कार्यानन्द शर्मा: सोशलिस्ट से कम्युनिस्ट बनने वाला किसान नेता

कार्यानन्द शर्मा: सोशलिस्ट से कम्युनिस्ट बनने वाला किसान नेता

प्रख्यात किसान नेता कार्यानन्द शर्मा की 120 वीं जयन्ती-17 अगस्त, के अवसर पर। भाग-2

बड़हिया टाल के संघर्ष का काल 1937-39 है। देश की राजनीति में यह काल बेहद हलचलों से भरा था। 1937 में श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बन चुकी थी (1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के तहत)। मुंगेर के जिन किसानों ने कांग्रेस और श्रीकृष्ण सिंह को वोट दिया था उन्हें आशा थी कि अब उनकी सुनी जाएगी, समस्याओं का समाधान होगा। कार्यानन्द शर्मा और श्रीकृष्ण सिंह दोनों का मुख्य कार्यक्षेत्र मुंगेर ही था। यहां किसान सभा काफी सशक्त हो चुकी थी। ऐसी ही स्थिति में मुंगेर के बड़हिया ताल का संघर्ष शुरू हुआ। श्रीकृष्ण सिंह के लिए यह अग्निपरीक्षा का वक्त था। अब कांग्रेस मिनिस्ट्री से सीधा टकराव हुआ। जमींदारों के खिलाफ ठोस कदम उठाने का वक्त था। परन्तु सरकार में जमीनदारों के प्रभाव के कारण कांग्रेस सरकार के कदम डगमगाने लगे थे।

काँग्रेसी मन्त्रीमण्डल और जेलयात्रा

अन्दोलन का व्यापक असर हो रहा था। बड़हिया टाल के जमींदार भी काँग्रेस थे। काँग्रेस की ओर से किसान सभा पर दबाव डाला जा रहा था। किसान आन्दोलन को वापस लेने के लिए काँग्रेस कार्यकर्ताओं पर फतवा जारी हो चुका था। किसान नेता स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने उस फतवे को मानने से इन्कार कर दिया।

जिला कांग्रेस का कैम्प जमीन्दारों की सहायता में लगा। किसान सभा का कैम्प, पाली गाँव में, लालवर्दीधारी स्वयंसेवकों के साथ लगा था। दूसरी ओर जमींदारों का कैम्प था। भारी रक्तपात की संभावना थी। बड़े संघर्ष के बाद, मन्त्रीमण्डल के दबाव पर जमींदारों ने लिखित रूप से एक पंचायत बोर्ड माना। पंचों में कई जमींदार और काँग्रेसी थे। पंचायत और सरकारी अफसरों के विरोध में मुंगेर कलक्टर के सामने प्रदर्शन करने का निश्चय हुआ। हजारों किसान लखीसराय में जमा हुए। मुंगेर जानेवाली गाड़ी को लखीसराय में नहीं रोकने का आदेश कलक्टर ने प्रदर्शन को विफल बनाने के लिए दिया। उत्तेजित किसान सैकड़ों की संख्या में रेलवे लाइन पर खड़े हो गए। गाड़ी रूक गई और वे उसमें सवार होकर मुंगेर पहुँच गए। कार्यानन्द शर्मा मुंगेर धर्मशाला में गिरफ्तार कर लिए गए। कॉ. अनिल मित्रा तथा दूसरे किसान कार्यकताओं की भी गिरफ्तारी हुई। शर्माजी को अन्य साथियों के साथ भागलपुर जेल भेज दिया गया। भागलपुर से हजारीबाग केन्द्रीय कारा में भेज दिया गया।

उधर, अमवारी सत्याग्रह के दौरान राहुल सांस्कृत्यायन भी काँग्रेस मिनिस्ट्री द्वारा गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल में रखे गए थे। राहुल सांकृत्यायन ने किसान कैदियों को राजनैतिक बन्दी मानने के लिए भूख हड़ताल किया था। इस मुद्दे पर कार्यानन्द शर्मा और अनिल मित्रा भी भूख हड़ताल पर चले गए थे।

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80 मील पैदल यात्रा

जेल जाने के पूर्व बिहार किसान सभा का राज्य महत्वपूर्ण सम्मेलन दरभंगा के वैनी में हुआ। 3, 4 दिसम्बर 1938 में छठा बिहार प्रान्तीय किसान सम्मेलन दरभंगा जिला के बैनी में बड़े ही शानदार ढंग से सम्पन्न हुआ। जबकि इस सम्मेलन को विफल बनाने के लिए जमींदारों व काँग्रेस ने मिलकर काफी प्रयास किया था। वैनी का सम्मेलन एक और प्रमुख किसान नेता रामनन्दन मिश्र ने आयोजित किया था। कार्यानन्द शर्मा लक्खीसराय से सौ लाल वर्दीधारी स्वयंसेवकों के साथ 80 मील पैदल चलकर वैनी पहुँचे थे। 80 मील के रास्ते में हर जगह सभाएं होती जिसमें किसानों की दुर्दशा का कारण अंग्रेजी राज और जमींदारी प्रथा को बताया जाता। रास्ते में हर गाँव के लोग लालवर्दीधारी स्वयंसेवकों और लाल झंडे वाले तरुणों को देखकर आकृष्ट होते, उनके कानों में यह बात पहुँच चुकी थी कि ये लालवर्दीधारी, लड़ाकू किसान हैं और उनका नेता कार्यानन्द शर्मा कई आन्दोलनों में शोषकों के छक्के छुड़ा चुके हैं। कार्यानन्द शर्मा इस सम्मेलन के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। उनकी ख्याति सारे बिहार के किसानों में फैल चुकी थी।

जैसे-जैसे किसानों का संघर्ष आगे बढ़ने लगा कार्यानन्द शर्मा सरीखे नेताओं जी दूरी कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी से भी बढ़ने लगी। शर्मा जी काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के नेताओं की नीति से असंतुष्ट थे।

काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी से दूरी

अब कार्यानन्द शर्मा के राजनीतिक तौर पर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी से अलग होने का दौर था। कांग्रेस से कांग्रेस सोशलिस्ट में जाने की कथा भी दिलचस्प है। 1934 में जमुई में हुए मुंगेर जिला किसान सम्मेलन के अवसर पर कार्यानन्द शर्मा के हाथ में काँग्रेस-सोशलिस्ट पार्टी के विधान की पुस्तिका देखकर अपने भाषण में श्रीकृष्ण सिंह ने कहा था- “जमींदारों जुल्म करना बन्द करो!” तुम नहीं देखते कि मेरे साथी कर्यानन्द शर्मा सोशलिस्ट हो गए हैं।” तब तक शर्मा जी काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य नहीं बने थे। लेकिन उसी प्रतिक्रिया में शर्मा जी ने अपने भाषण में ऐलान किया- “मैं श्री बाबू के कथन के मुताबिक सोशलिस्ट हूँ।” बाद में फिर काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (सी.एस.पी) में शामिल हो गए। तब सी.एस.पी के सर्वमान्य नेता जयप्रकाश नारायण थे। किसान सभा में तब सोशलिस्ट व कम्युनिस्ट दोनों एक साथ थे।

जयप्रकाश नारायण से मोहभंग

लेकिन जैसे-जैसे किसानों की लड़ाई बढ़ने लगी। सोशलिस्ट, कम्युनिस्ट मतभेद बढ़ने लगे। जयप्रकाश नारायण तथा कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के कुछ अन्य नेता कार्यानन्द शर्मा पर कम्युनिस्ट होने का संदेह करने लगे। जयप्रकाश नारायण ने जेल में ही सात दिनों का एक क्लास आयोजित किया। क्लास का विषय था- “कम्युनिस्टों से मतभेद क्यों?” क्लास के अन्त में साथियों की राय जयप्रकाश जी ने जानना चाहा। कुछ लोगों का मानना था कि मतभेद सिद्धान्त का नहीं, बल्कि व्यक्तिगत नेतृत्व का है।

जेल में ही दशहरे के दिन जयप्रकाश जी कार्यानन्द शर्मा और किशोरी प्रसन्न सिंह के वार्ड में अधिकारियों की अनुमति से मिलने गए। उन्होंने अपनी नयी थीसिस से, जिसमें ‘पीपुल्स पार्टी’ बनाने की योजना थी, शर्मा जी को अवगत कराया। उन्होंने बताया कि सुभाष बाबू को वे साथ लाएंगे और स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने भी इस पार्टी में शामिल होने की स्वीकृति दी है। फिर उन्होंने कार्यानन्द शर्मा की राय जानना चाहा। शर्मा जी ने उनसे प्रश्न किया कि इस पार्टी का अन्तराष्ट्रीय सम्बन्ध किससे होगा, सदस्यता भर्ती का तरीका क्या होगा?

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जयप्रकाश जी ने बताया कि इसका सम्बन्ध ‘थर्ड कम्युनिस्ट इंटरनेशनल’ से होगा और सदस्यता व्यक्तिगत रूप से। थर्ड इंटरनेशनल से संबद्धता को लेकर कार्यानन्द शर्मा ने शंका प्रकट की। जयप्रकाश नारायण के जाने के बाद तत्क्षण स्वामी सहजानन्द सरस्वती उनके वार्ड में उनसे मिलने आए। किशोरी प्रसन्न सिंह के सामने शर्मा जी ने स्वामी जी से जयप्रकाश जी की चर्चा की और उनकी नई ‘पीपुल्स पार्टी’ में शामिल होने की स्वीकृति की बात पूछी स्वामी जी ने गुस्से से लाल होकर कहा- “यह बिल्कुल झूठी बात है।”

इसकी गहरी प्रतिक्रिया शर्मा जी पर हुई। उन्होंने जयप्रकाश जी को लाल स्याही से एक पत्र लिखा। काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी से सम्बन्ध विच्छेद की सूचना दी और स्वामी जी के सम्बन्ध में झूठी खबर देने के लिए कोसा। जयप्रकाश जी पत्र पाकर और पढ़कर व्यथित हो स्वामी सहजानन्द के पास गए और उन्हें शर्मा जी के पास समझाने के लिए जाने को बाध्य किया। स्वामी जी, जयप्रकाश बाबू के संतोष के लिए कार्यानन्द शर्मा के पास गए और उनकी राय जानना चाहा। शर्मा जी का अटल निश्चय सुन, उन्होंने उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होने की राय दी।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की पांत में

बहरहाल, हजारीबाग जेल में ही कार्यानन्द शर्मा के ब्लॉक में ही सुनील मुखर्जी, राहुल सांकृत्यायन आदि थे। जेल में ‘कांसोलिडेशन’ चल रहा था। नवम्बर 1940 में कर्यानन्द शर्मा उसमें शामिल हुए। 1942 में, जेल से रिहा होने पर पार्टी के बजाप्ता सदस्य बनें और राज्य कार्यकारिणी का सदस्य चुने गए।

कार्यानन्द शर्मा ने कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होने के संबन्ध में खुद लिखा है- “मैं देश की गुलामी और गरीबी मिटाने के लिए गांधीजी के आह्वान पर 1920 में राजनीति में आया। मैं गरीब किसान तबके से आया था। काँग्रेस में रह के अंग्रेजी राज के जुल्म के साथ नृशंस जमींदारी जुल्म के खिलाफ लड़ता था। इन संघर्षों के सिलसिले में कॉंग्रेस, कॉंग्रेस सोशलिस्ट पार्टी से होता हुआ में 1940 में कम्युनिस्ट पार्टी में आया। जमींदारों के खिलाफ में चलनेवाले संघर्षों के चलते मैं सर्वमान्य किसान नेता स्वामी सहजानन्द सरस्वती का प्रबल समर्थक बन गया था। काँग्रेस नेताओं और 1937 के कांग्रेस मन्त्रीमण्डल की जमींदारपक्षी नीति के चलते ही मैं कम्युनिस्ट बना।”

कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी से कम्युनिस्ट पार्टी में आने वाले कार्यानन्द शर्मा कोई अकेले नेता नहीं थे बल्कि बिहार के चर्चित किसान नेता किशोरी प्रसन्न सिंह, केरल के ई.एम.एस नम्बूदरीपाद सहित कई अन्य नेता सी.एस.पी छोड़ कम्युनिस्ट पार्टी में आते चले गए। इसने आपसी कटुता पैदा कर दिया। धीरे-धीरे सोशलिस्ट-कम्युनिस्ट एकता में दरार पड़ने लगी थी। जो आगे जाकर और चौड़ी होती चली गई खासकर 1942 के आंदोलन के वक्त।

द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ चुका था। सोवियत संघ पर हिटलर के हमले ने युद्ध का चरित्र ही बदल डाला। अब दुनिया के इकलौते देश को बचाने का सवाल था। कार्यानन्द शर्मा, स्वामी सहजानन्द सरस्वती आदि नेताओं ने ‘पीपुल्स वार’ की लाइन का समर्थन कर समाजवादी मुल्क सोवियत संघ को बचाने की प्रधान आवश्यकता पर जोर दिया। 23 फरवरी 1942 को कार्यानन्द शर्मा हजारीबाग जेल से छूटे। फासिज्म के विरुद्ध मानव जाति के संघर्ष और विश्वयुद्ध में फासिस्टों को हराने संबंधी प्रचार किसानों के मध्य करते रहे। 1942 के अगस्त आंदोलन में भी शर्मा जी गिरफ्तार कर लिए गए। जेल से लौटने के बाद पुनः आंदोलन में लग गए।

‘इप्टा’ नहीं ‘शर्मा जी का टैंक’

1945-47 के दौरान जब देश में किसान विद्रोहों का सिलसिला चल पड़ा उन्होंने बिहार मे व्यापक संघर्ष संचालित किया। इस दौर में बिहार का बकाश्त संघर्ष मशहूर है। 1946 के चुनाव में वे श्री कृष्ण सिंह के विरुद्ध कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे। चुनाव के दौरान प्राणघातक हमला हुआ और एक हाथ की एक उंगली तो सदा के लिए जाती रही। इस सब उस श्रीकृष्ण सिंह और कांग्रेस पार्टी के लोगों द्वारा किया गया जिसे 1937 के चुनाव में कार्यानन्द शर्मा के कहने पर किसानों ने वोट दिया था।

1945-47 के दौरान कार्यानन्द शर्मा किसान आंदोलन का फैलाव हुआ तो कई और संस्थाओं ने भी उसमें हिस्सा लेना शुरू किया। उन्होंने नाटक करने वाली प्रमुख संस्था ‘इप्टा’ को जोड़ा। तब इप्टा किसान संघर्षो के भागीदार थी। किसान आंदोलन का नाटकों, गीतों के जरिये प्रचार होता। इप्टा का पूरा नाम ‘इंडियन पीपुल्स थियेटर असोसिएशन’ आम किसानों को बोलने में परेशानी होती तो उनलोगों ने उसका दूसरा नाम रख दिया था। बिहार में उस वक्त इप्टा का लोकप्रिय नाम था “शर्मा जी का टैंक’। ‘शर्मा जी’ का मतलब कार्यानन्द शर्मा। ‘टैंक’ से आशय है कि कला-संस्कृति किसान आंदोलन के हथियार के रूप में काम कर रहा था। गीत-नाटक की यह नई भूमिका थी। मनोरंजन के बजाए अब वह संघर्षो की मददगार थी। इस कारण आम लोगों ने उसका नया नाम रख डाला था ‘शर्मा जी का टैंक’।

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रामगढ़ से पलासा

कार्यानन्द शर्मा आंध्रप्रदेश के सिकंदराबाद में अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित हुए। पांच वर्षों तक उस पद पर बने रहे। बिहार राज्य किसान सभा के तो लगभग जीवन पर्यन्त वह अध्यक्ष रहे। सन् 1949-50 के सबसे मुश्किल वक्त में कार्यानन्द शर्मा कम्युनिस्ट पार्टी की बिहार इकाई के कार्यकारी मन्त्री रहे। सन् 1948-51 में दमन काल में एक राजनीतिक फरार का जीवन व्यतीत किया।

स्वामी सहजानन्द सरस्वती के कम्युनिस्ट पार्टी से कई मतभेद उभर गए थे। इस कारण एक दूरी से बन गई थी। लेकिन स्वामी जी अपने अंतिम दिनों में कार्यानन्द शर्मा से मिलकर इस दूरी को पटना चाहते थे। अंडरग्राउंड होने की वजह से उनकी मुलाकात नहीं हो पा रही थी। बिहार के चर्चित कम्युनिस्ट नेता गंगाधर दास ने स्वामी सहजानन्द पर अपने संस्मरण में, उस वक्त को, मार्मिक ढंग से व्यक्त किया है- “1948 में पश्चिम बंगाल और हैदराबाद में कम्युनिस्ट पार्टी गैर कानूनी घोषित कर दी गई। बाकी क्षेत्रों में प्रतिबंध न होने पर भी खुले रूप में पार्टी का कोई काम नहीं हो सकता था। बिहार में चाहे कम्युनिस्ट पार्टी का दफ्तर हो अथवा जनसंगठन का, सब पर छापामारी हुई। बहुत से नेता गिरफ्तार हो गए। नेतृत्व को फरारी जीवन बिताने को बाध्य होना पड़ा। यह 1948-1950 तक चला। इसी बीच 1950 में स्वामी जी बीमार पड़ गए मुजफ्फरपुर में उनका इलाज चल रहा था। इधर, कार्यानन्द शर्मा पर 5 हजार का इनाम घोषित हो चुका था। वह पुलिस की आंखों से बचकर काम कर रहे थे। स्वामी जी का संदेश लेकर पंडित यदुनन्दन शर्मा, कार्यानन्द शर्मा से मिलने कई जगह गए। पता चलने पर दोनों की भेंट हुई। संयोग से कार्यानन्द शर्मा के साथ मैं भी था। स्वामी जी की बीमारी का हाल सुनकर कार्यानन्द शर्मा जी ने सलाह दी कि उन्हें किसी तरह पटना जनरल अस्पताल में लाकर इलाज कराया जाए। यदुनन्दन शर्मा ने बताया कि स्वामी जी भी कार्यानंद शर्मा से मिलना चाहते हैं। उन्होंने खुद को (यदुनन्दन शर्मा को) स्वामी जी से मिली सीख भी बतायी, स्वामीजी कह रहे थे- “कम्युनिस्टों से मिल कर काम करो, बिगाड़ पैदा न करो। कम्युनिस्ट लोग दिन-रात चींटी की तरह बिन-बिन कर काम करते रहते हैं। अपने सिद्धांत के प्रति निष्ठावान और काम के हमेशा सचेत और सक्रिय रहते हैं।” शर्मा जी की दोनों आंखें सजल हो गईं। स्वामी जी और कार्यानन्द शर्मा की वह भेंट नहीं हो सकी। स्वामी जी पटना जनरल अस्पताल नहीं आए। शर्मा जी मुजफरपुर जा नहीं सके। कुछ दिनों बाद ही स्वामी जी के निधन की सूचना मिली। हमलोगों ने उनकी पवित्र याद में श्रद्धाजंलि अर्पित की।”

स्वामी सहजानन्द की अंतिम दिनों में खेत मज़दूरों के स्वतंत्र संगठन बनाने के बारे में विचार कर रहे थे। लेकिन असमय मृत्यु के कारण यह काम वे पूरा न कर सके। कार्यानन्द शर्मा ने उनकी अधूरी इच्छा को अंजाम तक पहुंचाया।

खेत मजदूर सभा का गठन

खेत मजदूरों के आन्दोलन और संगठन के विकास में कार्यानन्द शर्मा महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आजादी के पूर्व खेत मज़दूर अर्द्ध गुलाम की स्थिति में समझे जाते थे। घर पर भी इनका अधिकार नहीं था, मार-पीट गाली-गलौज के साथ अपमानपूर्ण जीवन बिताते थे। खेत मजदूरों का कोई स्वतंत्र संगठन नहीं था। 1950 में जमींदारी के खात्मे से सामन्ती दबाव से एक हद तक का छुटकारा मिला, बैठ-बेगारी से मुक्ति मिली। फिर भी इनका आर्थिक संकट दूर नहीं हुआ। न्यूनतम मजदूरी कानून के कागज पर ही था। उचित मजदूरी माँगने पर जोर-ज़ुल्म और झूठे मुकदमे में तंग किए जाते हैं।

इसी पृष्ठभूमि में 1956 के मई महीने में लखीसराय में बिहार राज्य किसान सम्मेलन के अवसर पर बिहार राज्य खेत मजदूर सभा (युनियन) का निर्माण हुआ। कार्यानन्द शर्मा ने खेत मजदूरों के संगठन और आन्दोलन में गहरी दिलचस्पी ली। इस कार्य में तुमड़िया बाबा के नाम से प्रसिद्ध खड्गधारी मिश्र ने भी प्रमुख भूमिका निभाई थी। भोला मांझी अध्यक्ष और राजकुमार पूर्वे मंत्री, बिहार राज्य खेत मजदूर सभा के बनाए गए। 1959 में वारसलीगंज में बिहार राज्य खेत मजदूर सभा का प्रथम अधिवेशन हुआ। उन्होंने खेत मजदूरों की स्थिति का एक सर्वेक्षण किया था। मुंगेर और गया जिले के कई गाँवों का दौरा कर एक जाँच प्रतिवेदन तैयार किया था।

विधानसभा में कम्युनिस्ट विधायक दल के नेता

सन् 1955 में कार्यानन्द शर्मा कम्युनिस्ट पार्टी की बिहार राज्य सेक्रेटारियट के सदस्य चुने गए और 1958 में पार्टी की अखिल भारतीय कांट्रोल कमीशन के सदस्य चुने गए तथा अन्त तक इस पद पर बने रहे। सन् 1957 में कार्यानन्द शर्मा मुंगेर इलाके के सूर्यगढ़ा बिहार विधान सभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। 1957 से 1962 तक कम्युनिस्ट विधायक दल के नेता के रूप में बिहार विधान सभा में रहे।

वोल्गा से गंगा की अंतिम यात्रा

सन् 1959 और 1964 में पंडित कार्यानन्द शर्मा कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा आयोजित जन सत्याग्रह में सातवीं एवं आठवीं बार जेल गए। राजनीतिक संघर्षों और किसान आंदोलनों में अनेक बार के प्रहार, लगभग सात साल का जेल जीवन और साढ़े तीन वर्षों के फरार जीवन ने शर्मा जी के स्वास्थ्य पर गहरा असर डाला। पिछले कई साल से वे मधुमेह के शिकार थे। दो साल पहले से ही उन्हें हृदय का दौरा होने लगा था। फिर भी वह किसान मजदूरों के आन्दोलन और संघर्षों में लगे रहे। सन् 1965 के अप्रैल में जब उन्हें फिर हृदय रोग का दौरा हो गया तो अगस्त में चिकित्सा के लिए मास्को गए। लेकिन 19 नवम्बर की रात में उन्हें हृदयगति रुक जाने के कारण निधन हो गया। विमान से उनका शव दिल्ली पहुँचा। दिल्ली से ट्रेन द्वारा लक्खीसराय और वहाँ से गंगातट पर स्थित अमरपुर घाट तक शव यात्रा हुई। जगह-जगह विभिन्न स्टेशनों पर उपस्थित जनसम्प्रदाय ने पुष्पंजलि अर्पित की। अमरपुर घाट पर ही उनका दाह संस्कार सम्पन्न हुआ। कहा जाता है ‘वोल्गा से गंगा’ तक की शर्मा जी की अन्तिम यात्रा समाप्त हुई।


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