अब सरकार ने भी माना NRC सूची में शामिल हो सकते हैं 2.77 लाख अयोग्य नाम

अब सरकार ने भी माना NRC सूची में शामिल हो सकते हैं 2.77 लाख अयोग्य नाम

गुवाहाटी: सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में असम में हुई राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) की अंतिम सूची 31 अगस्त 2019 को प्रकाशित हुई थी जिसमें 19 लाख लोगों के नाम नहीं आए थे। लेकिन आगे चल कर ये बात सामने आई की सूची कुछ अयोग्य लोगों के नाम भी जोड़े गए हैं। अब सवाल उठता है कि क्या करोड़ों की लागत और वर्षो की मेहनत से तैयार एनआरसी की कवायद गलत है?

दरअसल, इस बात को अब सरकार और एनआरसी संयोजक ने भी स्वीकार कर लिया है। इस मामले को लेकर मुवाहाटी हाईकोर्ट में एक मामला चल रहा है जिसमें कोर्ट को बताया गया है कि एनआरसी में 2.77 लाख ऐसे लोगों के नाम हैं जो इसके पात्र नहीं हैं। गुवाहाटी हाईकोर्ट में एनआरसी संयोजक हितेश शर्मा की तरफ से एक हलफनामा दायर कर बताया गया है कि गुणवत्ता जांच और नियंत्रण ठीक नहीं होने की वजह से एनआरसी की सूची में 2.77 लाख अयोग्य लोगों के नाम शामिल हो सकते हैं।

महज 27 फीसदी नामों की दोबारा पुष्टि के दौरान एनआरसी के मसौदे में से एक लाख से ज्यादा लोगों के नाम सूची से हटा दिए गए थे। उसी आधार पर सूची में 2.77 लाख गलत लोगों के नाम शामिल रहने का अनुमान लगाया गया है।

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हाईकोर्ट में दायर हलफनामे में एनआरसी संयोजक ने कहा है, “एनआरसी के मसौदे में से महज 27 फीसदी नामों की औचक जांच के बाद एक लाख दो हजार चार सौ बासठ लोगों का नाम सूची से हटाना पड़ा था। ऐसे में सूची में शामिल बाकी 73 फीसदी नामों की अनदेखी नहीं की जा सकती। पहले के आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि इनमें से 2.77 लाख ऐसे लोग हैं जो सूची में शामिल होने की पात्रता नहीं रखते हैं।”

हितेश शर्मा के मुताबिक, पारिवारिक वृक्ष और संबंधित दस्तावेजों की ठीक से जांच और दोबारा पुष्टि नहीं होने के चलते ऐसा ऐसा हुआ है। असम सरकार ने इससे पहले गुवाहाटी हाईकोर्ट से कहा था कि बीते साल अगस्त में प्रकाशित एनआरसी की सूची पूरक थी, अंतिम नहीं। हाईकोर्ट को प्रदेश संयोजक ने बताया है कि असम में बीते साल अगस्त में प्रकाशित एनआरसी केवल पूरक सूची थी और अंतिम दस्तावेज अभी जारी किया जाना है।

याचिका में क्या है?

नलबाड़ी जिला विदेशी न्यायाधिरण के फैसले को चुनौती देते हुए रहीमा बेगम नामक एक महिला ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। अदालत ने महिला की याचिका पर सुनवाई के बाद एनआरसी संयोजक को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था। याचिकाकर्ता रहीमा बेगम का दावा है कि उनकी नाम साल 2019 में जारी राज्य की अंतिम एनआरसी सूची में शामिल है।

उल्लेखनीय है कि 19 लाख लोगों के नाम एनआरसी की अंतिम सूची में बाहर कर दिए गए थे। एनआरसी संयोजक की तरफ दायर हलफनामे में कहा गया है कि बीते साल अगस्त में करीब 10 हजार नामों की दोबारा पुष्टि के दौरान पता चला था कि उनमें 4,795 अयोग्य लोग शामिल हैं जबकि 5,404 योग्य लोगों के नाम उससे बाहर हो गए थे।

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जिन लोगों का नाम अयोग्य लोगों में डाला गया है उसमें संदिग्ध वोटर, विदेशी घोषित, विदेशी न्यायाधिकरण में लंबित मामलों वाले लोगों और उनके परिजनों के नाम शामिल हैं। उस सभी के नाम अपडेटेड एनआरसी सूची से हटा दिए जाएंगे। दूसरी तरफ भारतीय रजिस्ट्रार जनरल ने अब तक सूची पर उठने की वजह से असम की एनआरसी को अब तक अधिसूचित नहीं किया है।

अधिसूचित नहीं करने के कारण पूरा मामला अधर में लटक गया है। सुप्रीम कोर्ट, जो इस पूरी कवायद की निगरानी कर रही है; ने इससे पहले केंद्र और असम सरकार की उस अपील को खारिज कर दिया था जिसमें 20 फीसदी नामों की दोबारा पुष्टि करने की अनुमति मांगी गई थी। इस बीच, एनआरसी को त्रुटिपूर्ण बताते हुए राज्य में सत्तारुढ़ बीजेपी ने उसे खारिज कर दिया है। बीजेपी का कहना है कि अगले चुनावों दोबारा सत्ता में लौटने आने के बाद यह कवायद नए सिरे से शुरू की जाएगी।

अगले चुनावों पर राजनीति

बीते साल से असम की बीजेपी सरकार लगातार मांग कर रही है कि कि एनआरसी की सूची को दुरुस्त करने के लिए शामिल हुए लोगों में से 10 से 20 फीसदी तक की दोबारा पुष्टि की जानी चाहिए। राज्य के तमाम संगठन अंतिम सूची प्रकाशित होने के बाद से ही इसे त्रुटिपूर्ण बता रहे हैं और इसे खारिज करने की मांग कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट तक भी यह मामला पहुंच चुका है।

बीते साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जारी हुई एनआरसी की सूची में 19 लाख लोगों को बाहर कर दिया गया था जिसमें तकरीबन साढ़े पांच लाख हिंदू और 11 लाख से अधिक मुसलमान शामिल हैं। राज्य सरकार को एनआरसी के लिए लगभग 3.3 करोड़ आवेदन मिले थे।

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एनआरसी के तत्कालीन प्रदेश संयोजक प्रतीक हाजेला ने तब इसे एनआरसी की अंतिम सूची बताया था। लेकिन असम सरकार ने बाद में इस सूची को गलत मानते हुए इसमें हुई गलती के लिए हाजेला को दोषी ठहराया था। अभी तक एनआरसी की सूची से बाहर किए गए 19 लाख लोगों को बाहर निकाले जाने के आदेश की प्रति तक नहीं मिली है।

आदेश की प्रति नहीं मिलने के कारण बाहर हुए लोग इस फैसले को विदेशी न्यायाधिकरण में चुनौती नहीं दे पा रहे हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए ही अब इस मुद्दे पर राजनीति तेज हो रही है।

सुनील कुमार डेका नाम के एक पर्यवेक्षक ने बताया, “वर्षों तक चली एनआरसी की कवायद के तहत करोड़ों रुपए खर्च कर नई सूची बनाई गई थी। लेकिन इससे न तो आम लोग संतुष्ट हैं और न ही केंद्र या राज्य सरकार।” उन्होंने कहा कि चुनावों के बाद नए सिरे से कवायद शुरू करना सार्वजनिक धन की बर्बादी के सिवाय कुछ नहीं है।

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