योगी सरकार दे रही है मात्र 250 रुपये प्रतिदिन भत्ता, ‘कोरोना वॉरियर्स’ काली पट्टी बांध कर रहें काम

योगी सरकार दे रही है मात्र 250 रुपये प्रतिदिन भत्ता, ‘कोरोना वॉरियर्स’ काली पट्टी बांध कर रहें काम

लखनऊ: पूरे विश्व में कोरोना का कहर छाया हुआ है। ऐसे में डॉक्टर दिन-रात एक किए हुए हैं। ताकि लोगों की जान बच सकें। अपनी चिंता न करते हुए लोगों की सेवा में एक पैर पर खड़े हैं। लेकिन क्या आपको पता है उत्तर प्रदेश में दिन-रात सेवा देने वाले इंटर्न डाक्टरों को मात्र 250 रुपये प्रतिदिन भत्ता मिलता है। जी हां, लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) में इंटर्न डाक्टरों को केवल 250 रुपये प्रतिदिन भत्ता मिल रहा है। इसलिए वे लोग भूख हड़ताल पर बैठे थे।

उत्तर प्रदेश के बड़ी मेडिकल यूनिवर्सिटियों में से एक है किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू)। इंटर्न डॉक्टर्स केजीएमयू के बाहर भूख हड़ताल पर बैठें थे। लेकिन जिला प्रशासन ने वहां 27 नवंबर को भारी पुलिस तैनात कर दी। यही नहीं प्रशासनिक अधिकारियों ने धारा 144 का हवाला देकर धरना ही खत्म करा दिया।

प्रशासनिक दबाव के कारण इंटर्न डॉक्टर केजीएमयू गेट से हट गए। पर वह अब भी बाजू पर काली पट्टी बांध कर काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि विरोध अब भी जारी है और अगर मांग पूरी नहीं हुई तो फिर से धरना शुरू कर दिया जाएगा। इस बीच यूनिवर्सिटी में कैंडल मार्च निकाल कर विरोध दर्ज कराया जाता रहेगा।

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वहीं अनशन पर बैठे डॉक्टर्स का कहना है कि हमको ‘ताली-थाली या पुष्प वर्षा’ नहीं, अपनी जीविका चलाने के लिए सम्मान जनक भत्ता चाहिए। यही नहीं इंटर्न डाक्टरों का कहना है सरकार कोरोना के दौर में उनके द्वारा दी जा रही सेवाओं को नजरंदाज कर रही है। प्रतिदिन 10-12 घंटे काम करने के बावजूद हमें केवल 7500 प्रति माह मिलता है।

डॉ. शिवम मिश्रा कहते हैं, “एमबीबीएस की डिग्री लेने के बाद भी उनको एक मजदूर से भी कम भत्ता मिल रहा है। यह समस्या सिर्फ उत्तर प्रदेश में है। दूसरे प्रदेशों और केंद्रीय स्वास्थ्य संस्थानों में इंटर्न डाक्टरों को सम्मान जनक भत्ता दिया जा रहा है। दिल्ली में 23500 रुपये, 31000 रुपये असम में, कर्नाटक में 30000 रुपये, बिहार में 20000 रुपये, पश्चिम बंगाल में 28000 रुपये, चंडीगढ़ में 18000 रूपये और आंध्र प्रदेश में इंटर्न डाक्टरों को 19000 रुपये प्रति माह भत्ता दिया जा रहा है। जबकि उत्तर प्रदेश की मेडिकल संस्थाओं में काम करने वाले 1500 से अधिक इंटर्न डॉक्टरों को केवल 7500 प्रति माह दिया जाता है।”

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बता दें कोरोना के समय केजीएमयू में कार्यगत करीब 250 एमबीबीएस और 70 बीडीएस, इंटर्न डॉक्टर, जूनियर डॉक्टरों के साथ मिलकर कोरोना के खिलाफ युद्ध स्तर पर काम कर रहे हैं। डॉक्टर शिवम मिश्रा के अनुसार, इलाज करते समय स्वयं उनको और उनके करीब 15 साथियों को कोरोना हो गया था लेकिन ठीक होने के बाद सभी दोबरा ड्यूटी पर आ गए और लगातार मरीजों की सेवा कर रहे हैं।

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डॉ. अविनाश यादव बताते हैं, “सरकार अगर हमको सम्मान देना चाहती है तो हमारी जीविका को लेकर गंभीरता दिखाए। ताली-थाली बजवाने या पुष्प वर्षा से इंटर्न डॉक्टरों के जीवन में कोई सुधार नहीं आने वाला है। हमको 250 रुपये प्रतिदिन मिलते हैं, जिस से एक N-95 मास्क भी नहीं खरीदा जा सकता है।”

इंटर्न डॉ. रजत यादव ने कहा, “हमको इसकी अवश्यता नहीं हमको ‘कोरोना युद्धा’ कहा जाए, बल्कि हमको इसकी चिंता है कि हमको अपनी जीविका के लिए किसी पर निर्भर ना होना पड़े।” उन्होंने बताया कि इंटर्न डॉक्टरों को कभी-कभी खर्च पूरा करने के लिए अपने घर से पैसा लेना पड़ता है।

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डॉक्टरों ने सरकार से सवाल किया कि क्या मैं खुद को कोरोना योद्धा बताकर होटल में मुफ्त खाना खा सकता हूं या पेट्रोल पम्प से मुझको फ्री पेट्रोल मिल सकता है? अगर नहीं तो ऐसे सम्मान से क्या फायदा? उनका कहना है कि हमें सम्मान नहीं, भत्ता चाहिए है। ताकि हम आत्मनिर्भर बने और सम्मान के साथ जीवन गुजार सकें।

वहीं इस मामले में यूनिवर्सिटी के प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह का कहना है कि इस मामले में शासन स्तर पर फैसला लिया जाएगा। उन्होंने कहा, “इंटर्न डॉक्टरों के विरोध के बाद शासन स्तर पर एक कमेटी गठित की है। जिसमें चिकित्सा शिक्षा और वित्त विभाग के सचिव शामिल हैं। इस कमेटी कि रिपोर्ट आने बाद शासन द्वारा भत्ता बढ़ाने के लिए कोई फैसला लिया जाएगा।”

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