शरजील ने न किसी को हथियार उठाने को कहा और न हिंसा भड़काई: कोर्ट

शरजील ने न किसी को हथियार उठाने को कहा और न हिंसा भड़काई: कोर्ट

देश विरोधी भाषण देने के आरोप में जेल में बंद शरजील इमाम को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत दे दी है। शनिवार को कोर्ट ने उन्हें बेल दिया था। शरजील इमाम की जमानत का आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह ने पारित किया है। कोर्ट ने पारित अपने आदेश में साफ शब्दों में कहा है कि शरजील इमाम ने किसी को हथियार उठाने के लिए नहीं कहा और न उनके भाषणों ने हिंसा भड़काई।

न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह ने अपने पारित आदेश में कहा, “…यह ध्यान दिया जा सकता है कि निर्विवाद आधार पर न तो आवेदक ने किसी को हथियार रखने के लिए बुलाया और न ही आवेदक द्वारा दिए गए भाषण के परिणामस्वरूप कोई हिंसा भड़काई गई।”

उन्होंने आगे कहा, “सही आरोप और आवेदक द्वारा बोले गए शब्दों या किए गए इशारों आदि द्वारा प्रेरित प्रभाव की जांच उस मुकदमे में की जा सकती है जो अभी शुरू होनी है। चूंकि आवेदक अधिकतम सजा के खिलाफ एक वर्ष और दो महीने से अधिक समय तक सीमित रहा है, जो उसे तीन साल की सजा पर भुगतना पड़ सकता है, इसी कारण से आवेदक इस मामले के निर्विवाद तथ्यों में इस स्तर पर जमानत का हकदार हो गया है।”

दरअसल, यह पूरा मामला शरजील इमाम के 16 जनवरी, 2020 को नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय कैम्पस में दिए गए भाषण से जुड़ा है। शरजील के खिलाफ आरोप लगाया गया था कि उन्होंने AMU में देश विरोधी भाषण दिया। वे 18 सितंबर, 2020 से जेल में है।

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अलीगढ़ में शरजील के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 124A (देशद्रोह), 153A (धर्म, नस्ल आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) 153B (आरोप, राष्ट्रीय-एकता के लिए पूर्वाग्रही दावे) और 505 (2) के तहत कुल चार मामले दर्ज किए गए थे। इमाम 18 सितंबर, 2020 से जेल में है।

शरजील ने न किसी को हथियार उठाने को कहा और न हिंसा भड़काई: कोर्ट

शरजील इमाम के वकील ने कोर्ट दलील देते हुए कहा था कि शरजील ने वहां मौजूद लोगों को हथियार उठाने या हिंसक गतिविधियों में शामिल होने के लिए उकसाया नहीं था, जिसने देश की अखंडता और एकता को खतरे में डाला हो या किसी समुदाय के खिलाफ घृणा फैलाने का जैसा कोई काम किया हो।

वहीं, राज्य सरकार की तरफ से पेश हुए वकील ने शरजील की जमानत का विरोध किया। दोनों वकीलों की दलीलों को सुनने के बाद और मामले के गुण-दोष पर राय व्यक्त किए बिना, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दो जमानतदारों के साथ 50-50 हजार रुपये के निजी मुचलके पर शरजील की सशर्त जमानत मंजूर की।

शरजील इमाम के वकील ने ये भी तर्क दिया कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 196 के तहत पूर्व स्वीकृति प्राप्त किए बिना प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती है, और एक ही घटना से उत्पन्न होने वाले इमाम के खिलाफ कई प्राथमिकी दर्ज की गई थीं।

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दोनों वकीलों की लंबी सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि इमाम एक अपराध के लिए एक साल और दो महीने से अधिक समय तक सीमित रहा है, जिसमें दोषी पाए जाने पर अधिकतम तीन साल की सजा हो सकती है।

इन शर्तों पर शरजील को मिली जमानत-

  • आवेदक जांच या मुकदमे के दौरान गवाह को धमकाकर/दबाव बनाकर अभियोजन साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ नहीं करेगा।
  • आवेदक बिना किसी स्थगन की मांग किए ईमानदारी से मुकदमे में सहयोग करेगा।
  • जमानत पर रिहा होने के बाद आवेदक किसी भी आपराधिक गतिविधि या किसी अपराध के कमीशन में शामिल नहीं होगा।
  • कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि उपरोक्त शर्तों के किसी भी उल्लंघन के परिणामस्वरूप उसकी जमानत रद्द हो सकती है।

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