दुनियाभर में महिलाओं को लेकर आज भी दोयम दर्जे के व्यवहार का सामना है। खासकर अभी भी विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं को लिंग के आधार पर काफी ज्यादा भेदभाव किया जाता है। भले अमीर देश समानता के लाख दावे करते हैं लेकिन महिलाओं के प्रति उनका रवैया बेहद कराब रहा है। हाल ही में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमें बताया गया है कि पश्चिमी दुनिया के कई अमीर देश लैंगिक समानता के मामले में गरीब देशों से पीछे हैं।
यूनेस्को की हाल की एक रिपोर्ट में सामने आई है जिसमें ये बात कही गई है। हालांकि, अप्रैल महीने में पूरी रिपोर्ट जारी की जाएगी। यूनेस्को के इस रिपोर्ट में बताया गया है, “वर्तमान प्रौद्योगिकी क्रांति के अधिकांश क्षेत्रों में कौशल की कमी के बावजूद, इंजीनियरिंग से स्नातक करने वालों में महिलाओं की हिस्सेदारी महज 28 फीसद है। वहीं, कंप्यूटर साइंस और इंफॉर्मेटिक्स से स्नातक करने वालों में महिलाओं की हिस्सेदारी 40 फीसद है। यूनेस्को, संयुक्त राष्ट्र का शैक्षणिक, वैज्ञानिक, और सांस्कृतिक संगठन है।
#WomenInScience are still being sidelined in science.
— UNESCO 🏛️ #Education #Sciences #Culture 🇺🇳😷 (@UNESCO) February 13, 2021
Whether it’s from the laboratory to the boardroom or Twitter to television, we must amplify the voices of female scientists and stress that women and girls belong in science.https://t.co/5d1dzKT3PY
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंटोनियो गुटेरेश का कहना है कि वृद्धि कोरोना महामारी के दौरान बंद प्रयोगशालाएं और बीमारों की तीमारदारी के मामलों में वैज्ञानिक क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं की सबसे बड़ी चुनौती थी। विज्ञान में महिलाओं के अंतरराष्ट्रीय दिवस पर उन्होंने एक संदेश में कहा, “बेहतर भविष्य के निर्माण के लिए विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में लैंगिक समानता को प्रोत्साहन देना जरूरी है।”
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अमीर देशों का ट्रैक रिकॉर्ड
यूनेस्को की रिपोर्ट में ये बात सामने आया है कि आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के सदस्यों का ट्रैक रिकॉर्ड इंजीनियरिंग स्नातकों में महिलाओं की हिस्सेदारी के मामले में वैश्विक औसत से कम है। ज्यादातर अमीर देश इस संगठन में शामिल हैं। फ्रांस में इंजीनियरिंग स्नातकों में महिलाओं की हिस्सेदारी 26.1 फीसद, ऑस्ट्रेलिया में 23.2 फीसद, अमेरिका में 20.4 फीसद, स्विट्जरलैंड में 16.1 फीसद, दक्षिण कोरिया में 20.1 फीसद और जापान में 14 फीसद है।
इस मामले में यूनेस्को को कोई अलग क्षेत्रीय पैटर्न नहीं मिला। हालांकि, ये दर्ज गया है कि अरब देशों में महिला इंजीनियरिंग स्नातकों की हिस्सेदारी अल्जीरिया में 48.5 फीसद, ओमान में 43.2, मोरक्को में 42.2, सीरिया में 43.9 और ट्यूनीशिया में 44.2 फीसद है। वहीं, महिलाओं की हिस्सेदारी का प्रदर्शन लैटिन अमेरिकी देश में भी सही है। इंजीनियरिंग स्नातकों में महिलाओं की हिस्सेदारी क्यूबा में 41.7 फीसद, उरुग्वे में 45.9 फीसद और पेरू में 47.5 फीसद है। यूनेस्को ने रिपोर्ट में बताया, “कुल मिलाकर, महिला शोधकर्ता छोटे और कम वेतन वाले करियर की ओर रुख करती हैं।”
ग्रेजुएट पैदा करने में भारत अव्वल
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत विज्ञान के विषयों में महिला ग्रेजुएट पैदा करने में पहले नंबर पर है। पर महिलाओं को नौकरी देने के मामले में 19वें स्थान पर है। महिलाओं का हिस्सा विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में पास करने वाले लोगों में 40 फीसद है। लेकिन महिलाओं का अनुपात शोध कार्य में लगे 28,00 वैज्ञानिकों में सिर्फ 14 फीसद है। कॉरपोरेट कंपनियां विशेष स्कॉलरशिप देकर महिलाओं को रिसर्च के क्षेत्र में लाने की कोशिश कर रही हैं।
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दरकिनार करने की वजह लिंग
यूनेस्को की रिपोर्ट में बताया गया है, “महिलाओं के काम को हाई-प्रोफाइल पत्रिकाओं में प्रस्तुत किया जाता है और उन्हें अक्सर प्रचार के लिए पारित कर दिया जाता है। महिलाओं को आमतौर पर उनके पुरुष सहयोगियों की तुलना में कम रकम के शोध अनुदान दिए गए।”
यूनेस्को के डाइरेक्टर जनरल ओद्रे आजूले बताती हैं, “आज 21वीं सदी में भी लिंग की वजह से, विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं और लड़कियों को दरकिनार किया जा रहा है।” वो आगे कहती हैं, “महिलाओं को यह जानना चाहिए कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित के क्षेत्र में उनकी भी एक जगह है। उन्हें वैज्ञानिक प्रगति में हिस्सेदारी का अधिकार है।”
यूनेस्को ने कहा कि तेजी से बढ़ रहे ऑटोमेशन के क्षेत्र में महिलाएं नहीं पिछड़ें, इसके लिए जरूरी है कि उन्हें डिजिटल इकोनॉमी में समुचित हिस्सेदारी मिले, ताकि पहले से चले आ रहे लैंगिक पूर्वाग्रहों को दूर किया जा सके।
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अपनी रिपोर्ट में यूनेस्को ने कहा है, “समाज में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का असर बढ़ता जा रहा है, लेकिन इसके अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में महिलाओं का समुचित प्रतिनिधित्व नहीं है। इसका मतलब है कि दैनिक जीवन को प्रभावित करने वाले उत्पादों के डिजाइन में महिलाओं की जरूरतों और नजरिए को अनदेखा किए जाने की संभावना है।”
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