कोरोना ने माँ-बाप छीन लिए, अन्न के लिए पांचों बच्चे दर-दर की खा रहे हैं ठोकर

कोरोना ने माँ-बाप छीन लिए, अन्न के लिए पांचों बच्चे दर-दर की खा रहे हैं ठोकर

कोरोना ने न जाने कितने लोगों का घर उजाड़ा है और कितनों को अनाथ किया है। मध्य प्रदेश के भिण्ड जिले के दबोह थाना क्षेत्र में एक गांव है अमाह। यहां एक परिवार में पहले कोरोना संक्रमण के चलते पिता की मौत हुई फिर माँ भी चल बसी। अब कुल छोटे-छोटे पांच बच्चे हैं जो पेट भरने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।

परिवार में 3 बच्चियां और दो बच्चे हैं। सबसे बड़ी बच्ची की उम्र कोई 10 साल के करीब है। सबसे छोटा बच्चा 8 महीने का है। सबसे बड़ी बच्ची अपने सभी भाई-बहनों की भरण-पोषण करती है। इसके लिए सभी गांव में घूम-घूमकर खाना माँगते हैं।

एक टूटी-फूटी झोपड़ी है, जिसमें ये सभी बच्चे बड़ी मुश्किल से रहते हैं। अगर बारिश हो गई तो ऊपर से और अधिक मुसीबत। बारिश होने पर पानी टपकने लगता है। ऐसे में वे सभी बच्चे बगल में मौजूद श्मशान घाट में चले जाते हैं जहां एक टीन शेड है जिसके नीचे बैठकर सो जाते हैं।

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सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे कुछ वीडियो के मुताबिक, माता-पिता की मौत कोरोना महामारी के दौरान हो गई थी। राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐसे परिवारों के भरण-पोषण और उनकी पढ़ाई का खर्चा उठाने का एलान किया था। लेकिन इतने समय बाद भी न प्रशासन की नजर इन बच्चों पर पड़ी न ही कोई सामाजिक कार्यकर्ता इन्हें पूछने आया।

लहार विधानसभा में पड़ने वाले अमाह गांव के निवासी राघवेंद्र वाल्मीकि रिक्शा चलाकर अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे। दूसरी लहर के दौरान यानी फरवरी महीने के अंतिम सप्ताह में राघवेंद्र की कोरोना से मौत हो गई। अंतिम संस्कार के लिए इसके बाद राघवेंद्र की पत्नी गिरिजा अपने पाचों बच्चों के साथ गांव आ गई।

लेकिन इसके बाद गिरिजा फिर से उत्तर प्रदेश के उरई चली गई। लेकिन, कोरोना से मई महीने में गिरिजा की भी मौत हो गई। इसके बाद रिश्तेदार अंतिम संस्कार के लिए बच्चों को साथ लेकर उसके गांव अमाह आ गए। जैसे-जैसे वक्त बदलता गया धीरे-धीरे रिश्तेदारों ने भी इन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया।

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सबसे बड़ी बच्ची का नाम है निशा। निशा से छोटा है बाबू राजा। इसकी उम्र है 5 साल। तीसरे नंबर की बेटी है मनीषा, जो 3 साल की है। अनीता जो 2 साल की है। और सबसे छोटा बच्चा गोलू। यह सिर्फ 8 माह का है। यह बच्चे कभी अपनी टूटी-फूटी झोपड़ी में रहते हैं तो कभी श्मशान घाट में बने टीन के नीचे।

कोरोना ने माँ-बाप छीन लिए, अन्न के लिए पांचों बच्चे दर-दर की खा रहे हैं ठोकर

अब इन बच्चों का जीवन सरकारी दस्तावेजों में उलझ कर रह गया है। इनके पास मध्य प्रदेश सरकार का कोई दस्तावेज नहीं है, क्योंकि इनके माता-पिता उत्तर प्रदेश के उरई जिले में काम-धंधे पर चले गए थे। बताया जा रहा है कि अब उनके दस्तावेज तैयार करावाए जा रहे हैं ताकि सरकार के खाते में इनकी पहचान हो सके।

दरअसल, पिछले दिनों कांग्रेस के पूर्व मंत्री और स्थानीय विधायक डॉ. गोविंद सिंह एक कार्यक्रम में शामिल होने अमहा गांव पहुंचे थे। इसी दौरान गांव के कुछ लोगों ने इन बच्चों के बारे में उन्हें बताया। इसके बाद उन्होंने तत्काल मदद करने का फैसला लिया। खुद की जेब से 2 हजार रुपये नगद दिए, जबकि सरपंच और सचिव से 10-10 हजार और विधायक निधि से 20 हजार की मदद का भरोसा दिलाया। उन्होंने बच्चों के रहने के लिए आवास की जिम्मेदारी भी लिया है।

हालांकि, प्रशासन को पिछले छह माह से अपने माता-पिता को गवाने और दर-दर की ठोकरें खाने वाले बच्चों के हालात की भनक प्रशासन को अभी तक नहीं है। जिला कलेक्टर डॉ. सतीश कुमार ने एक बयान में कहा, “मेरे द्वारा महिला बाल विकास की टीम गांव में भेजी गई, सोशल सर्वे व फैमली सर्वे कराया गया है। दादा हैं वह भी काफी बुजुर्ग जो उनकी परवरिश करने में सक्षम नहीं हैं। उनसे हमने बच्चों को बालगृह भेजने की बात की जिस पर वह राजी नहीं हुए। फिर हमने उनकी काउंसलिंग करवाई और वह राज़ी हो गए हैं, बच्चों को बालगृह या बालिका गृह में शीघ्र शिफ्ट कर दिया जाएगा। उनके पिता की डेथ के बाद माँ यूपी में चली गई थी, उसकी मृत्यु के प्रमाण एकत्रित किए जा रहे हैं। बच्चों को अनाथ नहीं रहने दिया जाएगा, उन्हें हर प्रकार की शासकीय योजना का लाभ दिलवाया जाएगा।”

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अमाहा के शासकीय माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक राजनारायण दौरे ने बताया, “हम बच्चों की हर संभव मदद के लिए तैयार हैं। दस्तावेजों के अभाव में जन्मतिथि न होने से समस्याओं का सामना करना पड़ा, लेकिन अब हमें इनकी जन्मतिथि मिल गई है। दो बच्चे प्रवेश के योग्य हैं। कल ही हम इनको प्रवेश दिलाएंगे और हम कोशिश करेंगे कि विभाग के द्वारा हर संभव मदद की जाए।”

सत्यपाल सिंह परिहार बच्चों के पड़ोस में ही रहते हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों की जिंदगी किसी तरह चल रही है। हम ये चाहते हैं कि शासन से इनकी कुछ मदद हो जाए। हम शासन से माँग करते हैं कि यहां बिजली और पानी की व्यवस्था की जाए। अभी तक शासन से कोई मदद नहीं आई है। जो भी मदद की गई है वो सभी स्वयंसेवी है।


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