गुजरात उच्च न्यायालय ने बीते महीने बर्खास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया था। इसमें मादक पदार्थ पर नियंत्रण संबंधी ‘एनडीपीएस’ कानून के तहत 1996 के एक मामले में उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों में संशोधन का अनुरोध किया गया था।
हालांकि, याचिका खारिज करने के बाद न्यायमूर्ति इलेश वोरा ने निचली अदालत को ‘तेजी सेट’ मुकदमे की कार्यवाही शुरू करने का भी निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि प्रक्रिया अब तक शुरू नहीं हुई है क्योंकि पूर्व अधिकारी निचली अदालतों के साथ-साथ उच्च न्यायालय में भी अर्जियां दाखिल करते रहे हैं।
संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर किया जिसमें उन्होंने अपने पति की रिहाई की मांग की है। श्वेता भट्ट ने अपने पोस्ट में लिखा है कि एक मनगढ़ंत मामले में संजीव की सजा और गलत कैद के आज 3 साल पूरे हो रहे हैं…।
उन्होंने आगे लिखा है कि 1095 दिनों से संजीव एक ऐसे अपराध के लिए जेल में बंद हैं, जो उन्होंने नहीं किया; उनका एकमात्र अपराध, कि वह एक आदमी के रूप में राक्षस के असल चेहरे को उजागर करने का साहस रखते थे। जबकि संजीव ने हमेशा की तरह सच्चाई, गरिमा और वीरता से प्रतिशोधी उत्पीड़न से लड़ना जारी रखा है। उनकी रिहाई की हमारी लड़ाई जारी रहेगी। हम लड़ेंगे, हम विरोध करेंगे, हम जीतेंगे, और यह निश्चित है।
This is Shweta Sanjiv Bhatt,
— Sanjiv Bhatt (IPS) (@sanjivbhatt) September 5, 2021
Today marks 3 years of Sanjiv’s wrongful incarceration in a fabricated case. 1095 days since Sanjiv has been languishing in Jail..https://t.co/q7uXwQrlOD#JusticeforSanjivBhatt #FreeSanjivBhatt #EnoughIsEnough pic.twitter.com/bdjV1isTSW
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वीडियो में देखा जा सकता है कि कुछ सामाजिक कार्यकर्ता अपने-अपने हाथों में ‘रिलीज संजीव भट्ट’ का बैनर लिए हुए हैं। सभी मिलकर एक साथ आवाज बुलंद में कहते हैं कि संजीव भट्ट की रिहाई किया जाए। इतना ही नहीं वे अपने हाथों में मोमबत्तियां लेकर नारे लगा रहे हैं- हिटलरशाही की ये सरकार, नहीं चलेगी, नहीं चलेगी। हालांकि, वीडियो कब का है नहीं मालूम।
वीडियो में देखा जा सकता है कि रमन मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता प्रोफेसर संदीप पांडे भी उनके रिहाई की मांग कर हैं। वहीं, ‘वॉइस फॉर राइट्स एण्ड लॉयर फॉर द कठुआ रेप विक्टिम’ की चेयरपर्सन एडवोकेट दीपिका राजावत कहती हैं- संजीव भट्ट की सजा अपने आप में एक फुल ऑफ कंट्राडिक्शन है।
संजीव भट्ट का अपराध
उल्लेखनीय है कि संजीव भट्ट साल 2018 सालों से जेल में बंद हैं। न्यायिक हिरासत के दौरान, भट्ट को 1990 के हिरासत में यातना के मामले में दोषी ठहराया गया था, जबकि 1996 के मादक पदार्थ बरामदगी मामले में पहले ही बनासकांठा की निचली अदालत द्वारा आरोप तय किए जा चुके हैं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गुजरात काडर के आईपीएस अधिकारी भट्ट को अगस्त 2015 में सेवा से ‘अनधिकृत अनुपस्थिति’ के आरोप में बर्खास्त कर दिया था। भट्ट 1996 में बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक (एसपी) थे।
अभियोजन पक्ष का आरोप है कि जब भट्ट जिला पुलिस अधीक्षक, बनासकांठा के रूप में पालनपुर में पदस्थापित थे तब उन्होंने राजस्थान के पाली निवासी सुमेर सिंह राजपुरोहित को एनडीपीएस कानून के प्रावधान के तहत अफीम रखने के झूठे मामले में फंसाने की साजिश रची थी।
बनासकांठा पुलिस ने भट्ट के नेतृत्व में दावा किया था कि पालनपुर शहर में राजपुरोहित के एक होटल के कमरे में 1.5 किलो अफीम मिली थी। हालांकि, राजस्थान पुलिस की जांच में पता चला था कि राजपुरोहित को झूठा फंसाया गया था।
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पालनपुर की निचली अदालत ने सितंबर 2019 में भट्ट के खिलाफ आरोप तय किए थे। अब वह एनडीपीएस कानून की संबंधित धाराओं और आईपीसी की धारा 120 (बी) के साथ 465 और 471 के तहत मुकदमे का सामना कर रहे हैं।
आरोप था कि भट्ट ने राजपुरोहित के नाम पर होटल के रजिस्टर में जाली प्रविष्टि की थी। अपनी याचिका में पूर्व आईपीएस अधिकारी ने दलील दी थी कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 465 और 471 के तहत आरोप तय करने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि अभियोजन पक्ष ने इस पर चुप्पी साध ली कि होटल लाजवंती में गवाह सुमेर सिंह के नाम पर झूठी प्रविष्टि किसने की।
हालांकि, संजीव भट्ट और उनके परिजनों का कहना है कि नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री काल में हुए गुजरात दंगों को लेकर उन्होंने कुछ खुलासे किए थे उसी का बदला उनसे लिया जा रहा है। दरअसल, दिसंबर 1999 से सितंबर 2002 तक संजीव भट्ट गांधीनगर स्थित स्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो में बतौर डिप्टी कमिश्नर ऑफ इंटेलिजेंस रहे थे।
भट्ट पर गुजरात की आंतरिक, सीमा, तटीय और अहम प्रतिष्ठानों की सुरक्षा का जिम्मा था। इसके अलावा गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सिक्योरिटी भी भट्ट के ही हाथों में थी। इसी दौरान फरवरी-मार्च 2002 के दौरान गोधरा में ट्रेन जला दी गई, जिसके बाद सांप्रदायिक दंगे भड़क गए। दंगे में हजारों की संख्या में लोग मारे गए थे।
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गोधरा दंगा और मोदी
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 सितंबर 2002 को कथित तौर पर बहुचराजी में एक भाषण में मुस्लिमों में उच्च जन्म दर पर सवाल उठाए। हालांकि, मोदी ऐसे किसी भी भाषण से इनकार करते रहे हैं। नेशनल कमिशन फॉर माइनॉरिटीज (NCM) ने इस पर राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी।
मोदी के तत्कालीन प्रिंसिपल सेक्रेटरी पी.के. मिश्रा के मुताबिक, राज्य सरकार के पास उनके भाषण की कोई रिकॉर्डिंग नहीं है। लेकिन स्टेट इंटेलिजेंस ब्यूरो ने भाषण की एक कॉपी एनसीएम को सौंप दी। इसके बाद मोदी सरकार ने ब्यूरो के वरिष्ठ अफसरों का तबादला कर दिया। इन अफसरों में संजीव भट्ट भी शामिल थे। इसके बाद उन्हें स्टेट रिजर्व पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज का प्रिंसिपल बनाया गया।
साल 2003 में संजीव भट्ट को साबरमती सेंट्रल जेल का अधीक्षक बनाया गया। वह कैदियों के बीच खासे मशहूर थे। इन्होंने जेल के खाने में गाजर का हलवा शामिल कराया। दो महीने बाद कैदियों से नजदीकियां बढ़ाने को लेकर उनका तबादला कर दिया गया। 14 नवंबर 2003 को करीब 2000 कैदी भूख हड़ताल पर चले गए। 6 दोषियों ने विरोध-प्रदर्शन करते हुए अपनी कलाई तक काट ली।
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सामाजिक कार्यकर्ताओं के समूह ने 2002 दंगों के बाद एक ट्रिब्यूनल का गठन किया। ट्रिब्यूनल को गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री हरेन पांड्या ने बताया कि गोधरा हादसे के बाद मुख्यमंत्री आवास पर नरेंद्र मोदी ने एक बैठक बुलाई थी। पांड्या के मुताबिक, इस बैठक में मोदी ने पुलिस अधिकारियों से कहा कि हिंदुओं को अपना गुस्सा उतारने का मौका देना चाहिए।
तत्कालीन गृह मंत्री हरेन पांड्या ने बताया कि इस बैठक में शामिल पुलिस अफसरों में संजीव भट्ट भी थे। संजीव भट्ट ने गोधरा दंगों के 9 साल बाद यानी 14 अप्रैल 2011 को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और यही आरोप लगाए। उन्होंने गुजरात दंगों के लिए बनाई गई एसआईटी पर भी पक्षपात के आरोप लगाए।
सुप्रीम कोर्ट ने 13 अक्टूबर 2015 को एसआईटी पर भट्ट के आरोपों को बेबुनियाद करार दिया। लेकिन इससे पहले ही जून 2011 में गुजरात सरकार ने ड्यूटी से गैर-हाजिर रहने, ड्यूटी पर न रहते हुए भी आधिकारिक कार का इस्तेमाल करने और जांच कमिटी के सामने पेश न होने को लेकर संजीव भट्ट सस्पेंड कर दिए गए। फिलहाल, वे बीते तीन सालों से जेल में बंद हैं।
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