UN की परमाणु अस्त्रों पर प्रतिबंध लगाने वाली अंतरराष्ट्रीय संधि TPNW आज से लागू

UN की परमाणु अस्त्रों पर प्रतिबंध लगाने वाली अंतरराष्ट्रीय संधि TPNW आज से लागू

संयुक्त राष्ट्र की परमाणु अस्त्रों पर प्रतिबंध लगाने वाली अंतरराष्ट्रीय संधि ‘नाभिकीय अस्त्र निषेध संधि’ (टीपीएनडब्ल्यू) शुक्रवार 22 जनवरी से लागू हो गई। इसका उद्देश्य परमाणु अस्त्रों के विकास, उत्पादन, परीक्षण, आधिपत्य और प्रयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना है। लेकिन विशेषज्ञों को चिंता है कि यह संधि ताकतवर देशों के समर्थन के अभाव में दुनिया को परमाणु अस्त्रों से मुक्त कराने में कितना सफल हो पाएगी।

दुनिया के दो-तिहाई देशों ने साल 2017 में इस संधि के पक्ष में मतदान किया था, लेकिन परमाणु शक्तियों से लैश सभी ताकतवर देश और उनका संरक्षण पाने वाले इसका हिस्सा नहीं बने थे। यह संधि देशों को दूसरे देशों में अपने अस्त्र रखने पर भी प्रतिबंध लगाती है। इटली, जर्मनी, बेल्जियम, नीदरलैंड्स और तुर्की जैसे देशों में अमेरिका के परमाणु वॉरहेड मौजूद हैं।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने संधि के लागू होने का स्वागत करते हुए कहा, “परमाणु अस्त्रों से खतरा बढ़ रहा है और उनके संभावित इस्तेमाल से जो अनर्थकारी मानवीय और पर्यावरण-संबंधी परिणाम होंगे उन्हें रोकने के लिए इन अस्त्रों को तुरंत ही नष्ट कर दिया जाना चाहिए।” देखा जाए तो संधि से निशस्त्रीकरण तब तक नहीं होगा जब तक परमाणु शस्त्र रखने वाले ताकतवर देश और नाटो के सदस्य इसका विरोध करते रहेंगे।

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38 देश संधि के खिलाफ

शुरूआत में इस संधि को 123 देशों ने समर्थन दिया था, वहीं 38 देशों ने संधि के खिलाफ मतदान किया था। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस सभी ने इसका विरोध किया। जैसा कि इजरायल, जो व्यापक रूप से परमाणु हथियार रखने के लिए जाना जाता है, ने भी संधि का विरोध किया था। जबकि चीन, भारत और पाकिस्तान ने मतदान में भाग नहीं लिया था। इसके अलावा परमाणु दंश झेल चुका जापान ने भी संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए थे।

परमाणु-विरोधी कार्यकर्ताओं का मानना है कि बड़ी शक्तियों के विरोध के बावजूद संधि सिर्फ सांकेतिक नहीं रहेगी। परमाणु-विरोधियों को उम्मीद है कि इससे परमाणु कार्यक्रमों पर रोक लगेगा और यथास्थिति की मानसिकता को चुनौती मिलेगी।

देखा जाए तो दुनिया में परमाणु हथियारों रखने वाले कुल मिलाकर नौ देश हैं। जिसमें से 90 फीसद हथियार अकेले अमेरिका और रूस के पास हैं। बाकी देशों में चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, भारत, पाकिस्तान, इस्राएल और उत्तर कोरिया के नाम शामिल हैं। इनमें से अधिकतर देशों का कहना है कि उनके अस्त्रों का उद्देश्य सिर्फ बचाव है और वे इसके पहले कि परमाणु प्रसार संधि के प्रति प्रतिबद्ध हैं।

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अमेरिका का रूस को प्रस्ताव

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसी बीच शपथ लेते ही रूस को प्रस्ताव भेजा है कि दोनों देशों के बीच चल रही परमाणु अस्त्रों की संधि ‘स्टार्ट’ को पांच और सालों के लिए जारी रखा जाना चाहिए। दरअसल, फरवरी 2021 में मौजूदा संधि की मियाद खत्म होने वाली है।

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हालांकि, पहले ही रूस कह चुका है कि वह संधि को जारी रखने के प्रस्ताव का स्वागत करेगा। संधि का उद्देश्य दोनों देशों के सामरिक परमाणु हथियारों की संख्या पर लगाम रखना है। माना जा रहा है कि शपथ लेते ही बाइडेन द्वारा रूस को यह प्रस्ताव दिया जाना परमाणु हथियारों पर नियंत्रण लगाने के उनके इरादे का संकेत है। व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जेन साकी ने एक बयान में कहा कि संधि को पांच साल तक जारी रखना ऐसे समय में और भी तर्कसंगत है जब रूस के साथ हमारे रिश्ते विरोधात्मक हैं।

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