों लिखकर एकसाथ भेज दो, और हाँ, उतना ही लिखना जितना मैं ला सकूँ।” यह कहते हुए उधर की बात बिना सुने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया।

कुछ ही समय में दोनों बहनों की एक लंबी लिस्ट व्हाट्सएप पर आ गई- लैक्मे आई लाइनर, लॉरियल मेकअप किट, सैंडल, झुमके, सुर्खाब की मेहंदी, वग़ैरह-वग़ैरह।

व्हाट्सएप पढ़ने के बाद हामिद ने अपने दोस्त को कॉल लगाकर साथ में मार्केट चलने को कहा। उधर से धीरज ने भी बताया कि उसे भी कुछ खरीदारी करनी है, इसलिए शाम पाँच बजे तक निकलते हैं। इधर, हामिद के ध्यान से उतर गया कि उसे आज ही शाम को जाना है खरीदारी के लिए। जब उसे याद आया तो साढ़े पाँच बज चुके थे। वह हड़बड़-दड़बड़ में तैयार हुआ और छह बजने के कुछ मिनट पहले बस स्टैंड पर पहुँच गया। जैसे ही वह पहुंचा 507 नंबर की बस ने स्टैंड छोड़ा। उसने दौड़कर बस पकड़ने की कोशिश की पर वह कामयाब नहीं हो पाया। इसलिए आकर दूसरी बस के आने का इंतज़ार करने लगा। इंतजार करते-करते आधे घंटे बीत गए मगर कोई बस नहीं आई। वह इतनी जल्दी में कमरे से बाहर आया था बस के विलम्ब ने उसे और देर करा दिया। कुछ देर तक बस स्टैंड पर इधर-उधर टहलता रहा और बस आने की दिशा में ताकता रहा। जब उसे लगा कि व्याकुल होने का अब कोई फायदा नहीं, देर अब हो ही गई है तो उसने अपने बैग से हेड फोन निकाला और मोबाइल में गाने सुनने लगा। दिमाग शांत हुआ तो आराम से बस स्टैंड के बगल वाले स्ट्रीट लाइट के खम्बे पर कंधा टिका खड़ा हो गया।

थोड़ी देर बाद उसकी बस आ गई। हेड फोन लगे होने के चलते उसे बस की आवाज़ न सुनाई दी, जब उधर ध्यान गया तो भागता हुआ बस के पिछले गेट पर जा लटका। जब गेट की भीड़ ने धीरे-धीरे जगह पकड़ ली फिर वह भी सरक पर कंडक्टर की सीट के पास टिकट लेने जा पहुँचा। पचास का नोट बढ़ाते हुए कंडक्टर से बोला- “एक महारानी बाग की दे दो।” कंडक्टर पाँच की टिकट काटकर उसके तरफ बढ़ाया और बाकी का पैसा उसकी तरफ बढ़ाते हुए बोला- “ये लीजिए।”

हामिद ने चेंज पैसा लेकर जीन्स के पिछले पॉकेट में डाला तभी उसे अपने मोबाइल का ध्यान आया। उसे महसूस हुआ कि मोबाइल उसके पॉकेट में नहीं है। उसने एक के बाद एक ऊपर-नीचे सभी पॉकेट को टटोल डाला पर मोबाइल नहीं था। उसके होश फाख्ता हो गए। वह बेचैन होकर इधर-उधर देखने लगा। फिर मुड़कर पीछे खड़े लोगों से पूछा- “मेरा मोबाइल आपलोगों में से किसी ने देखा है।” किसी ने कुछ जवाब न दिया। फिर बस के फर्स पर झुककर देखने लगा कि कहीं नीचे तो नहीं गिरा है, पर वहाँ भी न मिला। उसे समझ आ गया कि उसके मोबाइल पर किसी ने हाथ साफ कर दिया है। उसने आगे पीछे देखा सभी लोग खूद में डूबे हुए थे, किसी को किसी से कोई मतलब नहीं था। उनका व्यवहार देख ऐसा लग रहा था जैसे वहाँ कुछ हुआ ही न हो।

लेकिन हामिद ने जब पलट कर पीछे देखा तो उसकी नज़र सत्रह-अठारह साल के लड़के पर पड़ी। मैला-कुचैला कपड़ा और मुँह में गुटखे का लालीपन। उसके दाँत देखने में ऐसे लग रहे थे जैसे उसने वर्षों से मुँह न धोया हो। गर्दन में एक काला मोटा धागा और उसने प्लास्टिक के चपल पहन रखे थे। पता नहीं हामिद को क्यों उस लड़के पर शक हुआ। पलटकर उसने उसका हाथ पकड़ लिया। लड़के ने हाथ झिड़कते हुए बोला- “क्या तरीका है?”

“चलो मोबाइल निकालो!” हामिद उसे घूरता हुआ बोला।

“आपका दिमाग खराब है।” लड़के ने कहा।

लेकिन उसका चेहरा देख ऐसा लग रहा था जैसे वह कुछ छुपा रहा हो। उसके चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थीं। उसने हामिद से हाथ छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन इससे पहले की उसका हाथ उसके हाथों से छूट जाते हामिद ने अपनी पकड़ और मजबूत कर ली। लड़का कुछ सेकंड के लिए शांत हो गया और हामिद के चेहरे को एक टक घुरने लगा। इस दौरान बस में मौजूद लोग दोनों के धड़-पकड़ को देखते रहे। हामिद जो अब उसको पीछे से जकड़ रखा था, के मन में यह भय सताने लगा कि लड़का पलट कर उसके चेहरे पर ब्लेड वगैरह से वार न कर दे। उसने दिल्ली की बसों में चोरों द्वारा पकड़े जाने पर धारदार हथियार से हमला करने की बातें सुन रखी थीं।

लड़का कुछ सेकंड शांत रहा फिर अचानक बहुत फुर्ती से नीचे झुका और हामिद से खुद को छुड़ाकर बस के पिछले गेट की ओर लपका, इतने में पीछे खड़े एक व्यक्ति ने उसे धर दबोचा। दो और लोगों ने उसे पीछे से धकेलकर दुबारा बीच में ला खड़ा किया। लड़का चिल्लाकर बोला- “मैं तो मेहतर का काम करता हूँ, काम करके लौट रहा हूँ। मैं किसी का मोबाइल क्यों चोरी करूँगा।” वह थोड़ा लड़खड़ा रहा था जैसे कोई नशेड़ी नशा करने के बाद हिलता है। बीच से एक आदमी ने पूछा- “जब तुमने मोबाइल चोरी नहीं किया है तो फिर भाग क्यों रहा था?”

उसने अपना कंधा उचकाते हुए बोला- “आपको मैं चोर लगता हूँ, बताइए मैं आपको देखने में चोर लगता हूं, किसी पर भी ऐसे ही इल्जाम लगा देंगे।” फिर उसने अपने पैंट के पॉकेट को बाहर निकलते हुए और शर्ट के पॉकेट को दिखाते हुए बोला- “अगर मैंने चोरी किया होता तो मोबाइल मेरे पास होता।”

उसके पीछे खड़े एक व्यक्ति ने कहा- “हो सकता है तुमने किसी अपने साथी को मारकर पकड़ा दिया हो।”

दूसरा व्यक्ति जो बगल वाले सीट पर बैठा था लपक कर उठा और बोला- “हंड्रेड परसेंट दावे के साथ कहता हूँ भाई साहब आपका मोबाइल इसी ने चोरी किया है। हुलिए से ही यह चोर लगता है।” यह सुन दूसरे लोगों ने भी कहा- “हाँ, हाँ यही चोर है”, चिल्लाने लगे। अचानक से बस में शोर मच गया। हामिद ने भी न आव देखी न ताव लड़के को तीन-चार तमाचे जड़ दिए। यह देख चारों तरफ से लोग उस पर टूट पड़ें। जिसको जो लगा, जैसे लगा, मारने लगे। लड़का पहले तो चिल्लाया और किसी तरह से उनके चंगुल से निकलने की कोशिश की लेकिन जब नाकामयाब रहा तो फिर उँ-आँ करने लगा।

एक व्यक्ति जो सबसे आगे की सीट पर बैठा था भीड़ को चीरता हुआ आगे आया और अपने हैंड बैग से लड़के पर प्रहार करने लगा, फिर भी मन नहीं भरा तो बगल के सीट के ऊपर चढ़ गया और लात-घूंसे बरसाने लगा। इतने में एक बुजुर्ग ने चिल्लाकर कहा- “मर जाएगा ये, बस करो अब।” इस दौरान हामिद धक्के खाकर भीड़ से बाहर आ चुका था। बीच ने लड़का था और उसके चारों तरफ भीड़। कुछ महिलाओं और पुरुषों ने मोबाइल का कैमरा खोल लिया था। वे एक-एक दृश्य को कैमरे में कैद कर रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे वो घटना के एक भी दृश्य को नहीं छोड़ना चाहते थे। उनमें से कुछ ऐसे लोग थे जो लगातार हँसे जा रहे थे। हामिद सोचने लगा कि जो लोग कुछ देर पहले ऐसे व्यवहार कर रहे थे जैसे उनको इस घटना से कोई मतलब नहीं, वे अचानक से उसके समर्थन में कैसे आ गए। यह बहुत अजीब था कि जिसकी मोबाइल चोरी हुई है वह सबसे पीछे खड़ा था और भीड़ आगे थी। एक पल के लिए हामिद के दिमाग में आया कि अगर खुदा-न-खास्ता इस लड़के ने मोबाइल चोरी न की हो तो क्या होगा। यह तो बहुत ही बुरा होगा।

खैर!, जब बुजुर्ग ने लड़के के मर जाने वाली बात कही तो लोग थोड़ा शांत हो गए। एक व्यक्ति ने कहा कि इसे पुलिस में दे दिया जाए। अब तक बस कंडक्टर कुछ नहीं बोल रहा था, ने कहा- “अगले स्टॉपेज पर पुलिस चेकपोस्ट है, आपलोग इसे वहीं लेकर जाइए।” उसके बाद ड्राइवर जो अपनी रफ्तार से गाड़ी को भगाए जा रहा था, को आवाज़ देकर कहा कि वह गाड़ी चेकपोस्ट पर जाकर रोक दे। जब बस चेकपोस्ट पर पहुँची तो वहाँ दो कॉन्स्टेबल पहले से ही खड़े थे। वे दोनों बस में आकर चढ़ गए। शायद शोर सुनकर वह पहले से ही मामले को भांप गए थे और सतर्क हो गए थे। बस में चढ़ते ही ड्राइवर से उन्होंने पूछा- “क्या हुआ है।” ड्राइवर ने कुछ भुनभुना कर जवाब दिया जो सुनाई नहीं दिया किसी को। उसके बाद दोनों कॉन्स्टेबल ने मिलकर लड़के को घसीटते हुए नीचे उतार ले गए। फिर उसमें से एक ने आवाज़ लगाई- “मोबाइल किसकी चोरी हुई?”

“मेरी”, हामिद ने जवाब दिया।

बस से उतरकर हामिद, दोनों कॉन्स्टेबल और चोर पुलिस चौकी में चले गए। चौकी के बाहर थोड़ी देर भीड़ लगी रही और कुछ देर बाद छंट गई। दरअसल, यह एक छोटा-सा कमरा था जो यातायात पुलिसकर्मियों के लिए बना था। पुलिसवालों ने एक कुर्सी देकर हामिद को बैठा दिया और दूसरे जानिब एक कोने में लड़के को जमीन पर बैठ जाने का आदेश दिया। वह वहीं कोने ने घुड़की मार कर बैठ गया। आधे घंटे तक वहाँ सब कुछ शांत रहा। उसके बाद एक अधेड़ उम्र का पुलिसवाला कमरे में दाखिल हुआ और लड़के की ओर इशारा करते हुए कॉन्स्टेबल से पूछा- “यही है?”

“जी साहब”, कॉन्स्टेबल ने जवाब दिया।

उसके बाद वह लड़के पर झुका और उसके कान के नीचे पाँच-छह तमाचे लगाए और चिल्लाकर पूछा- “बता कहाँ है मोबाइल?”

“सर! मैंने मोबाइल चोरी नहीं की है।” लड़का घिघिया कर जवाब दिया।

“फिर किसने चोरी की है बता।” एक और थप्पड़ लगाते पुलिस वाले ने सवाल किया।

“साहब! मुझे नहीं पता।”

“तुझे नहीं पता तो किसे पता है, बता।” उसके बाद उसने लड़के को दो-तीन तमाचे और लगाए पर लड़का कुछ नहीं बका। पुलिसवाला आकर अपने कुर्सी पर बैठ गया और कॉन्स्टेबल को आवाज़ देकर बुलाया और बोला- “जाओ उनलोगों को उठाकर लाओ!”

पुलिस वाले का नाम के. मैथ्यू था, जो उसके नेम बैच पर लिखा था। जब कॉन्स्टेबल बाहर चला गया तो पुलिस वाला हामिद की तरफ मुखातिब हुआ और पूछा- “आपका मोबाइल चोरी हुआ है।”

“जी सर!” हामिद ने जवाब दिया।

“आपको कैसे पता कि आपका मोबाइल इसने चोरी की है?”

“चेहरे से चोर की तरह लगा तो मैंने इसे पकड़कर पूछा तो इसने भागने की कोशिश की, उसके बाद हमलोग पकड़कर यहाँ लाए।” हामिद एक सांस में कह गया।

“देखिए, ये है तो चोर और इनलोगों का यही काम है। लेकिन आपका मोबाइल इसने चोरी किया है या नहीं पता नहीं। मगर हम कोशिश करते हैं कि पता लगाया जाए।”

पुलिस वाले ने कुछ देर हामिद से उसका नाम और अता-पता मालूम किया और उसके बाद बाहर चला गया। कुछ देर में तीन लोग कुछ कंप्लेन लेकर वहाँ आए जिनके साथ एक गोरा, लंबा और हठाकठा पुलिसवाला भी था, उसने आते ही हामिद से कहा- “आप जाकर बाहर बैठिए।”

कुछ समय तक वे लोग आपस में बातें करते रहे और उसके बाद गोरे पुलिसवाले को छोड़ बाकी के तीनों आदमी बाहर चले गए। कुछ मिनट बाद पुलिसवाला अंगड़ाई लेते हुए बाहर निकला और हामिद से पूछा- “आप ही का मोबाइल चोरी हुआ है?”

“जी”, हामिद ने जवाब दिया।

उसके बाद वह अपने हाथों को उँगलियाँ चटकाते हुए अंदर गया और एक काला-सा लोहे की रॉड की तरह कुछ निकाल कर लड़के पर बरसाने लगा। जैसे-जैसे वह रॉड नुमा प्लास्टिक की बेंत उस पर पड़ रही थी वह बाप-बाप करके चिल्ला रहा था। पुलिसवाला मार रहा था और गालियाँ बक रहा था- “बता मादरचोद तूने मोबाइल कहाँ रखा है।”

“मुझे नहीं पता साहब, प्लीज! मुझे मत मारो!”, लड़का हाथ जोड़कर गुहार लगा रहा था। लेकिन न तो इतना मार पड़ने के बावजूद उसके आँसू निकल रहे थे न उसके चेहरे पर उस तरह के दर्द के कोई भाव थे।

जब पुलिसवाला पीट-पाटकर थक गया तो बाहर कुर्सी लाकर बैठ गया और हामिद से मुखातिब होते हुए बोला- “ये साला स्मैक ले रखा है। उसको अभी कितना भी मारा जाए कुछ असर नहीं होगा, जब नशा उतरेगा तब इसको पता चलेगा।”

इतने में तीन और लड़कों को दोनों कॉन्स्टेबल लेकर आ गए। उन सबकी उम्र लगभग पहले वाले लड़के के आसपास थी। उसके बाद कॉन्स्टेबल और पुलिसवाले अंदर चले गए। और फिर कमरे से पीटने और लड़कों के चिल्लाने की आवाज़ बाहर आने लगी।

इस तरह रात के अब साढ़े आठ हो चुके थे। इतने में गोरे पुलिस वाले ने आकर बताया कि हामिद का मोबाइल मोगली नामक एक लड़के के पास है। पुलिसवालों ने बाद में लाए गए तीनों लड़कों को कुछ समय बाद छोड़ दिया और बाहर आकर हामिद को बताया कि उम्मीद है अब आपकी मोबाइल मिल जाएगी।

फिर एक बार पुलिस चौकी में सन्नाटा छा गया। अब केवल सड़क पर गाड़ियाँ दौड़ रही थीं। थोड़ी देर बिता होगा कि साठ-पैसठ साल का एक मर्द और एक औरत वहाँ आए और दहाड़े मारकर रोने लगे। औरत अपने सीने को पिटे जा रही थी और चिल्ला-चिल्लाकर रोये जा रही थी। दाढ़ी वाला नाटे कद का आदमी जो औरत के साथ आया था दोनों हाथों से सिर को पकड़ वहीं जमीन पर बैठ गया। दोनों थोड़ी देर वहीं बैठकर मातम करते रहे। लेकिन जब छोटा बाबू मैथ्यू आया तो उसे देखकर दोनों खड़े हो गए। औरत ने मैथ्यू से हाथ जोड़कर गुहार लगाया कि मेहरबानी करके अब उसके बेटे को और न मारे। मैथ्यू ने कहा- “नहीं मारेंगे और केस भी दर्ज नहीं करेंगे, जाओ अपने बेटे से मिलो और पूछो मोबाइल वह कैसे लाकर देगा।”

यह सुन औरत अंदर अपने बेटे के पास चली गई। लड़के के गाल और चेहरे पर उसने पिटाई का काला दाग देखा तो और जोर-जोर से सिसकने लगी। जब उसने लड़के के पीठ से कपड़े को उठाकर देखा तो उसका दिल और बैठ गया। वह अपने मुँह थप्पड़ मारने लगी और अपने बेटे को बुरा-भला कहने लगी। ऐसा लग रहा था उसके आंखों से आँसू नहीं लहू टपक रहा हो। वह एक हाथ से अपने आँसू पोंछ रही थी और दूसरे हाथ से अपने आँचल को लेकर अपने बेटे के चेहरे को साफ कर रही थी। यह देख हामिद अंदर से भावुक हो गया। उसकी एक पल के लिए अफसोस हुआ कि बेकार में इतना कुछ किया मोबाइल के लिए। पहले वह बस में मार खाया फिर यहाँ पुलिसवालों ने पीटा, उसके मोबाइल के कीमत से अधिक वह मार खा चुका था। उसका गला अंदर से रुंध गया जब उसने उसकी माँ को इस तरह रोते-बिलखते देखा।

उसकी माँ वहीं घंटों बैठी रही। गोरे पुलिसवाले ने हामिद की तरफ इशारा करते हुए कहा कि या तो इनका मोबाइल लाकर दो या फिर मोबाइल का पैसा। वरना इसका चलान कट जाएगा और तुमलोगों को लंबा चक्कर लग जाएगा। जब यह बात बाहर बैठे चोर के बाप ने सुना तो उसने कहा- “साहब, हम गरीब आदमी हैं इतना पैसा कहाँ से लाएंगे। जो करना है करो इसके साथ। जो इसने किया भुगते।” इतना कहकर उसने अंदर आकर अपने पत्नी का हाथ खींचकर चौकी से बाहर निकाला और बोला- “मरने दो इसे। समझ जाओ की तुम्हारा बेटा अब मर चुका है!”

उसने बहुत कोशिश किया कि वह अपनी पत्नी को वहाँ से लेकर चला जाए। लेकिन जब विफल हो गया तो वह उसको यह कहते हुए वहीं छोड़ गया कि तुमको भी मरना है तो मरो, मैं जाता हूँ।

जब वह वहाँ से चल गया तो चोर की माँ आकर हामिद के पैरों में गिर गई और कहने लगी कि बेटा मेरे बच्चे को बचा लो! हामिद अंदर से और ग्लानी से भर गया। उसने कहा- “आंटी! मुझे मेरा मोबाइल नहीं चाहिए मैं उसको छोड़ देने बोल देता हूँ, आप उसे लेकर जाइए।”

औरत ने कहा- “बेटा, अल्लाह ने भले मुझे नालायक बेटा दिया है पर ईमान से मरहूम नहीं किया। देखो मैं कितना बदनसीब माँ जिसने अभी तक रोजा नहीं तोड़ा और इस नालायक के लिए यहाँ-वहाँ भाग रही हूँ।”

फिर उसने बताया कि जब वह इफ्तार के लिए बैठी थी तभी पड़ोस के लड़के ने आकर बबलू के पकड़े जाने की खबर दी। वह जानती थी कि वह जितना देर करेगी उसके लड़के को उतना मार पड़ेगा। वह बगैर रोजा तोड़े पूरे मुहल्ले दौड़ती रही और मोबाइल के बारे में पता लगाती रही; कि किसी तरह मिल जाए तो देकर उसे छुड़ा ले जाए। हामिद ने आकर मैथ्यू से कहा कि वह बबलू को छोड़ दे। उसके बाद मैथ्यू बाहर आया और चोर की माँ से बोला- “सुनो अगर तुम चाहती हो तो अपने बेटे को ले जाओ लेकिन इससे कहो कि मोगली, जिसका यह नाम ले रहा है, उससे लेकर मोबाइल लौटाए।

यह सुनकर चोर की माँ ने कहा- “मैं इसे साथ ले जा रही हूँ और मोबाइल मिलते ही लेकर देती हूं, नहीं तो कहीं से कर्ज-उधार लेकर मोबाइल का पैसा लौटाऊंगी। मोबाइल रखकर मैं अल्लाह का अजाब नहीं उठाऊंगी।”

मैथ्यू ने कहा- “ठीक है।” फिर उसने कॉन्स्टेबल को बबलू को छोड़ देने का आदेश दिया। बबलू ठीक से चल नहीं पा रहा था। उसका पैर जमीन पर ऐसे पड़ रहे थे जैसे कोई जानवर अपने पैर टूटने के बाद रेंगता है। उसकी माँ उसे कंधे से सहारा देकर लिए जा रही थी। रोड पार करने के बाद धीरे-धीरे नाले वाले सड़क पर वे आँखों से ओझल हो गए। जाते-जाते चोर की माँ ने हामिद से उसका नंबर माँगा ताकि मोबाइल मिलते ही उसे सूचित कर दे, तो हामिद ने अपने दोस्त धीरज का नंबर दे दिया।

उनके जाने के बाद मैथ्यू ने बताया कि आपका अब मोबाइल मिल जाएगा। हामिद ने कहा कि हो सकता है वह नहीं भी आएं। लेकिन मैथ्यू ने कहा- “देखो यह मोबाइल अभी या कल तक लाकर दे देंगे। लेकिन देंगे ज़रूर। क्योंकि उनको पता है कि पुलिस उनको जानती है। दरअसल, ये सब बांग्लादेशी हैं। सैकड़ों की संख्या में आकर यहाँ आबाद हो गए। यहीं बगल में एक झुग्गी बस्ती है ये सब वहीं रहते हैं। और पुलिस के पास इन सबका का पूरी बही-खाता है। कौन क्या करता है, क्या खाता है, कहाँ रहता है। सब कुछ। इसलिए मोबाइल तो वो लाएंगे जरूर।”

हामिद ने बीच में टोकते हुए पूछा- “लेकिन ये लोग अपना घर-बार और देश छोड़कर यहाँ क्यों चले आए हैं।”

“सब पेट के लिए। बांग्लादेश में बहुत गरीबी है इसलिए हर साल सैकड़ों बांग्लादेशी यहाँ दिल्ली में भागकर आ आते हैं। वहाँ तो इनको एक समय का खाना मिलना भी मुश्किल होता है। लेकिन यहाँ कम-से-कम दो वक्त के खाने का जुगाड़ हो जाता है।” मैथ्यू ने हामिद को समझाया।

हामिद ने फिर पूछा- “क्या इनके बारे के गवर्मेंट को नहीं पता। इन्हें कोई यहाँ से नहीं निकालता?”

“सरकार को सब पता है। अगर हम यहाँ से निकाल इन्हें बांग्लादेश बॉर्डर छोड़ आते हैं तो हमारे यहाँ लौटकर आने से पहले ही ये लोग यहाँ दोबारा पहुँच चुके होते हैं। हमारे पास इनको बाहर करने के एक रास्ते हैं तो इनके पास लौट आने के दस रास्ते हैं। ईमानदारी से देखा जाए तो गरीबी है इसका असल वजह। गरीबी के चलते ही ये लोग इस तरह से चोरी-चकारी करते हैं। अगर उनको जेल में भी डाल दो तो इन्हें दो-तीन महीने में जमानत मिल जाती है और लौटकर फिर से दुबारा ये वही काम करने लगते हैं। इसलिए हम पुलिस वाले भी इधर से ही मामला निपटाने की अधिक कोशिश करते हैं।”

इतना कह कर मैथ्यू ने हामिद से कहा कि आपका नंबर उसकी माँ तो ले ही गई, जब मोबाइल आ जाएगा तो मैं आपको इन्फॉर्म करवा दूँगा और अगर उन्होंने आपके नंबर पर सम्पर्क किया तो आकर पहले यहाँ हमें सूचित कीजिएगा। उसके बाद हामिद अपने दोस्त के यहाँ चला आया। वे लोग भी परेशान थे। धीरज ने बताया कि वह उसके नंबर पर बहुत बार कॉल किया पर लगातार स्विच ऑफ बता रहा था। यहाँ हमलोग परेशान थे। फिर उसके बाद हामिद ने सारी घटना को विस्तार से बताया।

उधर, चोर की माँ मोगली का पता लगाने के लिए इधर-उधर भागती रही। लेकिन उसका कहीं कुछ पता नहीं चल रहा था। इसलिए वह मोगली के घर पहुँच गई और उसके माँ-बाप से विनती किया कि किसी तरह मोबाइल दिला दें। लेकिन जब मोगली की माँ ने अपने बेटे पर इल्जाम लगते देखा तो बिफर पड़ी, उसने बिगड़ते हुए कहा- “देखो सहिबन मेरे बेटे पर इल्जाम न धरो। मेरा बेटा अब कहीं नहीं जाता। तेरा ही बेटा उसके पीछे पड़ा रहता है।”

जब सहिबन ने यहाँ भी अपनी जिल्लत होती देखी तो वहीं खाट पर बैठ रोने लगी। उसे मालूम था कि अगर उसने मोबाइल नहीं लौटाया तो पुलिस उसे बहुत तंग करेगी। ऊपर से बांग्लादेशी होने का दंश अलग से। जब मोगली के बाप ने उसे सीना पीटकर रोते देखा तो उसे दया आ गई। वह जानता था कि सहिबन नेक और ईमानदार औरत है, और वह झूठ का इल्लत किसी पर नहीं लगाती है। उसने कहा- “सहिबन मत रो मैं पता करवाता हूँ।” उसके बाद वह वहाँ से उठकर एक लड़के को कुछ कहकर कहीं भेजा। कुछ समय बाद लड़के ने आकर बताया कि मोगली ने मोबाइल को आठ हजार में बिचौलिए को बेच चुका है। जब उनलोगों ने बिचौलिए से सम्पर्क साधा तो उसने पहले मोबाइल देने से साफ इनकार कर दिया। जब उन्होंने विनती की तो वह मोबाइल देने को तैयार हो गया पर शर्त यह था कि उसके आठ हजार अभी-के-अभी लौटाने होंगे। शर्त मान ली गई पर मुश्किल सामने यह आ खड़ा हुआ कि आठ हजार तुरंत कहाँ से लाया जाए।

बबलू की माँ सहिबन ने कई लोगों के पास गई पर सबने पैसे देने से इनकार कर दिया। गरीब बस्ती थी उतने पैसे कहाँ होते हैं भला। और जिनके पास पैसे थे उन्होंने यह सोचकर नहीं दिया कि सहिबन लौटाएगी कैसे। फिर वह मन मसोसकर मुहल्ले के बनिये के पास गई। उसने बीस प्रतिशत के ब्याज पर पैसा देने को तैयार हो गया। मरता क्या न करता, सहिबन तैयार हो गई। हालाँकि वह जानती थी कि खाई से निकल कर वह कुएं में गिर रही है, तत्काल उसे अपने बच्चे को बचाने के लिए जो सही लगा उसने किया, कोई भी माँ होती तो यही करती। उसके बाद उसने अपने दामाद को भेजकर बिचौलिए से मोबाइल मंगा लिया। घर लौटी तो हामिद के दिए नंबर पर कॉल लगाकर कहा- “बेटा तुम्हारा मोबाइल मिल गया है आकर ले जाओ।”

हामिद ने कहा- “ठीक मैं आता हूँ।”

उधर, से सहिबन के कहा- “इसी नंबर पर कॉल करना निकलकर।”

उसके बाद हामिद धीरज को लेकर पुलिस चेक पोस्ट पर पहुँचा। रात के पौने एक हो रहे थे, सड़क पर अभी भी कुछ गाड़ियाँ आ जा रही थीं। उसने आकर देखा तो चेक पोस्ट पर पहले वाले एक कॉन्स्टेबल को छोड़कर सारे अधिकारी जा चुके थे। हामिद ने आकर कॉन्स्टेबल को बताया कि चोर की माँ का कॉल आया था। कॉन्स्टेबल ने फोन लगाकर बुलाने को कहा और फोन को लाउड स्पीकर पर डालने को बोला। उसने कॉल लगाई और पूछा- “आंटी जी आप कहाँ हैं।”

उधर से आवाज़ आई- “मैं नाले वाले पुल पर खड़ी हूँ। तुम कहाँ हो?”

“मैं पुलिस चौकी पर हूँ।” हामिद ने बताया।

सहिबन ने कहा- “बेटा तुम यहीं आकर ले लेते तो अच्छा था, मेरे पैर में चोट लग गई है इसलिए चलने में दिक्कत हो रही है।”

हामिद ठीक है कहने ही वाला था कि कॉन्स्टेबल ने उसे बीच में ही रोक दिया और चोर की माँ को इधर ही बुलाने का इशारा किया। उसने चोर की माँ से कहा कि वह उधर नहीं आ सकता आप ही आ जाओ। उधर से चोर की माँ ने आने की हामी भरी। फोन जब हामिद ने कट कर दिया तो कॉन्स्टेबल ने उसे समझाया कि कभी भी इतनी रात को ऐसे इलाकों में नहीं जाना चाहिए। क्योंकि वह चोर-उचक्कों का इलाका है, क्या पता कुछ आपके साथ कर दें।

उसने कहा- “इन सालों का कोई ठिकाना नहीं है। हो सकता है बुढ़िया आपको हानि पहुँचाने की नीयत से बुला रही हो।”

थोड़ी देर में उस औरत ने सड़क के उस पार से आवाज लगाई- “बेटा आकर अपना मोबाइल ले जाओ।” गाड़ियों के शोर में उसकी आवाज ठीक से इधर सुनाई नहीं दे रही थी लेकिन वे लोग उसके हाथों के इशारे से समझ गए वह उन्हें उस पार ही बुला रही है। जब उन्होंने देखा कि वह ठीक से खड़ी नहीं रह पा रही है तो तीनों उसके पास आ गए। औरत ने हामिद को उसका मोबाइल लौटा दिया और साथ में अलग से सिम कार्ड भी। दरअसल, खरीदने के बाद बिचैलिए ने मोबाइल को पूरी तरह से फॉर्मेट कर दिया था। सारा कॉन्टेक्ट नंबर्स और डेटा गायब था। फिर चोर की माँ ने आठ हजार देकर मोबाइल लाने वाली बात बताई और कहा कि चूँकि वह एक जगह फिसलकर गिर गई थी जिसकी वजह से घुटने पर चोट आ गया है इसलिए वह हामिद को उधर बुला रही थी। खैर! उसने हाथ जोड़कर हामिद का शुक्रिया कहा और जाने लगी। अब भी उसके आँखों से आँसू टपक रहे थे जिसे वह अपने साड़ी के पल्लू से पोछ रही थी और दूसरे हाथ से अपने बहते नाक को। जब उनलोगों ने देखा कि वह ठीक से नहीं चल पा रही है तो धीरज ने हामिद को उसके लिए ऑटो रिक्शा पकड़ा देने को कहा। हामिद ने आते हुए एक ऑटो को रोका पर उसने जाने से इनकार कर दिया।

हामिद ने कहा- “आंटी जी पैसे मैं दे देता हूँ, आप उसकी चिंता न करें।”

औरत ने कहा- “नहीं बेटा मैं ऐसे ही चली जाऊँगी।” फिर वह लंगड़ाती-घसीटती धीरे-धीरे अंधेरे में गुम हो गई।

धीरज यह देख बोल पड़ा- “ग़ज़ब खुद्दार औरत है यार!”

दूसरी तरफ पहली बार हामिद इतना खामोश था। मन में सोचे जा रहा था। उसे पहली बार माँ का मतलब समझ आया था। उसने धीरज की ओर देखा और कहा- “माँ तो बस माँ होती है भाई उसकी बेईमानी क्या खुद्दारी क्या!


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