हामिद अंसारी ने अपनी आत्मकथा में लिखा, मैंने मोदी से पूछा कि गुजरात में जो कुछ हुआ उसे होने क्यों दिया?

हामिद अंसारी ने अपनी आत्मकथा में लिखा, मैंने मोदी से पूछा कि गुजरात में जो कुछ हुआ उसे होने क्यों दिया?

पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने अपनी आत्मकथा ‘बाय मैनी ए हैप्पी एक्सीटेंडः रीकलेक्शन्स ऑफ ए लाइफ’ में कई बड़े खुलासे किए हैं। अपनी आत्मकथा में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी कई आरोप लगाए हैं। उन्होंने किताब में दावा किया कि नरेंद मोदी ने उनपर हंगामे के बीच राज्यसभा में बिलों को पारित कराने का दबाव डाला था।

उन्होंने लिखा है कि राज्यसभा सभापति रहने के दौरान उन्होंने तय किया था कि वह किसी भी विधेयक को हंगामे में पारित नहीं होने देंगे। पूर्व उप-राष्ट्रपति के मुताबिक, उनके कार्यकाल के दौरान उनके इस सिद्धांत का स्वागत करते हुए तक सत्तारूढ़ और विपक्षी दल ने इसका अनुसरण किया।

पूर्व उप-राष्ट्रपति के मुताबिक, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने ऐसी स्थिति का मुकाबला अपने प्रबंधन के (गुर).. और विपक्षी दलों को साधकर किया।

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नियम का संज्ञान

वहीं पीएम मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार का रुख इससे इतर रहा। अंसारी के अनुसार, एनडीए का मानना था कि लोकसभा में उसका बहुमत में होना उसे राज्यसभा की प्रक्रियात्मक अड़चनों से नैतिक रूप से ज्यादा अहम बना देता है और इसकी अभिव्यक्ति स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने उनके सामने की थी।

पुस्तक में अंसारी ने लिखा है कि इससे दोनों सरकारों को परेशानी हुई, लेकिन यूपीए सरकार ने उनके नियम का संज्ञान लिया और इसके मद्देनजर सदन में प्रबंधन किया और विपक्ष के साथ समन्वय किया।

पूर्व उपराष्ट्रपति ने लिखा है, “दूसरी ओर एनडीए सरकार को लगता था कि उसके पास लोकसभा में बहुमत है तो उसे राज्यसभा में प्रक्रियात्मक बाधाओं पर हावी होने का उसे ‘नैतिक’ हक मिल गया है। मुझे यह अधिकृत रूप से बताया गया।”

उन्होंने लिखा है, ”एक दिन राज्यसभा के मेरे कार्यालय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए। सामान्यतः ऐसा नहीं होता है कि प्रधानमंत्री बिना तय कार्यक्रम के मिलने आए। मैंने…उनका रस्मी अभिवादन किया।’’

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राज्यसभा टीवी का पक्ष

उन्होंने आगे कहा है, ‘‘उन्होंने (मोदी) कहा कि आपसे उच्च जिम्मेदारियों की अपेक्षा है लेकिन आप मेरी सहायता नहीं कर रहे हैं। मैंने कहा कि राज्यसभा में और बाहर मेरा काम सार्वजनिक है। उन्होंने पूछा ‘शोरगुल’ में विधेयक पारित क्यों नहीं कराए जा रहे हैं? मैंने उत्तर दिया कि सदन के नेता और उनके सहयोगी जब विपक्ष में थे तो उन्होंने इस नियम की सराहना की थी कि कोई भी विधेयक शोरगुल में पारित नहीं कराया जाएगा और स्वीकृति के लिए सामान्य कार्यवाही चलेगी।’’

हामिद अंसारी ने लिखा है, ‘‘इसके बाद उन्होंने (मोदी) ने कहा कि राज्यसभा टीवी सरकार के पक्ष में नहीं दिखा रहा है। मेरा उत्तर था कि चैनल की स्थापना में तो मेरी भूमिका थी लेकिन इसके संपादकीय कामकाज में मेरी कोई भूमिका नहीं है। राज्यसभा सदस्यों की एक समिति है, जिसमें भाजपा का भी प्रतिनिधित्व है, वह चैनल को मार्गदर्शन देती है। चैलन के कार्यक्रम और चर्चाओं की दर्शक सराहना करते हैं।’’

हामिद अंसारी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि कुछ वर्गों में उनके कार्यकाल के अंतिम हफ्तों के दौरान दो घटनाओं से ‘नाराजगी’ पैदा हुई और समझा गया कि इनके कुछ ‘छिपे हुए अर्थ’ थे। उन्होंने किताब में लिखा है, “राज्यसभा में बतौर सभापति मेरे आखरी दिन सभी सदस्यों ने मुझे बहुत अच्छी विदाई दी मगर प्रधानमंत्री मोदी के स्पीच में वो सत्कार नहीं था। प्रधानमंत्री ने मेरी बतौर राजनयिक कार्यकाल की तारीफ तो की पर राज्यसभा के सभापति या उपराष्ट्रपति के तौर पर कार्यकाल पर कुछ नहीं कहा। यहां तक की प्रधानमंत्री मोदी ने ये तक कह दिया कि आज के बाद आप अपनी विचारधारा के मुताबिक बोलने और काम करने को आजाद होंगे।”

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गुजरात का कत्लेआम

उन्होंने आगे लिखा है, “प्रधानमंत्री ये भूल गए की कोई भी भारतीय विदेशों में या किसी भी बड़े पद पर बैठता है तो वो राष्ट्र की नीति से काम करता है न कि अपनी निजी मान्यताओं के मुताबिक। हालांकि, शाम को बालयोगी ऑडिटोरियम में आयोजित मेरे विदाई कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मेरे कार्यकाल के दौरान मिली सीख से जनता के प्रति नीतियों में फायदा होगा। मगर मीडिया ने इस भाषण को तवज्जो नहीं दिया।

इसके अलावा उन्होंने अपनी किताब में लिखा, “गोधरा के बाद गुजरात में हुए कत्लेआम के खिलाफ जनता में जबरदस्त रोष था। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिलने वाले चिंतित नागरिकों में मैं भी था, जिन्होंने उनसे कार्रवाई की मांग की थी। एडिटर्स गिल्ड ने पत्रकारों की एक फैक्ट फाइंडिंग टीम भेजी थी। जिन्होंने अपनी समीक्षा में कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के पास न तो सवालों के जवाब थे और न ही कोई पछतावा। तत्कालीन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन जस्टिस जे. एस. वर्मा ने मामले को प्रधानमंत्री वाजपेयी से पत्र लिखकर उठाया था। उन्होंने बाद में ये बात सार्वजनिक की थी कि उन्होंने धारा 355 के इस्तेमाल की वकालत की थी। गोधरा कांड में राज्य सरकार का रवैया चौंकाने वाला था।”

अंसारी लिखते हैं, ”बतौर उप-राष्ट्रपति मुझसे सबसे पहले मिलने वालों में से तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे। जब वो मेरे पास आए तो मैंने उनसे कहा मेरे मन में कुछ सवाल हैं जो मैं आपसे पहले ही पूछना चाहता था। मैंने पूछा कि आपने गुजरात में जो कुछ हुआ वो सब क्यों होने दिया? तो मोदी ने मुझसे कहा कि लोग केवल एक पक्ष की बात करते हैं, ये नहीं बताते जो मैंने मुस्लिम समुदाय के उत्थान के लिए किया, खासकर मुस्लिम बच्चियों की पढ़ाई के लिए। इस पर मैंने उनसे कहा कि आप ये बातें प्रचारित क्यों नहीं करते। तो उन्होंने ने मुझसे साफ-साफ कह दिया कि ऐसा करना मेरे लिए राजनीतिक तौर पर ठीक नहीं होगा।”

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धारा 370 की बात

अपनी किताब में उन्होंने धारा 370 को लेकर लिखा है। उन्होंने लिखा है, “नागरिकता कानून और कश्मीर में धारा 370 को लेकर के भी यही सब देखने को मिला। संसद अब चर्चा का स्थान नहीं बल्कि मैजोरिटी से चुनकर आए लोगों की मनमानी की सहमति के लिए बन कर रह गया है। कश्मीर के संदर्भ में उठाया हुआ कदम रूल ऑफ लॉ और संवैधानिक मूल्यों का समर्थन नहीं करता, बल्कि क्रूर बहुसंख्यकवाद दर्शाता है।”

पूर्व-उप-राष्ट्रपति ने न्यायपालिका पर सवाल उठाते हुए लिखा है, “ऊपरी अदालतें सत्ता पक्ष की दलीलों को ज्यादा तवज्जो देती हैं जिससे वो न्यायपालिका जैसी संस्था का भला नहीं कर रहे। भारत ऐसा देश बन रहा जिसकी सुरक्षा और खुशहाली केवल एक सुप्रीम लीडर पर निर्भर हो। संवैधानिक मूल्यों पर चोट ने लोगों को भटका दिया है, और धर्मनिरपेक्षता शब्द तो मानों सरकारी शब्दकोश से मिट ही चुका है। किताब में हामिद अंसारी ने सलाह देते हुए लिखा है कि संविधान की प्रस्तावना हम भारत के लोग पर देश को वापस जाने की जरूरत है और साथ ही किसी एक ही दल का शासन या उसकी मर्जी नहीं बल्कि को-ऑपरेटिव फेड्रेलिजम की जरूरत है।

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