सुपुर्द-ए-खाक हुए सैयद अली शाह गिलानी, निधन के बाद घाटी में इंटरनेट सेवाएं बंद

सुपुर्द-ए-खाक हुए सैयद अली शाह गिलानी, निधन के बाद घाटी में इंटरनेट सेवाएं बंद

कश्मीर के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी का निधन बुधवार रात 92 साल की उम्र में हो गया। गिलानी कश्मीर के अलगाववादी संगठनों के समूह हुर्रियत कांफ्रेंस के संस्थापकों में शामिल थे। फिलहाल, ये दल निष्क्रिय है।

एक ट्वीट में जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा है, “गिलानी साहब के निधन की खबर से दु:खी हूं। बहुत से मुद्दों पर हमारे बीच मतभेद थे। लेकिन मैं उनका सम्मान करती हूं। अल्लाह उन्हें जन्नत में जगह दे और उनके परिजनों को सब्र दे।”

निधन के बाद आज गुरुवार सुबह 5 बजे ही गिलानी को सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया। खबरों के मुताबिक, उनका जनाजा सुबह 5 बजे जम्मू-कश्मीर के हैदरपोरा में हुआ। हालांकि, गिलानी परिवार चाहता था कि उन्हें सुबह 10 बजे तक करीब दफनाया जाए। परिवार वाले दूसरे रिश्तेदारों को भी अंतिम संस्कार में बुलाना चाहते थे पर प्रशासन की ओर से इसकी इजाजत नहीं दी गई।

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प्रशासन को डर था कि अलगाववादी नेता के जनाजे में ज्यादा लोग इकट्ठा हो सकते हैं और विरोध-प्रदर्शन शुरू हो सकता है। ऐसे में एहतियातन जल्दी ही उन्हें सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया। फिलहाल, घाटी में कई तरह की पाबंदियां बहाल कर दी गई हैं और इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं।

गिलानी के परिवार में उनके दो बेटे और छह बेटियां हैं। पिछले करीब 20 साल से गिलानी गुर्दे से संबंधी बीमारी से पीड़ित थे। उनको कुछ अन्य दिक्कतें भी थीं। उनके निधन पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी शोक व्यक्त किया है।

उल्लेखनीय है कि गिलानी 15 सालों तक पूर्व जम्मू-कश्मीर राज्य की 87 सदस्यों वाली विधानसभा के सदस्य रहे थे। वे 1972, 1977 और 1987 में तत्कालीन जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सोपोर से सदस्य रहे।

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गिलानी जमात-ए-इस्लामी का प्रतिनिधित्व करते थे जिसे अब प्रतिबंधित कर दिया गया है। सशस्त्र संघर्ष शुरू होने के दौरान उन्होंने 1989 में अन्य चार जमात नेताओं के साथ इस्तीफा दे दिया था।

इसके बाद, साल 1993 में 20 से अधिक धार्मिक और राजनीतिक पार्टियां ‘ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस’ के बैनर तले एकत्रित हुईं और 19 साल के मीरवाइज उमर फारूक को उसका संस्थापक चेयरमैन बनाया गया। बाद में गिलानी को हुर्रियत का चेयरमैन चुना गया।

साल 2003 में गिलानी और उनके समर्थकों ने हुर्रियत से अलग होकर एक अलग संगठन बना लिया। वह आजीवन हुर्रियत (गिलानी) के चेयरमैन बने रहे। उन्होंने जून 2020 में हुर्रियत को छोड़ दिया था।


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