एक अरब से ज्यादा बच्चों पर मंडरा रहा जलवायु परिवर्तन का गंभीर खतरा

एक अरब से ज्यादा बच्चों पर मंडरा रहा जलवायु परिवर्तन का गंभीर खतरा

भारत सहित पूरे विश्व में एक अरब से ज्यादा बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का गंभीर खतरा मंडरा रहा है। यूनिसेफ ने एक रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया में कोई भी बच्चा जलवायु परिवर्तन से सुरक्षित नहीं है।

यूनिसेफ की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, भारत उन चार दक्षिण एशियाई देशों में शामिल है, जहां बच्चों को उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सबसे अधिक खतरा है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, और अफगानिस्तान पर जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक संकट है।

सबसे ज्यादा जोखिम (बाढ़, वायु प्रदूषण, चक्रवात, लू) वाले देशों को है। इस सूची में भारत का स्थान 26वां है, वहीं पाकिस्तान 14वें, बांग्लादेश 15वें और अफगानिस्तान 25वें स्थान पर है।

एक अरब से ज्यादा बच्चों पर मंडरा रहा जलवायु परिवर्तन का गंभीर खतरा

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रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में लगभग हर बच्चा किसी न किसी जलवायु और पर्यावरण से जुड़े खतरे का सामना करने को मजबूर है। कई देशों में तो बच्चे एक साथ कई खतरों का सामना कर रहे हैं। उनके जीवन को समाप्त कर सकता है। वहीं, इस समस्या को कोविड-19 महामारी ने और बढ़ा दिया है। यही नहीं बच्चों को खराब स्वास्थ्य के साथ-साथ शिक्षा से वंचित, जीवन की असुरक्षा और असामान्य मौसम की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने एक विशेष रिपोर्ट में कहा, “पहली बार जलवायु परिवर्तन से बच्चों को होने वाले खतरे स्पष्ट हो गए हैं और विशेषज्ञ उनकी गंभीरता से अवगत हैं। रिपोर्ट के मुताबिक कई देशों में बच्चे बदलते मौसम के कारण जानलेवा बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं और इन बीमारियों के कारण उनकी जान भी जा सकती है, जो अफसोस की बात होगी।”

यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोर ने रिपोर्ट के निष्कर्षों को ‘बेहद चौंकाने वाला’ बताया है। फोर के मुताबिक, जलवायु और जलवायु परिवर्तन एक झटके की तरह है और इसने बच्चों के अधिकारों के दायरे को सीमित कर दिया है।

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पर्यावरणीय संकट को टालने के लिए फोर ने तत्काल वैश्विक कार्रवाई पर जोर दिया है। फोर का यह भी कहना है कि परिवर्तनों के साथ कई देशों में बच्चे धीरे-धीरे स्वच्छ हवा और स्वच्छ पेयजल तक पहुंच खो रहे हैं।

यूनिसेफ की प्रमुख ने यह भी कहा कि बच्चों के मूल अधिकारों के दायरे को कम करने से उनका शोषण बढ़ेगा और उन्हें शिक्षा, आवास और बचपन की स्वतंत्रता से वंचित किया जाएगा। उन्होंने कहना है कि स्थिति एक भयानक मोड़ ले रही है और अंत में दुनिया का हर बच्चा जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होगा।

यूनिसेफ की विशेष रिपोर्ट का शीर्षक है, “पर्यावरण संकट बाल अधिकारों के लिए एक संकट है।” इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में 2.2 अरब बच्चे 33 देशों में रहते हैं। ये सभी देश गंभीर खतरे के कगार पर हैं। इनमें कई अफ्रीकी राष्ट्र (मध्य अफ्रीकी गणराज्य, चाड, नाइजीरिया और गिनी) के साथ-साथ एशियाई देश भारत और फिलीपींस शामिल हैं। इन देशों को कई नकारात्मक पहलुओं और जलवायु परिवर्तन की खतरनाक तीव्रता का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि इनके कारण मूलभूत आवश्यकताओं की कमी हो गई है। इन बुनियादी जरूरतों में स्वच्छ पानी, सीवरेज, सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा शामिल हैं।

वहीं दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अभियान चलाने वाले युवा कार्यकर्ता लगातार जलवायु परिवर्तन पर पर्याप्त प्रगति करने में विफल रहने के लिए विकसित और विकासशील देशों में नेताओं की आलोचना कर रहे हैं। स्वीडन की किशोरी ग्रेटा थनबर्गने ब्रिटेन के ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) में भाग लेने वाले नेताओं से कार्बन डाइऑक्साइड समेत ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए काम करने का आह्वान की हैं।

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रिपोर्ट में आए आंकड़ों के मुताबिक, आने वाले समय में भारत में 60 करोड़ से अधिक बच्चे गंभीर जल संकट से गुजरेंगे। वैश्विक तापमान में दो डिग्री की बढ़ोतरी के साथ ही भारत के अधिकांश शहरों में अचानक बाढ़ आने की घटनाएं बढ़ेंगी। वायु प्रदूषण के वर्ष 2020 के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया के प्रदूषित वायु वाले 30 बड़े शहरों में 21 भारत के शहर हैं।

क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स के द्वारा बच्चों पर जलवायु और पर्यावरण संबंधी खतरों के जोखिम, उनसे बचाव और आवश्यक सेवाओं तक उनकी पहुंच के आधार पर देशों को क्रमबद्ध किया गया है, जिसमें ज्यादा अंक का मतलब अत्यंत गंभीर खतरा और कम अंक का मतलब कम खतरा बताया गया है।

इस रिपोर्ट को लेकर यूनिसेफ इंडिया के प्रतिनिधि डॉ. यास्मीन अली हक ने कहा, “जलवायु परिवर्तन बाल अधिकारों का संकट है। चिल्ड्रेन्स क्लाइमेट चेंज इंडेक्स डेटा ने संकेत दिया है कि बच्चों को गंभीर अभावों का सामना करना पड़ रहा है। इससे प्राथमिकताएं तय करने में मदद मिलेगी।”

जॉर्ज लारिया अडजेई, क्षेत्रीय निदेशक, यूनिसेफ (दक्षिण एशिया) ने कहा, “पहली बार, हमारे पास दक्षिण एशिया में लाखों बच्चों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के स्पष्ट सबूत हैं। अब इस दिशा में काम करने का समय है।”


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