सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को नागरिकता विरोधी (संशोधन) अधिनियम (CAA) प्रदर्शनकारियों से वसूले गए पैसे वापस करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आज शुक्रवार को कहा, “जब नोटिस वापस ले लिए गए हैं तो तय प्रक्रिया का पालन करना होगा। यदि कुर्की कानून के विरुद्ध की गई है और आदेश वापस ले लिया गया है, तो कुर्की को कैसे चलने दिया जा सकता है?”
दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट में प्रदेश की योगी सरकार ने कहा कि उसने सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को हुए नुकसान के लिए 2019 में CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ शुरू की गई 274 वसूली नोटिस और कार्यवाही को वापस ले लिया है।
BIG DEVELOPMENT: After UP govt withdrew recovery notices issued by the state to recover the damage caused to public properties in connection with protests against the CAA, #SupremeCourt DIRECTS REFUND of all such recoveries made till now. https://t.co/GitW0xZ7RY
— Bar & Bench (@barandbench) February 18, 2022
इधर, सुप्रीम कोर्ट से यूपी राज्य के अतिरिक्त महाधिवक्ता ने वसूली की वापसी का आदेश नहीं लेने का आग्रह किया है क्योंकि यह राशि करोड़ों रुपये में चली गई और यह दिखाएगा कि प्रशासन द्वारा की गई पूरी प्रक्रिया अवैध थी।
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हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के पीठ ने अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद की इस दलील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि प्रदर्शनकारियों और राज्य सरकार को रिफंड का निर्देश देने के बजाय क्लेम ट्रिब्युनल में जाने की अनुमति दी जानी चाहिए।

दरअसल, उच्चतम न्यायालय में परवेज आरिफ टीटू ने एक याचिका दायर की थी। जिस पर सुनवाई पर कोर्ट ने सुनवाई किया। याचिका में यूपी में CAA आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए जिला प्रशासन द्वारा कथित प्रदर्शनकारियों को भेजे गए नोटिस को रद्द करने की मांग की गई थी।
याचिका में आरोप लगाया गया था कि इस तरह के नोटिस एक ऐसे व्यक्ति के खिलाफ ‘मनमाने तरीके’ से भेजे गए हैं, जिनकी छह साल पहले 94 साल की उम्र में मौत हो गई थी और साथ ही 90 साल से अधिक उम्र के दो लोगों सहित कई अन्य लोगों को भी भेजा गया था।
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उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने दिसंबर 2019 में कथित CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों को जारी भरपाई नोटिस पर कार्रवाई की थी, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने 11 फरवरी को सरकार को फटकार लगाई थी।
न्यायालय ने इसके साथ ही योगी सरकार को अंतिम अवसर दिया था कि वह कार्रवाई वापस ले हुए चेतावनी दी थी कि उसकी यह कार्रवाई कानून के खिलाफ है इसलिए अदालत इसे निरस्त कर देगी। न्यायालय ने कहा था कि दिसंबर 2019 में शुरू की गई कार्रवाई उस कानून के विरुद्ध है, जिसकी व्याख्या सुप्रीम कोर्ट ने की है।
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