‘मोदी ने देश को लॉकडाउन से बाहर निकाल सर्वनाश की ओर धकेल दिया’

‘मोदी ने देश को लॉकडाउन से बाहर निकाल सर्वनाश की ओर धकेल दिया’

भारत में चल रहे कोरोना संकट की खबर पूरे दुनियाभर में छाई हुई हैं। विदेशी अखबारों में दवा, ऑक्सीजन और बेड की कमी की बातें लिखी जा रही हैं। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सड़कों पर दम तोड़ रहे लोगों को लेकर भारतीय सरकार की आलोचना हो रही है।

वहीं, कई अखबारों ने लिखा है कि जब भारत को देश में फैले कोरोना संक्रमण से सबक लेकर काम करना चाहिए था तब मोदी सरकार वैक्सीन कुटनीति का उपमा गढ़ रही थी और खुद की पीठ थपथपा रही थी।

‘मोदी ने देश को लॉकडाउन से बाहर निकाल सर्वनाश की ओर धकेल दिया’

इतना ही नहीं विदेशी पत्रकारों ने लिखा है कि जब भारत के लोगों को कोरोना वैक्सीन की जरूरत थी तब सरकार विदेशों में वैक्सीन भेजकर लोगों से कह रही थी हमने इतने देशों को कोरोना से बचाने में मदद की। जबकि उनके नागरिक संक्रमण संकट में प्रवेश कर रहे थे। कई अखबारों ने कोरोना संक्रमण में चुनाव प्रचार को लेकर लिखा है।

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ऑस्ट्रेलियाई अखबार ‘द ऑस्ट्रेलियन’ में छपी एक रिपोर्ट सोशल पर वायरल हो रहा है। जिसमें दावा किया गया है कि नरेंद्र मोदी ने देश को लॉकडाउन से बाहर निकाल कर सर्वनाश की ओर धकेल दिया है। अखबार ने लिखा है कि घमंड, अंध राष्ट्रवाद और नौकरशाही की अयोग्यता ने भारत को तबाही में धकेल दिया।

इससे पहले अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक रिपोर्ट छापी थी जिसमें कहा गया था कि भारत के अस्पताल भरे हुए हैं, ऑक्सीजन की कमी है, लोग डॉक्टरों को दिखाने के लिए इंतजार में मर रहे हैं। अखबार ने आगे लिखा कि ये तमाम बातें दिखाती हैं कि मौत का असली आंकड़ा, सरकारी आंकड़ों से काफी अधिक है।

अखबार ने लिखा था कि भारत में दो लाख से ज्यादा लोग मौत के शिकार हुए हैं पर सरकार सही आंकड़े छिपा रही है। अखबार ने दावा किया था कि जो मौत के आंकड़े सामने आ रहे हैं उसे सरकार कम करके दिखा रही है जबकि यह आंकड़े बहुत अधिक हैं।

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वहीं, विदेशी अखबार द गार्जियन ने सरकार पर इसी तरह के आरोप लगाए हैं। अखबार का कहना है कि कोविड से मरने वालों की एक बहुत बड़ी संख्या उन लोगों की भी है जिन्होंने अपना टेस्ट कभी कराया ही नहीं और उनकी मौत हो गई। ऐसी मौतों को कोविड की मौत के साथ शायद कभी नहीं जोड़ा जाएगा।

द गार्जियन अपनी बात उदाहरण के साथ कही है। लिखा है कि राजग्राम में दवा के दुकानदार नूरुल अमीन को कोविड के लक्षणों की जानकारी थी। लेकिन जब वह बीमार पड़े तो उन्होंने खुद को मुगालते में रखा कि उन्हें सामान्य खांसी है। अंततः उनकी मौत हो गई। गांव की एक टीचर का कहना है कि ऐसी मौतों की संख्या कम-से-कम दस है।

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गांवों और शहरी गरीबों की गंदी बस्तियों का जिक्र करते हुए ब्रिटिश अखबार ने कहा है कि इन स्थानों पर जागरूकता नहीं। ऐसे में कितने लोग जांच कराते हैं कुछ पता ही नहीं। सत्यता यह है कि मौजूदा समय में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो चाहकर भी अपना कोविड टेस्ट नहीं करा पा रहे हैं। प्राइवेट लैब्स ने जांच करना बंद कर रखा है।

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और सरकारी केंद्रों पर बेतहासा भीड़ आ रही है जहां किसी कोविड पीड़ित या बुखार पीड़ितों को कड़े धूप में घंटों लाइन लगना संभव नहीं हो पा रहा है। ऐसे में मरीज जांच के बगैर दम तोड़ते हैं तो उनको कोविड मौतों की श्रेणी में नहीं डाला जाता है। डाइम मैगेजीन ने भी कमोबेश ऐसी ही बातें लिखी हैं।


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