एक तरफ बांग्लादेश रोहिंग्या लोगों को बाढ़ प्रभावित भाषन चौर द्वीप पर भेज रहा है। वहीं दूसरी तरफ सऊदी अरब चाहता है कि उसके यहां रहने वाले लगभग 54 हजार रोहिंग्या लोगों को बांग्लादेश वापस ले ले। माना जा रहा है कि अगर बांग्लादेश इसके लिए राजी हो जाता है तो उसकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। बांग्लादेश के विदेश मंत्री ए.के. अब्दुल मोमेन ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा कि सऊदी अरब में रहने वाले कुछ रोहिंग्या लोगों को बांग्लादेश कानूनी दस्तावेज मुहैया करा सकता है।
म्यांमार के पश्चिमी प्रांत रखाइन से प्रांत से रोहिंग्या मुसलमानों का संबंध रहा है। लेकिन म्यांमार उन्हें अपना नागरिक नहीं मानता। बीते कुछ सालों में रखाइन में रोहिंग्या लोगों के साथ हुए भेदभाव और दमन के बाद बहुत के लोगों ने दूसरे देशों में शरण ली है। इनमें सबसे अधिक लोग बांग्लादेश में रहते हैं।
सऊदी अरब ने लगभग 40 साल पहले दसियों हजार रोहिंग्या लोगों को शरण दिया था। सऊदी अरब ने सितंबर 2020 में कहा था, “अगर बांग्लादेश इन शरणार्थियों को अपना पासपोर्ट जारी करता है तो इससे बहुत मदद होगी क्योंकि सऊदी अरब नागरिकता विहीन लोगों को अपने यहां नहीं रखता।”

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40 साल बाद भी नागरिकता नहीं
अभी तक सऊदी अरब में रहने वाले रोहिंग्या लोगों के पास किसी देश की नागरिकता नहीं है। यहां तक कि शरणार्थियों के जो बच्चे सऊदी अरब में पैदा हुए हैं और अरबी भाषा बोलते हैं, उन्हें भी सऊदी अरब की नागरिकता नहीं दी गई है।
वहीं दूसरी तरफ रोहिंग्या लोगों को बांग्लादेश भी अपना नागरिक नहीं मानता है। ऐसे में कई विशेषज्ञों का कहना है कि विदेश मंत्री अब्दुल मोमेन का यह बयान उनके देश को मुश्किल में डाल सकता है कि कुछ रोहिंग्या को बांग्लादेश पासपोर्ट प्रदान कर सकता है। इससे रोहिंग्या लोगों की वापसी के लिए म्यांमार से होने वाली वार्ता पर असर पड़ सकता है।
डीडब्ल्यू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बंग्लादेश के विदेश मंत्री ने कहा, “हमने इस बारे में सऊदी अधिकारियों से बात की है और उन्हें भरोसा दिलाया है कि हम उन लोगों के पासपोर्ट रिन्यू कर देंगे जो बांग्लादेश से सऊदी अरब गए।”

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रिश्वत देकर पासपोर्ट हासिल
अब्दुल मोमेन ने बताया, “बहुत सारे रोहिंग्या लोगों ने बांग्लादेशी अधिकारियों को रिश्वत देकर पासपोर्ट हासिल किए थे। 2001, 2002 और 2006 में बहुत से रोहिंग्या लोग बांग्लादेशी पासपोर्ट पर सऊदी अरब गए। कुछ भ्रष्ट अधिकारियों ने उन्हें ये पासपोर्ट जारी किए।”
हालांकि, बांग्लादेश के विदेश मंत्री ने साफ कहा कि उनका देश इन शरणार्थियों के बच्चों की कोई जिम्मेदारी नहीं लेगा। उन्होंने कहा, “ये रोहिंग्या 1970 के दशक से बांग्लादेश में नहीं रह रहे हैं। उनके बच्चों की पैदाइश और परवरिश दूसरे देशों में हुई। उन्हें बांग्लादेश के बारे में कुछ नहीं पता। उनकी परवरिश अरब लोगों की तरह हुई है।”
मोमेन बताया कि सभी रोहिंग्या लोगों को सऊदी अरब वापस नहीं भेजना चाहता। उन्होंने कहा कि जिन लोगों को सऊदी नागरिकता मिल गई है, वे वहीं रहेंगे। एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग तीन लाख रोहिंग्या लोगों को सऊदी अरब में पहले ही वर्क परमिट मिला गया है।

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सऊदी का बांग्लादेश पर दबाव
सऊदी अरब जिन 54 हजार लोगों को वापस भेजना चाहता है, उनमें से अधिकतर के पास बांग्लादेश से सऊदी अरब आते हुए बांग्लादेशी पासपोर्ट था या फिर उन्हें सऊदी अरब में मौजूद बांग्लादेशी कंसुलेट से पासपोर्ट मिला।
बांग्लादेश की राजधानी ढाका में मौजूद रिफ्यूजी एंड माइग्रेटरी मूवमेंट संस्था की कार्यकारी निदेशक सी.आर. अबरार ने कहा, “अगर इन लोगों के पास बांग्लादेशी पासपोर्ट हैं तो उनकी जिम्मेदारी बांग्लादेश को लेनी चाहिए। लेकिन शरणार्थियों की वापसी के लिए जिस तरह से सऊदी अरब बांग्लादेश पर दबाव बना रहा है, वह उसकी भी निंदा करते हैं।”
अबरार बताते हैं, “बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत नहीं है। फिर भी उसने इन लोगों को लेकर बहुत हिम्मत दिखाई है। सऊदी अरब को बांग्लादेश पर और दबाव नहीं डालना चाहिए।” उन्होंने आगे कहा, “रोहिंग्या लोग आर्थिक कारणों से प्रवासी नहीं बने हैं। वे एक प्रताड़ित समुदाय हैं। सऊदी अरब को यह बात समझनी चाहिए।”

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म्यांमार के साथ वार्ता होगी कमजोर
उन्होंने आगे कहा, “अगर बांग्लादेश सऊदी अरब से रोहिंग्या लोगों को ले लेता है तो इससे इन शरणार्थियों की वापसी के लिए म्यांमार से हो रही बातचीत में बांग्लादेश का रुख कमजोर होगा। म्यांमार इस बात का फायदा उठाने की कोशिश करेगा और बांग्लादेश पर दबाव डालेगा कि वह और ज्यादा रोहिंग्या लोगों को अपनी नागरिकता दे।”
अमेरिका के इलिनॉय स्टेट यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर अली रियाज कहते हैं, “यह बांग्लादेश के लिए एक मुश्किल परिस्थिति है। लेकिन वह इस बात को नहीं मानते कि सऊदी अरब वाले मुद्दे की वजह से म्यांमार के साथ होने वाली वार्ता में बांग्लादेश के रुख पर कोई असर होगा।” हालांकि, उन्होंने कहा कि ये दोनों अलग अलग मुद्दे हैं। कुछ रोहिंग्या लोगों को नागरिकता देने का यह मतलब नहीं है कि बांग्लादेश सारे रोहिंग्या लोगों को अपना लेगा।
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