वक्फ बोर्ड की जमीन अवैध तरीके से राम मंदिर ट्रस्ट ने खरीदी, घोटाले की ये है असल कहानी

वक्फ बोर्ड की जमीन अवैध तरीके से राम मंदिर ट्रस्ट ने खरीदी, घोटाले की ये है असल कहानी

राम मंदिर के लिए खरीदी गई जमीन को लेकर हर दिन एक नया एंगल सामने आ रहा है। अब तक जमीन को दो हिस्सों में खरीदने की बात सामने आ चुकी है। पहले मामले में हिस्से में हरीश पाठक और उनकी पत्नी कुसुम पाठक से सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी ने दो करोड़ में एक जमान का प्लॉट खरीदा और उसके दो मिनट के भीतर उन दोनों ने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को 18.5 करोड़ में बेंच दिया।

लेकिन इस खरीद बिक्री के ठीक 12 मिनट पहले हरीश पाठक ने एक और जमीन का टुकड़ा, जो 18.5 करोड़ में खरीदी गई जमीन का ही एक हिस्सा है; को राम मंदिर ट्रस्ट ने 8 करोड़ में खरीदी। यानी हरीश पाठक ने एक ही जमीन का एक हिस्सा पहले सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी नाम के बिचौलियों के मार्फत राम जन्मभूमि ट्रस्ट को 18.5 में बेचा और फिर उसका दूसरा हिस्सा खुद ट्रस्ट को 8 करोड़ में बेचा। यह सब कुछ महज 15 मिनट के भीतर हुआ। इतनी बात अब तक सामने आ चुकी है।

लेकिन अब तक जो बात लोगों के सामने नहीं आई है वह ये कि हरीश पाठक पर उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों में धोखाधड़ी के कई मामले दर्ज हैं। पुलिस पहले पाठक के घर की कुर्की कर चुकी है, फिलहाल वे पुलिस रिकॉर्ड में फरार चल रहे हैं। ये और बात है कि फरारी को दौरान ही वे आकर ये डिल करते हैं। लेकिन इन सबसे से अलग एक तीसरा एंगल ये निकल कर सामने आया है कि जिस जमीन का श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने खरीद किया उसका मालिकाना हक वक्फ बोर्ड के पास है जिसकी बिक्री लीगल तौर पर नहीं की जा सकती है।

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हरीश पाठक और उनकी पत्नी कुसुम पाठक (फोटो क्रेडिट- न्यूज़लॉन्ड्री)

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दरअसल, न्यूज़लॉन्ड्री वेब साइट ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें सामने आया है कि दस्तावेजों के मुताबिक, सुल्तान अंसारी और रवि तिवारी से खरीदी गई जमीन और सीधे हरीश पाठक और उनकी पत्नी कुसुम पाठक से खरीदी गई, दोनों जमीन विवादास्पद है। रिपोर्ट के मुताबिक, पाठक दंपति ने साल 2017 में यह जमीन जावेद आलम, महफूज आलम, फिरोज आलम और नूर आलम से दो करोड़ रुपये में खरीदी थी। और ये जमान को फरोख्त करने वाले आपस में भाई हैं।

न्यूज़लॉन्ड्री की रिपोर्ट के मुताबिक, श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा खरीदी गई जमान दरअसल वक्फ बोर्ड की है। वेबसाइट ने लिखा है कि उन्हें इसकी जानकारी वहीद अहमद की ओर से दी गई जो जमीन को बेचने वाले आलम बंधुओं के खानदान से आते हैं। वहीद अहमद कहते हैं, “हमारे खानदान के बुजुर्ग फकीर मोहम्मद, जो मेरे दादा के दादा थे, ने साल 1924 में इस जमीन के साथ-साथ कई और संपत्ति वक्फ को दान कर दी थीं। वक्फ को गई जमीन को लेकर उस समय कुछ नियम बने थे। जिसके मुताबिक खानदान में ही इसकी देखभाल करने के लिए मुतवल्ली (अध्यक्ष) का चुनाव होगा। जो भी अध्यक्ष होगा जमीन उसके नाम पर होगी और उस जमीन से जो भी कमाई होगी उसे गरीब-मजलूमों को दिया जाएगा। इसके पहले अध्यक्ष खुद फकीर मोहम्मद बने।”

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वहीद अहमद (फोटो क्रेडिट- न्यूज़लॉन्ड्री)

वहीद ने आगे बताया है, “यह जमीन तो बिक ही नहीं सकती क्योंकि यह वक्फ की जमीन है। जो संपत्ति एक बार वक्फ की हुई वो हमेशा वक्फ की ही रहेगी।” वे आगे बताते हैं, “फकीर मोहम्मद के निधन के बाद दूसरे लोग खानदान द्वारा चुनकर वक्फ की जमीन की देख-भाल करते रहे। साल 1986 तक सब ठीक चला। इसी साल महमूद आलम अध्यक्ष बने। उनके निधन के बाद साल 1994 में अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी मोहम्मद असलम के पास आई। नियम से जमीन का मालिकाना महमूद आलम के बाद मोहम्मद असलम के पास आना चाहिए था, लेकिन 2009 में असलम ने पाया कि आलम के बेटे जावेद, महफूज़, फिरोज और नूर के नाम जमीन के मालिकों के रूप में दर्ज हो गए हैं।”

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रिपोर्ट के मुताबिक, मोहम्मद असलम ने आलम भाइयों के नाम पर जमीन दर्ज होने की जानकरी मिलने के बाद स्थानीय तहसीलदार को लिखित शिकायत की। जिला प्रशासन ने लंबी लड़ाई के बाद सितंबर 2017 में बाग बिजैसी में मौजूद भूमि की बिक्री पर रोक लगा दी। न्यूज़लॉन्ड्री ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि इन सभी बातों का दस्तावेज उसके पास मौजूद है।

वहीद ने कानूनी आदेश के बाद जमीन पर एक बोर्ड लगवाया था जिसपर लिखा हुआ था, “यदि कोई वक्फ संपत्ति को बैनामा लेता है तो वह शून्य है। यह संपत्ति हाजी फकीर मोहम्मद के नाम दर्ज है।” हालांकि, अब वह बोर्ड वहां मौजदू नहीं है। वहीद अहमद का कहना है कि हरीश पाठक के लोगों ने उसे हटा दिया था। अयोध्या अपर आयुक्त ने इस जमीन की खरीद बिक्री पर 19 सितंबर 2017 को रोक लगा दिया था। पाठक दंपति ने बावजूद इसके 20 नवंबर 2017 को यह जमीन अपने नाम पर बैनामा करा लिया। शायद यही वजह रही होगी कि आनन-फानन में कुछ ही मिनट के भीतर एक भारी रकम देकर मंदिर ट्रस्ट ने जमीन को अमने नाम कराया।

खैर, जब पाठक दंपत्ति द्वारा जमीन अपने नाम करने की जानकारी मिली तो 22 अप्रैल, 2018 को वहीद अहमद और अब्दुल वाहीद ने वक्फ बोर्ड की बेचने वाले आलम भाइयों और खरीदने वाले पाठक दंपत्ति के खिलाफ राम जन्मभूमि थाने में एक एफआईआर दर्ज कराई। राम जन्मभूमि थाने में दर्ज कराई एफआईआर 40/2018 में कहा गया है कि आलम भाइयों ने वक्फ के स्वामित्व वाली जमीन को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बेचा गया। यह जमीन को बेचा नहीं जा सकता और इसका मुकदमा फैजाबाद आयुक्त के यहां चल रहा है। फिलहाल इस पर स्टे लगा हुआ है।

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बाग बिजैसी भूमि पर पहले लगाया गया बोर्ड (फोटो क्रेडिट- न्यूज़लॉन्ड्री)

रिपोर्ट में कहा गया है कि जमीन की जांच के लिए उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने अपने एक सर्किल अफसर को भेजा था। वक्फ बोर्ड के विधि सहायक शकील अहमद द्वारा 10 अप्रैल, 2018 को बोर्ड के अध्यक्ष को एक पत्र लिखा गया। जिसमें बताया गया कि 20 नवंबर, 2017 को वक्फनामा में अंकित संपत्ति गाटा संख्या 242/1, 243, 244, 246, कुल रकबा 2.3 हेक्टेयर को मुतवल्ली नूर आलम व उनके भाइयों द्वारा श्रीमती कुसुम पाठक और हरीश पाठक को बेंच दिया गया है। यह बिक्री बिना बोर्ड के इजाजत के की गई है।

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जैसा कि मालूम है कि श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट सदस्य और विश्व हिंदु परिषद के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री चंपत राय का नाम सामने आया है। क्योंकि ट्रस्ट की तरफ से उन्हीं का नाम दर्ज हुआ है। घोटाले की बात सामने आने के बाद चंपत राय का दावा है कि जमीन का एंग्रीमेंट 2019 में हो गया था। लेकिन जिस एग्रिमेंट की बात चंपत राय कर रहे हैं वह 17 सितंबर, 2019 को हुआ था। इस एग्रिमेंट के मुताबिक, भूमि संख्या 242/1, 242/2, 243, 244 और 246 की कुल 2.3 हेक्टेयर जमीन की बिक्री दो करोड़ रुपये में तय हुई थी। दूसरी बात ये कि वह एग्रिमेंट तीन साल के लिए वैध था। हालांकि, ट्रस्ट का इस सफाई है कि यह एग्रिमेंट 18 मार्च, 2021 को ‘रद्द करने के लिए पंजीकृत’ था। न्यूज़लॉन्ड्री की मुताबिक, उसके पास जो दस्तावेज हासिल हुए उसके अनुसार, मंदिर ट्रस्ट का ये दावा गलत है।

सच्चाई ये है कि 17 सितंबर 2019 को तीन साल के लिए हुए समझौते को 18 मार्च 2021 को रद्द कर दिया गया। ऐसे में चंपत राय और मंदिर ट्रस्ट की भूमिका पर एक नया संदेह ये खड़ा होता है जिस एंग्रीमेंट का जिक्र ट्रस्ट के अध्यक्ष कर रहे हैं उसमें जमीन के पूरे हिस्से का एग्रीमेंट (भूमि संख्या 242/1, 242/2, 243, 244 और 246 की कुल 2.334 हेक्टेयर) पाठक दंपति ने दो करोड़ में किया था। लेकिन 18 मार्च को जब जमीन की रजिस्ट्री हुई तब उसे तीन हिस्सों में बेचा गया।

सुल्तान अंसारी और रवि तिवारी से कुल जमीन 2.334 हेक्टेयर में से ट्रस्ट द्वारा 1.208 हेक्टेयर 18.5 करोड़ में खरीदा गया और 1.037 हेक्टेयर सीधे पाठक दंपत्ति से आठ करोड़ में खरीदा गया। पाठक दंपत्ति ने बाकी बची .089 हेक्टेयर जमीन को अपने ड्राइवर रविंद कुमार दुबे को दान कर दिया। ये सभी खरीद-बिक्री 18 मार्च 2021 की शाम में कुछ मिनटों के अंतराल में हुई थी। इस खरीद-फरोख्त में अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय और एक अन्य ट्रस्टी अनिल मिश्रा बतौर गवाह पेश हुए।


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