जब 13 सालों तक दिलीप कुमार और लता मंगेशकर के बीच बातचीत बंद रही

जब 13 सालों तक दिलीप कुमार और लता मंगेशकर के बीच बातचीत बंद रही

यह 1957 की एक खूबसूरत दोपहर थी जब दिलीप कुमार फिल्म ‘मुसाफिर’ का एक सिन फिल्माने के बाद अपने यूनिट के साथ आराम करने बैठे हुए थे। पास में ही संगीतकार सलिल चौधरी थे, जो निर्देशक हृषिकेश मुखर्जी की पहली फिल्म के लिए अपने मधुर गीतों पर काम कर रहे थे। दिलीप साहब अपने धुन में एक गाना गुनगुनाए जा रहे थे; और इस बात से अनजान थे कि सलिल चौधरी अपनी आँखें बंद कर उन्हें सुन रहे हैं।

फिल्म ‘मुसाफिर’ दर-हकीकत एक ही घर में अलग-अलग समय में रहने वाले किरायेदारों की कहानियों पर आधारित थी। जिसमें शादी से लेकर मरने तक के दृश्यों को फिल्माया गया था। दिलीप साहब अपने अंदाज़ में लय-से-लय मिला रहे थे। वे तब चौंके जब सलिल चौधरी ने उनके गाने पर दाद दी। उन्होंने मद्धम मुस्कान लिए बस इतना कहा कि हां, कभी-कभी अगर मूड हो तो सूर से सूर मिला लेता हूं। लेकिन दिलीप साहब सलिल चौधरी के मन और आँखों को भांप नहीं पाए, जो एक दूसरे विचार में डूबे हुए थे। उनके जेहन में ‘मुसाफिर’ का गाना ‘लागि नाही छूटे….’ चल रहा था। उसी पल उन्होंने तय किया कि यह गाना वो दिलीप साहब से रिकॉर्ड कराएंगे।

दिलीप कुमार इस बात से पूरी तरह से बेखबर थे क्योंकि यह वह दौर था जब फिल्मों में उनके लिए पर्दे के पीछे मुहम्मद रफी या तलत महमूद गा रहे थे। वे गाने ऐसे गाते थे जैसे दिलीप कुमार खुद गा रहे हों। एक तरह से दोनों की आवाज उस वक्त उनकी आवाज बन गई थी।

दिलीप कुमार और लता मंगेशकर के बीच किस बात को लेकर 13 सालों तक बातचीत बंद रही?

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सलिल चौधरी ने आखिरकार अपने दिल और दिमाग में चल रही बात दिलीप साहब के सामने रख दी। ये बात को सुनकर दिलीप कुमार ने एक जोर का कहकहा लगाया और अपना हाथ उनके कानों तक ले जाकर धीरे से बोले- “दादा रहने दें मैं अदाकार ही भला…।”

लेकिन सलिल दा ने भी ठान चुके थे। उन्होंने बाक़ायदा एलान भी कर दिया कि दिलीप साहब, लता मंगेशकर के साथ फिल्म का गाना गाएंगे। ट्रेजडी किंग इससे इनकार करते रह गए, लेकिन उनकी सलिल चौधरी के सामने एक न चली।

यह पहली बार था जब सलिल दा दिलीप कुमार की किसी फिल्म के लिए संगीत तैयार कर रहे थे, लेकिन फिर भी दिलीप साहब उनको बहुत सम्मान देते थे और उनके प्रतिभा की बेहद कद्र करते थे। और इस बात से भी वाकिफ थे कि अगर सलिल चौधरी ने एकबार इरादा कर लिया तो वह कभी पीछे नहीं हटते।

दिलीप कुमार और लता मंगेशकर के बीच किस बात को लेकर 13 सालों तक बातचीत बंद रही?

लेकिन इससे भी अधिक, दिलीप कुमार का उनके प्रति एहतराम और सम्मान ऐसा था कि वह गाने की बात से पीछे नहीं हट सकते थे। दिलीप साहब चाहते थे कि वह उसी तरह से गाएं जैसे कि वह अभिनय में एक उदाहरण हैं, ताकि इसमें कोई खामी या खराबी न रहे। इसलिए उन्होंने सलिल चौधरी से कहा कि उन्हें थोड़ी-सी मोहलत चाहिए क्योंकि वह रियाज करना चाहते हैं और गायन की बुनयादी बातों को सीखना चाहते हैं।

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इधर, लता मंगेशकर इस बात से बिल्कुल अनजान थीं कि वह जिस गीत को लेकर कई दिनों से रियाज कर रही हैं, उसे किसी और के साथ नहीं दिलीप कुमार के साथ रिकॉर्ड किया जाना है। इतनी बड़ी खबर कहाँ एक जगह रुकने वाली थी। इसी दौरान यह खबर उड़ते-उड़ते उनके कानों तक पहुंच ही गई। यह सुनकर वह एकदम हैरान हो गईं कि आखिर सलिल दा ने ऐसा फैसला क्यों किया। वह चाहती थीं कि गाने को एक पेशेवर तरीके से और बकायदा गायकार के साथ गाएं। क्योंकि उन्हें डर था कि यह गाना कहीं उनकी शोहरत को नुकसान न पहुंचा जाए।

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यही नहीं, एक और बात यह थी कि लता को इस बात का भी डर था कि न जाने एक अनुभवहीन गायक के साथ गीत रिकॉर्ड करने में उन्हें कितना समय बर्बाद करना पड़े। उन्हें डर था कि अगर समय अधिक लगा तो दूसरे रिकॉर्डिंग प्रभावित होंगे। जब उन्होंने सलिल चौधरी के सामने अपनी इन समस्याओं और चिंताओं का जिक्र किया, तो वे आदतन मुस्कुराए और सिर्फ इतना कहा, “यह दिलीप कुमार है जो काम करता है, वह अलग और अनोखा करता है; और साथ-साथ इसमें महारत भी है।”

इस गीत का पूर्वाभ्यास कई दिनों तक जारी रहा। दिलीप कुमार ने गाने की धुन सिखने के लिए कड़ी मेहनत की। इधर लता का दिल बेचैन था। उन्होंने अपने शास्त्रीय संगीत प्रशिक्षण का भरपूर इस्तेमाल किया और गाने को कई तरीके से गाया। जाहिर है, दिलीप चाहे जितना भी अभ्यास कर लें, इस क्षेत्र में लता से सामने स्कूली बच्चे जैसे थे, इसलिए वह लता का साथ नहीं दे सके। गाने को सुनते वक्त ये बात महसूस भी किया जा सकता है।

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मशहूर फिल्म पत्रकार राजू भारतन लिखते हैं कि रिकॉर्डिंग के दौरान, दिलीप को लगा कि लता मंगेशकर जानबूझकर मुश्किल तरीके से गा रही हैं, ताकि उनके सामने वो अनाड़ी दिखे।

शायद लता के दिल में दस साल पुरानी बात थी। यह 1947 की घटना है जब दिलीप और लता दोनों बॉलीवुड इंडस्ट्री में अपना हाथ-पाँव आजमाने के लिए मशक्कत कर रहे थे। एक दिन दिलीप कुमार की मुलाक़ात लता मंगेशकर से हुई, तो उन्होंने लता का मजाक उड़ाते हुए कहा, “इन महाराष्ट्रवालों के साथ एक प्रोब्लम होता है, इनके गाने से दाल-भात की बू आती है।”

लता ने खुद एक बार बताया था कि उन्हें ये बात इतनी बुरी लगी कि अगले दिन से उन्होंने मसरूफ वक्त से समय निकाल कर अपने उच्चारण में सुधार करना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने एक मौलवी रखा और उनसे उर्दू जुबान भी सीखी ताकि उनके लहजे में कोई ग़लती न हो और वह दिलीप कुमार को ग़लत साबित कर सकें। यही वजह है कि आज तक कोई भी लता के उर्दू उच्चारण पर उंगली नहीं उठा सका।

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दिलीप कुमार और लता मंगेशकर के बीच किस बात को लेकर 13 सालों तक बातचीत बंद रही?

ये नहीं मालूम कि उनके दिल में उस दिन रिकॉर्डिंग के वक्त वह बात थी या नहीं। खैर, उन्होंने ‘लागि नाही छूटे…’ की रिकॉर्डिंग में अपनी आवाज और फन का जौहर खूब दिखाए। यह बात दिलीप कुमार को इतनी चुभी कि दोनों के बीच इस वाकये के बाद बोल-चाल बंद हो गई। दोनों ने 13 सालों तक एक-दूसरे से साथ बात नहीं किया। फिर कहीं जाकर 1970 में दोनों महान कलाकारों के बीच सुलह हुई। हालांकि, दिलीप कुमार ने उसके बाद कभी भी गाने की कोशिश नहीं की। लेकिन आगे चलकर इन दोनों महान फनकारों की रिश्ते इतने मजबूत हुए कि आज भी लता दिलीप कुमार के हाथों पर राखी बांधती हैं। वह उन्हें अपना बड़ा भाई कहती हैं।


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