चीन में बीते कई सालों से मुस्लिम उत्पीड़न की खबरें आती रही हैं। हाल ही में शिनजियांग में उइगुर मुसलमानों के साथ हो रहे बर्ताव को लेकर बीबीसी वर्ल्ड न्यूज ने एक रिपोर्ट प्रसारित की थी जिसके चलते वहां की सरकार ने चैनल को प्रतिबंधित कर दिया है। उइगुर उत्पीड़न के बाद अब चीन उत्सुल मुस्लिमों का दमन करने में जुट गया है।
साउथ चाइना सी से सटे सान्या शहर में तकरीबन 10 हजार उत्सुल मुस्लिमों पर दमन शुरू हो गया है। खबरों के मुताबिक, यहां के स्थानीय उत्सुल मुस्लिमों को उनके मस्जिदों पर लाउडस्पीकर नहीं लगाने दिया जा रहा है, साथ ही नई मस्जिदों के निर्माण पर भी रोक लगा दिया गया है। इसके अलावा अरबी पढ़ने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।

अमेरिकी अखबार द न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी 10 हजार आबादी वाले उल्सुल मुसलमानों की पहचाने मिटाने की अभियान में जुटा है। उनकी मस्जिदों से लाउडस्पीकरों को हटवा दिया है और बच्चों को अरबी पढ़ने पर रोक लगा दी गई है। अखबार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ”सरकारी नीतियों में उल्ट-पलट करते हुए हैनान के सान्या शहर में कई तरह के प्रतिबंध लागू किए गए हैं।”
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नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर स्थानीय धार्मिक नेताओं और निवासियों ने अखबार को बताया कि कुछ साल पहले तक, अधिकारी उत्सुल समुदाय की इस्लामी पहचान और मुस्लिम देशों के साथ उनके संबंधों का समर्थन किया था।
हालांकि, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी कई बार यह दावा कर चुकी है कि इस्लाम और मुस्लिम समुदायों पर लगाए गए प्रतिबंध ‘हिंसक धार्मिक चरमपंथ पर अंकुश लगाने’ के उद्देश्य से हैं। इस तर्क का इस्तेमाल सरकारी अधिकारियों ने शिनजियांग में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अपने दबदबे को सही ठहराने के लिए किया है।

इस्लाम पर चीन में अध्ययन करने वाले फ्रॉस्टबर्ग स्टेट यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर मा हायुन ने बताया कि उत्सुल मुस्लिमों पर कड़ा नियंत्रण चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से स्थानीय समुदाय के खिलाफ उसके कैंपेन को दिखाता है।
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हायुन ने कहा कि सरकार द्वारा यह पूरी तरीके से कंट्रोल किए जाने की कोशिश है। यह साफ तौर पर इस्लाम विरोधी है। हालांकि, लगातार चीनी सरकार उस पर लगने वाले इस्लाम विरोधी आरोपों को नकारती रही है। जबकि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने कई मस्जिदों को धवस्त कर दिया है। इसके अलावा, उत्तर-पश्चिमी और मध्य चीन में मौजूद कई इस्लामिक गुंबदों को गिरा दिया गया।
उत्सुल समुदाय पर अध्ययन करने वाले मलेशियाई-चीनी लेखक यूसुफ लियू ने कहा, “समूह एक अलग पहचान बनाए रखने में सक्षम था, क्योंकि वे सदियों से भौगोलिक रूप से अलग-थलग थे और अपनी धार्मिक मान्यताओं को लेकर प्रतिबद्ध थे। वे भाषा, पोशाक, इतिहास, ब्लड रिलेशन और भोजन सहित कई सामान विशेषताओं को साझा करते हैं।”

अपनी रिपोर्ट में द न्यूयॉर्क टाइम्स ने आगे लिखा है कि धार्मिक नेताओं को स्थानीय मस्जिद से लाउडस्पीकर्स हटाने के लिए कहा गया। इसके अलावा, आवाज को भी कम रखने की बात कही गई। एक नई मस्जिद का निर्माण कथित तौर पर इस लिए रोक दिया गया है कि क्योंकि वह अरब वास्तुशिल्प पर बन रही हैं। अब यहां पूरी तरह से धूल इकट्ठा हो गई है। निवासियों का कहना है कि शहर में 18 साल से कम उम्र के बच्चों को अरबी पढ़ने से रोक दिया गया है।
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वहीं, उत्सुल समुदाय के लोगों का कहना है कि वे अरबी सीखना चाहते थे, जिससे न केवल इस्लामी ग्रंथों को बेहतर ढंग से समझ सकें, बल्कि उन अरब के पर्यटकों के साथ भी बातचीत कर सकें, जो उनके यहां रेस्त्रां, होटल और मस्जिद में आते हैं।
नए प्रतिबंधों पर निराशा व्यक्त करते हुए एक स्थानीय धार्मिक नेता ने कहा कि समुदाय को बताया गया था कि उन्हें अब गुंबद बनाने की अनुमति नहीं थी।” नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर उन्होंने बताया, ”मध्य-पूर्व की मस्जिदें इसी तरह हैं। हम चाहते हैं कि ये भी मस्जिदों की तरह दिखें, न कि घरों की तरह।”
कुछ लोगों को हाल ही में सरकार की आलोचना करने को लेकर हिरासत में ले लिया गया था। वहीं, पिछले साल सितंबर महीने में उत्सुल पैरेंट्स और कुछ स्टूडेंट्स ने हिजाब नहीं पहनने के आदेश के खिलाफ कई स्कूलों और सरकारी दफ्तरों के बाहर विरोध प्रदर्शन भी किया था।
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