सरकार गिराने से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने तक में पेगासस का इस्तेमाल

सरकार गिराने से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने तक में पेगासस का इस्तेमाल

पेगासस स्पाईवेयर को लेकर एक नया खुलासा सामने आया है। नए खुलासे में ये बात सामने आई है कि साल 2019 में कर्नाटक की जनता दल सेकुलर-कांग्रेस सरकार गिराने में इस स्पाईवेयर का इस्तेमाल किया गया था। जुलाई 2019 में जेडीएस-कांग्रेस की सरकार के गिरने और बीजेपी की सरकार बनाने के लिए पेगासस का इस्तेमाल किया गया था।

मंगलवार को जारी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कर्नाटक के तत्कालीन उप-मुख्यमंत्री जी। परमेश्वर, साथ ही तत्कालीन मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी और वरिष्ठ कांग्रेस नेता सिद्धारमैया के करीबी सहयोगी, सरकार गिराने से पहले निगरानी के लिए संभावित टारगेट थे। दो साल पहले उनकी सरकार के उनके फोन नंबर गैर-लाभकारी फ्रांसीसी मीडिया फॉरबिडन स्टोरीज द्वारा एक्सेस किए गए लीक डेटाबेस का हिस्सा हैं और एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंसोर्टियम के साथ साझा किए गए हैं, जिसमें द पेगासस प्रोजेक्ट के हिस्से के रूप में द वाशिंगटन पोस्ट, द गार्जियन और द वायर शामिल हैं।

इसके अलावा पेगासस के निशाने पर ऐसे कई जाति-विरोधी एवं नामी कार्यकर्ताओं के नंबर शामिल होने बात सामने आई है जो सरकार के निशाने पर रहे है। इसमें आंबेडकरवादी कार्यकर्ता अशोक भारती, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र उमर खालिद, अनिर्बान भट्टाचार्य और बनोज्योत्सना लाहिरी, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कार्य करने वालीं बेला भाटिया, रेलवे यूनियन के नेता शिव गोपाल मिश्रा, दिल्ली स्थित मजदूर अधिकार कार्यकर्ता अंजनि कुमार, कोयला खनन विरोधी कार्यकर्ता आलोक शुक्ला, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सरोज गिरी, बस्तर के कार्यकर्ता शुभ्रांशु चौधरी और बिहार की इप्सा शताक्षी के नंबर शामिल हैं।

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हालांकि, ये अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इन सभी के फोन को हैक किया गया था या नहीं। पर सूची में इनके नाम होना ये दर्शाता है कि एनएसओ ग्रुप के अज्ञात क्लाइंट ने इन पर नजर बनाने की तैयारी की थी। एनएसओ का कहना है कि वे अपना स्पायवेयर सिर्फ ‘सरकारों’ को ही बेचते हैं, जबकि मोदी सरकार अभी तक ये नहीं बताया है कि उन्होंने पेगासस खरीदा है या नहीं।

एससी/एसटी कानून के संबंध में ऑल इंडियन आंबेडकर महासभा के अशोक भारती ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले के खिलाफ 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद का आयोजन कराया था। इसके कुछ महीने बाद उन्होंने 9 अगस्त को भी एक देशव्यापी धरने के लिए आह्वान किया। इसी दौरान उनके नंबर को निगरानी के लिए संभावित निशाने के रूप में चुना गया।

‘द वायर’ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जब उनसे संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि वे हैरान नहीं हैं कि उनका नंबर इस सूची में है। भारती ने कहा, “लोकसभा द्वारा अत्याचार अधिनियम में संशोधन पारित करने के बाद हमने 9 अगस्त को हड़ताल वापस ले ली थी। इसके तुरंत बाद मैंने आगामी मध्य प्रदेश चुनावों में कुछ सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए अपने राजनीतिक संगठन, जन सम्मान पार्टी, को तैयार करना शुरू कर दिया था।”

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वॉट्सऐप ने साल 2019 में बताय था कि चार कार्यकर्ता- सरोज गिरी, बेला भाटिया, आलोक शुक्ला और शुभ्रांशु चौधरी पेगासस हमले से प्रभावित हुए थे। इसके खिलाफ वॉट्सऐप ने अमेरिका में केस दायर कर रखा है। इस सूची में सभी लोग साल 2017 से 2019 तक निगरानी के लिए संभावित टारगेट थे।

‘द वायर’ के मुताबिक, जेएनयू के पूर्व छात्र बनोज्योत्सना और अनिर्बान ने कहा कि प्रतिरोध की आवाज दबाने के लिए उन्हें निशाना बनाया जा रहा है और यही वजह है कि उनके नाम निगरानी सूची में दर्ज हैं।

अनिर्बान कहा, “ये सब इतने चौंकाने वाले मामले हैं, फिर भी लोग चौंक नहीं रहे हैं। इन दिनों इस देश के लोकतंत्र का ये स्तर हो गया है। शांतिपूर्ण प्रदर्शन और आवाज उठाने के लिए ये मूल्य चुकाना पड़ता है।” उन्होंने आगे कहा कि केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने लिए उनके मित्र उमर खालिद को जेल में डाला गया है।

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अनिर्बान ने कहा, “जहां तक ​​जेएनयू राजद्रोह मामले का सवाल है, हमने कानून की प्रक्रिया में पूरा सहयोग किया है। हम जानते हैं और यहां तक ​​कि सरकार भी जानती है कि समय आने पर कानून हमारी बेगुनाही साबित करेगा और बेनकाब करेगा कि कैसे ये सब प्रतिरोध की आवाज दबाने की एक चाल थी।ठ

वहीं, बनोज्योत्सना ने कहा, “हम घृणा अपराधों, मॉब लिंचिंग और सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं पर नजर रख रहे थे। इस दौरान हमने पीड़ितों के लगभग सभी परिवारों से मिलने के लिए यात्रा की और कई लोगों को कानूनी सहायता भी प्रदान की।”

निजता के अधिकार पर साल 2017 के ऐतिहासिक सुप्रीम कोर्ट फैसले का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इतने महत्वपूर्ण फैसले के बाद भी सत्ता की नजर में निजता का कोई मतलब नहीं है।

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‘द वायर’ की रिपोर्ट के मुताबिक, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में काम करने वाली समाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया ने बताया कि वे लंबे समय से माओवादी आंदोलन पर काम कर रही हैं, जहां बस्तर जैसे जगहों पर उन्हें एक शोधार्थी के बजाय एक मानवाधिकार कार्यकर्ता, लेखक और वकील के रूप में काम करना होता है। ऐसे जगहों पर मानवाधिकार उल्लंघनों- विशेषकर फर्जी एनकाउंटर, यौन उत्पीड़न और मनमानी गिरफ्तारी के मामले आए दिन सामने आते हैं।

उन्होंने कहा, “मेरे मुवक्किल इन सुदूर हिस्सों के ज्यादातर गरीब आदिवासी हैं जो गंभीर मामलों में फंसाए गए हैं, कई पर कठोर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है। इसलिए नक्सली किसी न किसी तरह अब 25 साल से मेरी जिंदगी का हिस्सा हैं।”

वहीं सरोज गिरी का कहना है कि लोगों को उनकी विचारधारा के बारे में पता है। और वे ये जानकर आश्चर्य में हैं कि उनका भी नाम निगरानी सूची में है। उन्होंने कहा, “मैं कई मजदूर अधिकार आंदोलनों में भाग लेता रहा हूं और पुलिस एवं सत्ता की ज्यादतियों के खिलाफ आवाज भी उठाई है। मैं उस फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी का हिस्सा था जिसने पश्चिम बंगाल सरकार की पुलिस कार्रवाईयों की जांच की थी। साथ ही गुड़गाव के मानेसर के मजदूर आंदोलन का हिस्सा रहा हूं।”

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शुभ्रांशु चौधरी बस्तर में सामुदायिक रेडियो चलाते हैं। उन्होंने कहा कि ये बेहद आपत्तिजनक है कि नागरिकों के फोन पर निगरानी की जा रही है। उन्होंने कहा, “मेरा ये मानना है कि यदि आप बस्तर जैसे जगहों पर शांति कायम करने की बात करते हैं तो आपको सरकार और माओवादियों दोनों के द्वारा निशाना बनाया जाएगा।”

इसी प्रकार छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन से जुड़े आलोक शुक्ला का कहना है कि उनके एक्टिविज्म के चलते उन पर निगरानी करने की कोशिश की गई है। विशेषकर तब जब वे अडाणी समूह द्वारा कोयला खनन का विरोध कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि सोमवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी समेत 300 सत्यापित भारतीय नंबरों का पेगासस के निशाने पर होने की बात सामने आई थी।

रिपोर्ट में ये बात सामने आई थी कि कांग्रस नेता राहुल गांधी, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर, दो केंद्रीय मंत्री, टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी और 40 भारतीय पत्रकार जासूसी के संभावित टारगेट थे। यह लिस्ट भारत की एक अज्ञात एजेंसी की है, जो कि इयरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप का स्पाइवेयर पेगासस यूज करती है।


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