भीमा कोरेगाँव-यलगार परिषद हिंसा मामले में सुधा भारद्वाज को डिफॉल्ट जमानत

भीमा कोरेगाँव-यलगार परिषद हिंसा मामले में सुधा भारद्वाज को डिफॉल्ट जमानत

वकील और एक्टिविस्ट सुधा भारद्वाज को बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुधवार को भीमा कोरेगाँव-यलगार परिषद हिंसा मामले में डिफॉल्ट जमानत दे दी। हालांकि, अदालत ने आठ अन्य अभियुक्तों की जमानत अर्जी खारिज कर दी।

जिन लोगों की अर्जी कोर्ट ने खारिज की है उनमें सुधीर डवाले, डॉ. पी. वरवरा राव, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, प्रोफेसर शोमा सेन, महेश राउत, वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फेरेइरा के नाम शामिल हैं।

भारद्वाज समेत सभी आरोपियों की गिरफ्तारी साल 2018 में जून से अगस्त महीने के बीच हुई थी। अदालत ने सुधा भारद्वाज को 8 दिसंबर से पहले NIA के विशेष कोर्ट में पेश होने के लिए कहा है और यहीं जमानत की शर्तों पर फैसला होगा।

भीमा कोरगाँव-यलगार परिषद हिंसा मामले में सुधा भारद्वाज को डिफॉल्ट जमानत

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इससे पहले बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस एसएस शिंदे और एन.जे. जमादार की बेंच ने 4 अगस्त को सुधा भारद्वाज की जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। जैसा कि मालूम है कि सुधा भारद्वाज पर भाकपा (माओवादी) का सदस्य होने का आरोप भी लगाया गया था।

बॉम्बे हाईकोर्ट में इन सभी आरोपियों ने अर्जी दी थी जिसमें कहा था कि उनकी गिरफ्तारी के बाद पुणे में उन्हें जिस अदालत में पेश कर रिमांड पर लिया गया था, UAPA के तहत अधिकार ही नहीं था। ऐसे में उनकी गिरफ्तारी अवैध है, तुरंत उन सभी को डिफॉल्ट जमानत मिलनी चाहिए।

जानकारी के लिए बात दें कि UAPA में प्रावधान है कि अगर जाँच अधिकारी 180 दिनों के अंदर चार्जशीट कोर्ट में सब्मिट नहीं करते हैं, तो ACJM को डिफॉल्ट बेल देने का अधिकार है। लेकिन भीमा कोरेगाँव मामले में इस आधार पर किसी को बेल नहीं दिया गया जबकि सभी आरोपी तीन साल से अधिक समय से जेल में बंद हैं।

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उल्लेखनीय है कि भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी फादर स्टेन स्वामी की मौत पिछले दिनों हो गई थी। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। स्टेन स्वामी की मौत के बाद अन्य आरोपियों को रिहा करने की मांग तेज हो गई है। इस केस में एक्टिविस्ट सुधा भारद्वाज और अन्य ने जमानत के लिए याचिका लगाई थी।

कौन हैं सुधा भारद्वाज?

दरअसल, सुधा भारद्वाज अर्थशास्त्री रंगनाथ भारद्वाज और कृष्णा भारद्वाज की बेटी हैं। सुधा का जन्म अमेरिका में साल 1961 में हुआ था। सुधा 1971 में अपनी माँ के साथ भारत लौट आईं। जेएनयू में अर्थशास्त्र विभाग के संस्थापक कृष्णा भारद्वाज की सोच के विपरीत सुधा ने अपनी अमेरिकी नागरिकता छोड़ दी।

सुधा भारद्वाज 1978 की आईआईटी कानपुर की टॉपर रही हैं। आईआईटी से पढ़ाई के साथ ही उन्होंने दिल्ली में अपने साथियों के साथ झुग्गी और मजदूर बस्तियों में बच्चों पढ़ाना और छात्र राजनीति में मजदूरों के बीच काम करना शुरू कर दिया था।

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साल 1984 में वो छत्तीसगढ़ में शंकर गुहा नियोगी के मजदूर आंदोलन से जुड़ गईं। उन्होंने 40 की उम्र में अपने मजदूर साथियों के संघर्षों में संवैधानिक लड़ाई के लिए वकालत की पढ़ाई पूरी की और आदिवासियों, मजदूरों के न्याय के लिए उठ खड़ी हुईं।


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