नई दिल्लीः भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) से एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने अपील की है कि वह विदेशी कंटेट के अनियमित प्रसारण को लेकर आगाह करने वाली अपनी एडवाइजरी को वापस ले ले, क्योंकि इसके प्रतिकूल प्रभाव होंगे। एडिटर्स गिल्ड ने कहा कि वह पीसीआई की तरफ से मीडिया में 25 नवंबर को जारी की गई एडवाइजरी से क्षुब्ध है।
एडिटर्स गिल्ड ने एक पत्र जारी किया जिसमें लिखा है, “पीसीआई की इस एडवाइजरी के जरिए ऐसा लगता है कि पीसीआई जो मीडिया के स्वनियमन की पैरवी करता है और जिसका विश्वास है कि सरकारी दखल प्रेस की स्वतंत्रता के लिए विनाशकारी होगा, वह खुद ऐसी दिशा में कदम बढ़ा रहा है, जो कंटेट प्रकाशित करने वाले संगठनों के खिलाफ सेंसरशिप और दंडात्मक कार्रवाई करेगा।”
शनिवार को एडिटर्स गिल्ड ने अपना बयान जारी कर कहा कि पीसीआई की एडवाइजरी में यह स्पष्ट नहीं है कि इन कंटेट की पुष्टि कौन करेगा और किन आधारों पर इसे सत्यापित किया जाएगा। और सबसे अधिक महत्पूर्ण यह कि अनियमित सर्कुलेशन का क्या मतलब है।
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एडिटर्स गिल्ड ने कहा कि देश में कई प्रकाशन विदेशी एजेंसियों, समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं के कंटेंट को दोबारा नए स्वरूप में पेश करते हैं, जो एक संपादक का विशेषाधिकार होता है और जो अपने प्रकाशन में प्रकाशित हर तरह के कंटेंट के लिए जिम्मेदार होता है।
संस्था का कहना है कि पीसीआई की इस एडवाइजरी के प्रतिकूल प्रभाव होंगे और तुरंत प्रभाव से इस एडवाइजरी को पीसीआई को वापस लेना चाहिए। बता दें कि अपनी एडवाइजरी में पीसीआई ने कहा था कि यह फैसला विदेशी सामग्री प्रकाशित करने में भारतीय समाचार पत्रों की जिम्मेदारी के बारे में सरकार के विभिन्न विभागों से प्राप्त अनुरोधों पर आधारित है।
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पीसीआई का मानना है कि विदेशी कंटेंट का अनियमित सर्कुलेशन वांछनीय नहीं है। पीसीआई ने इस मीडिया एडवाइजरी में कहा कि स्रोत दिए जाने के बावजूद भारतीय अखबारों में प्रकाशित विदेशी अखबारों के कंटेंट के लिए रिपोर्टर, संपादक और प्रकाशक को जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
दरअसल, भारतीय समाचार पत्रों में न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉशिंगटन पोस्ट और द इकोनॉमिस्ट सहित कई विदेशी प्रकाशनों के संपादकीय अक्सर प्रकाशित होते रहते हैं। उल्लेखनीय है कि कई विदेशी समाचार पत्रों ने नरेंद्र मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी की आलोचना करते रहे हैं। माना जा रहा है कि पीसीआई का ये कदम उसी संदर्भ में उठाया गया है।
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केंद्र की मोदी सरकार ने हाल ही में डिजिटल मीडिया में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा 26 फीसदी निर्धारित कर दी है। जिसके चलते भारतीय संस्करण चलाने वाले कई विदेश प्रकाशनों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इसी हफ्ते विदेशी अखबार ‘द हफिंगटन पोस्ट’ ने अपनी भारतीय संस्करण ‘हफपोस्ट इंडिया’ को बंद कर दिया।
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