कोरोना ने हमसे एक और धरोहर छीन लिया, कवि और पत्रकार मनोज कुमार झा नहीं रहें

कोरोना ने हमसे एक और धरोहर छीन लिया, कवि और पत्रकार मनोज कुमार झा नहीं रहें

कवि लेखक और पत्रकार मनोज कुमार झा का आज रविवार दोपहर दिल्ली में कोरोना संक्रमण के बाद निधन हो गया। वे बहुत ही सरल स्वभाव के मालिक थे। कुछ भी कहा एक झटके में मान जाते थे। आज उनके यूं जाने से हमने ऐसे व्यक्ति को खोया है जो न केवल कवि लेखक और पत्रकार थे बल्कि बहुत ही अच्छा इंसान थे। डेहरी ऑन सोन के रहने वाले मनोज कुमार झा लंबे समय से फरीदाबाद में रह रहे थे। उन्होंने जामिया मिल्लिया इस्लामिया से इतिहास में एम. ए. किया। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली में रिसर्च एसोसिएट रहे। तीन कविता संग्रह प्रकाशित। दैनिक भास्कर समेत कई अखबारों और वेबसाइट में काम किया। फिलहाल, लेखन और पत्रकारिता में सक्रिय थे। मनोज सर आप बहुत याद आओगे। बहुत कुछ करना था आपने कहा था कि साइट मिलकर चलाएंगे फिर बीच में ही साथ छोड़कर जाने की क्या जल्दी थी। मन बहुत दु:खी है। श्रद्धांजलि!

मुझे भी तो आखिर मिट ही जाना है!

कभी भी कोई कविता
उस दु:ख को व्यक्त नहीं
कर सकती
जो दुख झेलता है मनुष्य
उस सुख को भी व्यक्त करना
कविता में नामुमकिन है…
जो शायद ज़िन्दगी का हासिल है

कविता दुख और सुख से लिखी जाती है
घृणा, क्रोध और बदले की भावना से भी
कविता अपनी हीनता की
अभिव्यक्ति भी होती है

प्रेम तो कविता का उत्स है
प्रेम मिले न मिले
कविता प्रेम के लिए ही लिखी जाती है

कविता अच्छी और बुरी होती है
कभी समझ में आती है कभी नहीं

भूख से भी कविता लिख दी जाती है
और कविता भूख मिटा भी देती है

कविता के उपादानों की कोई कमी नहीं है

मैं तो सिर्फ़ तुम्हारे लिए ही लिखता हूँ
लिखता रहूँगा
इस उम्मीद में कि एक दिन
ये कविताएँ किसी तरह तुम तक
पहुँच ही जाएँगी

नहीं तो क़ागज पर लिखी कविता
मिट जाएगी
जैसे मुझे भी तो आखिर
मिट ही जाना है!

मनोज कुमार झा


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