मित्र राष्ट्रों के बीच बढ़ा तनाव, फ्रांस ने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से अपने राजदूत बुलाए

मित्र राष्ट्रों के बीच बढ़ा तनाव, फ्रांस ने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से अपने राजदूत बुलाए

फ्रांस ने बीते दिनों ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका पर पीठ में छुरा भोंकने का आरोप लगाया था। अब उसने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से अपने राजदूतों को बुलाने का फैसला किया है। फ्रांस ने घोषणा की है कि वह विचार-विमर्श करने के लिए दोनों देशों से अपने राजदूतों को वापस बुला रहा है।

इसे फ्रांस का सुरक्षा समझौते के विरोध के तौर पर देखा जा रहा है, जिसमें ब्रिटेन भी शामिल है। दरअसल, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने बुधवार को घोषणा की थी कि उन्होंने अमेरिकी न्यूक्लियर सबमरीन में निवेश करने और फ्रांस के साथ हुए डीजल-इलेक्ट्रिक सबमरीन्स अनुबंध से अलग होने का फैसला किया है।

फ्रांस-ऑस्ट्रेलिया के इस फैसले से बेहद नाराज है और उसने ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका से अपने राजदूतों को वापस बुला लिया है। हालांकि, ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री मॉरिसन का कहना है कि उनकी ओर से ये फैसला बदले रणनीतिक माहौल के कारण लिया है।

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बुधवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ नए सुरक्षा समझौते की घोषणा की थी। इस सुरक्षा समझौते के तहत ऑस्ट्रेलिया में परमाणु क्षमता से संपन्न पनडुब्बियां बनाई जाएंगी। इसे ‘ऑकस समझौता’ कहा जा रहा है। इस समझौते के बाद फ्रांस की सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी डीसीएनएस से ऑस्ट्रेलिया ने 12 पनडुब्बी बनाने का अनुबंध तोड़ दिया है।

मित्र राष्ट्रों के बीच बढ़ा तनाव, फ्रांस ने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से अपने राजदूत बुलाए

राजदूतों के बुलाने के फैसले के बाद फ्रांस के विदेश मंत्री ज्यां ईवरे द्रियां ने कहा है कि स्थिति की ‘असाधारण गंभीरता’ को देखते हुए यह ‘असाधारण फैसला’ उचित है। ऑकस समझौते के बाद फ्रांस बेहद हताश है क्योंकि उसका ऑस्ट्रेलिया के साथ किया गया अरबों डॉलर का समझौता खत्म हो गया है।

ऑकस समझौते को दक्षिण चीन सागर में बढ़ते चीन के दबदबे को समाप्त करने की दिशा में एक कदम बताया जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने बुधवार को इसकी घोषणा की थी।

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फ्रांस को इस गठबंधन की घोषणा इसके सार्वजनिक होने से कुछ ही घंटों पहले दी गई थी। शुक्रवार रात को फ्रांस के विदेश मंत्री ने बयान जारी किया जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के निवेदन पर राजदूतों को वापस बुलाया गया है।

ज्यां ईवरे द्रियां ने कहा कि यह सौदा एक अस्वीकार्य रवैया सहयोगियों और साझेदारों के बीच बनाता है जो कि सीधे तौर पर हमारे गठबंधनों, हमारे साझेदारों की दृष्टि और यूरोप में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के महत्व को प्रभावित करता है।

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दूसरी तरफ एक अमेरिकी अधिकारी का कहना है कि बाइडन प्रशासन ने इस कदम पर खेद व्यक्त किया है और मतभेदों को सुलझाने के लिए आने वाले समय में फ्रांस से बातचीत करने की बात कही है।

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उधर, ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री मरीस पेन ने वॉशिंगटन में कहा कि वो फ्रांस की ‘निराशा’ को समझती हैं और उम्मीद करती हैं कि वो फ्रांस को यह समझाएंगी कि ‘द्विपक्षीय संबंध को हम महत्व देते हैं।’ देखा जाए जो मित्र राष्ट्रों के बीच राजदूतों को वापस बुलाना बेहद असामान्य घटना है और यह माना जा रहा है कि फ्रांस ने पहली बार दोनों देशों से अपने दूतों को वापस बुलाया है।

पहले ही वॉशिंगटन स्थित फ्रांस के राजनयिकों ने अमेरिका-फ्रांस के संबंधों पर शुक्रवार को प्रस्तावित एक उत्सव को रद्द कर दिया था। देखा जाए तो अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए ऑकस समझौते के बाद ऑस्ट्रेलिया दुनिया का चौथा ऐसा देश बन जाएगा जिसके पास परमाणु पनडुब्बियां होंगी।

इस सौदे के तहत ऑस्ट्रेलिया के साथ साइबर क्षमता, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और अन्य समुद्री तकनीक साझा की जाएंगी। अब सवाल उठता है कि चीन का इस पर क्या रद्द-ए-अमल है। चीन ने आरोप लगाया है कि तीनों देशों ने यह सौदा ‘शीत युद्ध की मानसिकता’ से किया है।


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