जाने-माने शायर, आलोचक और नाटककार शमीम हनफी का निधन हो गया है। वे 82 साल के थे। कुछ दिनों पहले उन्हें कोरोना संक्रमण होने के बाद दिल्ली के डीआरडीओ अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 4 मई को एनडीटीवी के पत्रकार और एंकर रवीश कुमार ने हनफी के लिए प्लाज्मा डोनेट करने की अपील की थी।
उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा था, “दिल्ली में शमीम हनफी साहब को प्लाज्मा चाहिए। जल्दी करें। मुहतरम शमीम हनफी साहब बहुत बीमार हैं। उर्दू वाले जानते हैं कि शमीम साब क्या हैं…प्लीज़…आगे आइए!”
शमीम हनफी का जन्म 17 मई, 1939 को सुल्तानपुर में प्रसिद्ध वकील मुहम्मद यासीन सिद्दीकी और बेगम ज़ेब अल-निसा के घर में हुआ था। वह छह भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। उन्होंने अपना प्रारंभिक जीवन सुल्तानपुर में बिताया।
अभी-अभी हृदय विदारक समाचार प्राप्त हुआ।
— Vani Prakashan (@ReadWithVani) May 6, 2021
वरिष्ठ उर्दू आलोचक, शायर, नाटककार, नयी शायरी के निगार श्री प्रो. शमीम हनफ़ी साहब हमारे बीच नहीं रहे।
बहुत कष्टप्रद घड़ी है। वाणी प्रकाशन ग्रुप परिवार की ओर से अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।
सादर नमन।🙏 pic.twitter.com/9CRuBZLL6n
हालांकि, वे कॉलेज की शिक्षा के लिए आगे चलकर इलाहाबाद आ गए जहां वे फारूक गोरखपुरी के संपर्क में आए। जिन्होंने उनके मन पर गहरी छाप छोड़ी। हनफी ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ाया था। बाद में वह जामिया मिलिया इस्लामिया में एक मानद प्रोफेसर बन गए।
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देश-विदेश के अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित शमीम हनफी जामिया में कार्यरत रहते हुए यूनिवर्सिटी की पत्रिका ‘जामिया’ का कई वर्षों तक सम्पादन किया।
उनकी साहित्यिक आलोचना की तीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अनेक पुस्तकों के सम्पादन सहित उन्होंने चार नाटक, अनुवाद की चार पुस्तकों के अलावा बाल-साहित्य भी लिखा। कुछ सालों पहले उनका कविताओं का एक संग्रह प्रकाशित हुआ था। चित्रकला और रूपंकर कलाओं में भी हनफी काफी गहरी रुचि रखते थे। इसके अलावा वे व्यावहारिक कला और मिट्टी के बर्तनों आदि में गहरी रुचि रखते थे।
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