नेतन्याहू का जाना तय, नफ्ताली बेनेट होंगे इस्राइल के अगले प्रधानमंत्री

नेतन्याहू का जाना तय, नफ्ताली बेनेट होंगे इस्राइल के अगले प्रधानमंत्री

इस्राइल में बिन्यामिन नेतन्याहू का प्रधानमंत्री पद से हटने का रास्ता लगभग तय हो गया है। विपक्षी दलों के बीच सरकार बनाने को लेकर सहमति बन गई है जिसके बाद नेतन्याहू की विदाई का रास्ता साफ हो गया है। नेतन्याहू इसराइल के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले नेता हैं। वे लगभग 12 साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे हैं।

इस्राइल के विपक्षी दल के नेताओं ने बुधवार को राष्ट्रपति को सूचित किया कि उनका गठबंधन सरकार बनाने के लिए तैयार है। विपक्षी दलों के पास बुधवार 2 जून की आधी रात तक का ही समय था। मध्यमार्गी नेता याइर लैपिड ने समयसीमा खत्म होने से 35 मिनट पहले राष्ट्रपति रोएवन रिवलिन को एक ईमेल भेजी, जिसमें लिखा, “मैं आपको सूचित करते हुए बहुत सम्मानित महसूस कर रहा हूं कि मैं सरकार बनाने में सफल हो गया हूं।”

बताया जा रहा है कि जब लैपिड ने मेल भेजा उस वक्त राष्ट्रपति रिवलिन इस्राइली फुटबॉल कप के फाइनल मैच में थे। राष्ट्रपति दफ्तर के मुताबिक, रिवलिन ने फोन कर लैपिड को बधाई दी। लैपिड के मुख्य सहयोगी दक्षिणपंथी नेता नफ्ताली बेनेट हैं। दोनों नेताओं के बीच बारी-बारी से प्रधानमंत्री बनने का समझौता हुआ है। पहले बेनेट दो साल तक प्रधानमंत्री रहेंगे। उसके बाद पूर्व टीवी होस्ट और वित्त मंत्री, 57 वर्षीय याइर लैपिड प्रधानमंत्री बनेंगे।

नेतन्याहू का जाना तय, नफ्ताली बेनेट होंगे इस्राइल के अगले प्रधानमंत्री

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इन दोनों नेताओं की पार्टी के अलावा गठबंधन में कई छोटे दल भी नई सरकार का हिस्सा होंगे। ये सभी अलग-अलग राजनीतिक विचारधारओं से संबंध रखते हैं। मसलन, युनाइटेड अरब लिस्ट भी इस गठबंधन का हिस्सा है, जो देश की 21 प्रतिशत अरब आबादी का प्रतिनिधित्व करती है। ये पार्टी पहली बार सरकार में शामिल होने जा रही है। वहीं, बेनेट की यामिना पार्टी दक्षिणपंथी झुकाव रखती है। जबकि रक्षा मंत्री बेनी गांत्स की ब्लू एंड वाइट वामपंथी झुकाव रखने वाली पार्टी है। इसके अलावा वाम दल मेरेत्स और लेबर पार्टी भी सरकार का हिस्सा होंगी।

पूर्व रक्षा मंत्री अविग्दोर लिबरमान की राष्ट्रवादी यिसराएल बेतेनू पार्टी और पूर्व शिक्षा मंत्री दक्षिणपंथी गीडन सार की न्यू होप भी गठबंधन में शामिल हुई हैं। बहुत मामूली बहुमत से बना यह नाजुक गठबंधन दो हफ्ते के भीतर शपथ लेने की तैयारी कर रहा है, जिस कारण नेतन्याहू की लिकुड पार्टी के पास इसके सदस्यों को तोड़कर अपनी ओर मिलाने के लिए बहुत कम वक्त होगा।

हालांकि, इस्राइल के राजनीतिज्ञों का मानना है कि नेतन्याहू आगे भी को कसर नहीं छोड़ेंगे और हर संभव कोशिश करेंगे। इसमें उनके निशाने पर यामिना पार्टी के सांसद हो सकते हैं जो अरब और वामपंथियों के साथ समझौते से नाखुश हैं। हारेत्स अखबार के राजनीतिक विश्लेषक आंशेल फेफर ने ट्वीट कर लिखा, “ठीक है। शांत रहिए। जब तक विश्वास मत पारित नहीं हो जाता तब तक नेतन्याहू प्रधानमंत्री हैं। और वह गठबंधन के मामूली बहुमत को तोड़ने में कोई कसर नहीं उठा रखेंगे। अभी यह मामला खत्म नहीं हुआ है।”

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फिलहाल, इस्राइली संसद क्नेसेट में 120 सदस्य शामिल होते हैं। अकेले नेतन्याहू के पास 30 सीटें हैं यानी लैपिड की येश एतिद पार्टी से दोगुनी। और उनके पास कम-से-कम तीन अन्य धार्मिक और राष्ट्रवादी दलों का समर्थन भी है। प्रधानमंत्री पद पर 12 साल तक काबिज रहने वाले नेतन्याहू देश और दुनिया में ध्रुवीकरण करने वाले नेता माने जाते हैं। 71 वर्षीय नेतन्याहू ने बेनेट-लैपिड गठबंधन को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताया था। लेकिन पिछले दो साल में चार बार चुनाव के बावजूद वह बहुतम जीतने में नाकाम रहे हैं।

मध्यमार्गी माने जाने वाले लैपिड ने इस साल 23 मार्च को हुए चुनाव में भी उनके नाकाम होने के बाद सरकार बनाने का बीड़ा उठाया था। उन्होंने नेतन्याहू पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को मुद्दा बनाया और देश में ‘विवेक लौटाने’ का आह्वान किया। लैपिड ने एक और ट्वीट किया है “यह सरकार सारे इस्राइली लोगों के लिए काम करेगी। जिन्होंने वोट दिया उनके लिए भी, और जिन्होंने नहीं दिया उनके लिए भी। यह अपने विपक्षियों का आदर करेगी और इस्राइल के सारे दलों को एक करने के हर संभव प्रयास करेगी।”

माना जा रहा है कि अगर इस्राइल में नई सरकार बनती है तो उसके सामने कूटनीतिक और सुरक्षा दृष्टि को लेकर कई बड़ी चुनौतियां होंगी। ईरान और फलस्तीन के साथ शांति वार्ता और अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत में युद्ध अपराधों की जांच जैसे मोर्चों के अलावा घरेलू स्तर पर डगमगाती अर्थव्यवस्था और महामारी से निपटने के काम भी आसान नहीं होंगे। 2020 में इस्राइली सरकार पर कर्ज उससे पिछले साल के 60 फीसदी से बढ़कर 72.4 प्रतिशत हो गया है।

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समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने गठबंधन के लिए हुई बातचीत में शामिल एक सूत्र के हवाले से बताया है कि सरकार वेस्ट बैंक जैसे संवेदनशील मुद्दों पर बात न करने की ही कोशिश करेगी ताकि वैचारिक मतभेदों को परे रखा जा सके। बेनेट कह चुके हैं कि ऐसे मुद्दों पर दोनों पक्षों को ही समझौते करने होंगे ताकि देश को वापस पटरी पर लाया जा सके। उल्लेखनीय है कि इस साल इस्राइल में चुनाव हुए थे और नेतन्याहू की लिकुड पार्टी ने सबसे अधिक सीटें जीती थीं। हालांकि, नेतन्याहू को गठबंधन की जरूरत थी जो वे जुटा नहीं पाए।

राष्ट्रपति ने इसके बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी येश अतिद के यैर लैपिड को सरकार बनाने का मौका दिया था। खबरों में ये कहा गया था कि लैपिड और बेनेट 10 मई को राष्ट्रपति से मिलकर बताने वाले थे कि वे नई सरकार बनाने में सक्षम हैं पर उसी शाम इस्राइल-हमास के बीच रॉकेट अटैक शुरू हो गए। इसके बाद 11 दिनों तक दोनों के बीच खूनी संघर्ष चलता रहा।

हालांकि, आगे चलकर युद्धविराम हो गया पर तब तक 66 बच्चे और 39 महिलाओं समेत 248 फिलिस्तीनियों और एक बच्चे समेत 12 इस्रायलियों की मौत हो चुकी थी। अगर उस दिन रॉकेट हमला नहीं होता तो शायद नेतन्याहू की सरकार गिर गई होती। एक तरफ कुछ लोगों का कहना है कि हमास से हमले ने नेतन्याहू की सरकार बचाने में योगदान दिया वहीं, कुछ लोग ये भी मानते ही कि फिलिस्तीनियों पर हमला नेतन्याहू की ओर से अपनी सरकार को बचाने के लिए किया था।


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