बिहार का एक दलित गांव जहां हर घर में है शारीरिक अक्षम व्यक्ति

बिहार का एक दलित गांव जहां हर घर में है शारीरिक अक्षम व्यक्ति

बिहार के गया जिला के आमस प्रखंड मुख्यालय से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण दिशा की तरफ एक गांव है जिसका नाम है- भूप नगर। मुख्यत: इस गांव में दलितों की आबादी रहती है। गांव में मुख्य रूप से मांझी और भोक्ता समाज के लोग रहते हैं।

जहां एक तरफ केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक विकास के नए-नए दावें करते नहीं थकतीं, वहीं भूप नगर के लिए विकास कोसो दूर है। भूप नगर गांव गया जिला के शेरघाटी विधानसभा के आमस प्रखंड के आमस पंचायत में पड़ता है।

गांव के लोगों को कोई 22 साल पहले मालूम हुआ था कि उनका समूचा गांव एक त्रासदी की चपेट में है। यहां के लोग साल-दर-साल असमय मौत और शारीरिक अक्षमता के शिकार हो रहे हैं। दरअसल, भून नगर गांव के भूजल में फ्लोराइड की मात्रा सामान्य से कई गुणा ज्यादा है, जो स्थानीय लोगों को मौत और बीमारियों के दलदल में धकेल रहा है।

कारवां वेबसाइट ने गांव वालों के हवाले से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट के मुताबिक, कोई दो दशक पहले वैज्ञानिकों ने अपनी जांच रिपोर्ट में बताया था कि यहां के पानी में अत्याधिक फ्लोराइड है, जिसका सेवन स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।

बिहार का एक दलित गांव जहां हर घर में है शारीरिक अक्षम व्यक्ति
स्थानीय निवासी कृष्णा मांझी (फोटो क्रेडिट: उमेश कुमार रॉय/ द वायर)

बिहार सरकार की संस्था किलकारी बिहार बाल भवन ने 20 अप्रैल, 2019 को इस मामले को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित किया था। अपनी जांच रिपोर्ट में सरकार ने कहा था कि भूप नगर गांव के आसपास के इलाके में पीने के पानी में प्रति लीटर 8 मिलीग्राम फ्लोराइड है, जोकि सभी के लिए हानिकारक है। और उससे भी बच्चों के लिए हानिकारक है।

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वहीं, भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने भी प्रति लीटर पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.0 मिलीग्राम तय की है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के मुताबिक, यह मात्रा 1.5 मिलीग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए।

भूप नगर में करीब 55 घर हैं जहां लगभग 450 की आबादी है। कमोबेश यहां के हर घर में शारीरिक अक्षमता देखने को मिल जाएगी। जैसे- पैरों की टेढ़ी-मेढ़ी हड्डियां, लाठी लेकर चलते लोग और चारपाई पर लाचार आदमी, यहां आमतौर पर मिल जाएंगे।

कारवां की रिपोर्ट में कई स्थानीय लोगों के बातचीत के आधार पर बताया गया है कि कैसे यहां लोग पानी की वजह विकराल मौत के मुंह में समा रहे हैं। जो जिंदा हैं वह अपनी जिन्दगी को घसीट-घसीट कर बिता रहे हैं। दो दशक पहले ही इस समस्या के बारे में सरकार को पता चल गया था लेकिन कई सरकारें आईं और गईं लेकिन भूप नगर निवासियों के जीवन पर कोई फर्क नहीं पड़ा।

यह समस्या केवल शारीरिक अक्षमता तक अब सीमित नहीं है बल्कि काफी संख्या से यहां के लोग मानसिक रूप से भी कमजोर होते जा रहे हैं। और जो शारीरिक रूप से थोड़ा ठीक भी हैं उनमें से अधिकतर मजदूरी करने शहर चले गए हैं।

जब बाहर से गांव की समस्या जानने आता है कि तो अक्सर 60 साल के बुलाकी मांझी को बुलाया जाता है। बुलाकी मांझी इस पंचायत के 2001 से 2010 तक मुखिया भी रहे हैं। उनका मानना है कि कोरोना महामारी के दौरान देश में लगाए गए लॉकडाउन ने गांव के लोगों की गरीबी पहले से और अधिक बढ़ा दी है। पहले भी मजदूरी के लिए लोग पलायन करते थे पर अब पलायन और बढ़ गया है, क्योंकि आस-पड़ोस में काम की कमी हो गई है।

बुलाकी मांझी की जबानी कारवां ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, “गांव की सबसे बड़ी परेशानी तो यहां का पानी है। हम लोग जानबूझ कर जहर पी रहे हैं। क्या करें? कहां जाएं? पूरा गांव ही फ्लोराइड का पानी पी रहा है। हमारा गांव तो मूलभूत सुविधा से एकदम दूर है। न सड़क है, न शौचालय। न पेयजल, न डॉक्टरों की सुविधा। बीमार पड़ने पर मरीज को खाट पर लाद कर सात से आठ किलोमीटर दूर डॉक्टर के पास ले जाते हैं।”

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बुलाकी बताते है कि गांव के लोगों में आई शारीरिक समस्या का कारण फ्लोराइड युक्त पानी है। वो कहते हैं कि फ्लोराइड का असर लोगों के शरीर पर पड़ा है। चलने-फिरने के लिए इन्हें लाठी का सहारा लेना पड़ता है और कमर के दर्द से भी परेशान हैं। यही नहीं 40 साल के उनके बेटे संजय मांझी भी फ्लोराइड के कारण पिछले कई सालों से पैरों से लाचार हो चुके हैं।

बिहार का एक दलित गांव जहां हर घर में है शारीरिक अक्षम व्यक्ति
पूर्व मुखिया बुलाकी मांझी (फोटो क्रेडिट: मो. असग़र खान/ कारवां)

बुलाकी मांझी बताते हैं कि उनके गांव में 45 से भी अधिक लोग विकलांग हैं। वे सभी कोई काम नहीं कर सकते। बीते कुछ सालों में दर्जनों लोग सिर्फ विकलांगता के चलते मर चुके हैं। इसके अलावा बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो बिस्तर पर पड़े हुए हैं और उनका सही से इलाज नहीं हुआ, तो कभी भी मर सकते हैं।

आपको भूप नगर के लगभग हर घर में कोई-न-कोई हड्डियों का रोगी मिलेगा, या कोई जन्मजात अपंग, या फिर तीस साल का होते-होते पैरों की हड्डी टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती है। या फिर दांत पीले होने लगते हैं।

कोई लाठी लेकर चलता है तो कई जमीन पर घसीट कर। कई लोग ऐसे भी हैं जो अपने हाथों से खाना तक नहीं खा पाते हैं। एक ऐसी है मरीज हैं 35 साल की सोनमातिया देवी। सोनमातिया घर के द्वार के बाहर चारपाई पर चित पड़ी रहती हैं।

बिहार का एक दलित गांव जहां हर घर में है शारीरिक अक्षम व्यक्ति
सुनीता देवी (फोटो क्रेडिट: उमेश कुमार रॉय/ द वायर)

पिछले एक साल से पैर और कमर से इस कदर माजूर हो गई हैं कि खुद से अनाज का एक दाना तक मुंह में नहीं डाल सकतीं। उनकी 10 साल की बेटी सुमन खाना बनाने के साथ-साथ अपनी माँ की भी देखभाल भी करती है। 16 साल का बेटा कुलदीप है और पति का नाम है भोला सिंह। दोनों मजदूरी और थोड़ी बहुत खेती के चक्कर में दिनभर बाहर रहते हैं।

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भूप नगर गांव के चापाकलों पर अक्सर पीले रंग से क्रॉस का चिन्ह मिलेगा जिस पर लिखा है- ‘8 मिलीग्राम फ्लोराइड’। फिर भी उसी चापाकल से गांव वाले पानी पीने और खाना बनाने को मजबूर हैं।

पूर्व मुखिया रहे बुलाकी मांझी बताते हैं कि उन्हें अफसोस है कि उन्होंने अपने दल साल के कार्यकाल में इन समस्याओं को दूर नहीं कर पाएं। वो कहते हैं कि हमारे टाइम में उतना फंड नहीं आता था। 50 हजार रुपये तक ही फंड होता था, जिससे गली का कुछ सोलिंग का काम करवाया था।

वहीं, आमस पंचायत के ब्लॉक विकास पदाधिकारी (बीडीओ) रमेश कुमार सिंह कहते हैं, “विकास कार्य जारी है। चूंकि गांव जाने के लिए रास्ता नहीं है। वहां कोई वाहन नहीं पहुंच पाता है इसलिए विकास का कार्य होने में बाधा आती है। रही बात पानी के परमानेंट उपाय की, तो लोग वहां पर बसें नहीं, यह उपाय हो सकता है। इसके लिए बहुत बार प्रयास भी हुआ लेकिन गांव वाले माने नहीं। पानी के प्लांट के खराब होने की बात मेरे संज्ञान में है। उसे जल्द ही ठीक किया जाएगा।”

जबकि गांव के लोग बताते हैं कि साल 1998-99 में यहां महामारी हुई थी जिसमें आठ लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद गया के तत्कालीन डीएम अमृत लाल मीणा ने गांव का निरीक्षण किया था। पहली बार उन्हीं की पहल पर इस गांव में 29 लोगों को इंदिरा आवास योजना के तहत घर मिले। दो चापाकल लगाए गए।

लेकिन इस दौरान बढ़ती जा रही विकलांगता और शारीरिक अक्षमता को गांववासी प्राकृतिक समझकर नजअंदाज करते रहे। अखबारों में जब इसे लेकर खबरें प्रकाशित हुई तो बिहार सरकार के तत्कालीन मंत्री शकील अहमद खान ने 2003 में गांव का दौरा किया और वैज्ञानिकों ने निरीक्षण किया।

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वैज्ञानिकों के जांच के बाद बताया कि यहां के पानी में बहुत मात्रा में फ्लोराइड है इसलिए गांव को विस्थापित करना होगा। लेकिन गांव वालों ने विस्थापन से इनकार कर दिया। क्योंकि उन्हें डर था कि क्या वे सब लोग एक साथ यहां की तरह रह पाएंगे? अगर उन्हें दूसरी जगहों पर घर बनाकर मिल भी गया तो क्या खेती के लिए जमीन मिलेगी।

गांव वालों का कहना है कि साल 2003 में फ्लोराइड युक्त पानी की समस्या का हल निकालने के लिए इनसे कहा गया कि आमस ब्लॉक में टंकी बैठेगी और उसी से फिल्टर होकर पानी उनके गांव तक आएगा। 2006 में तीन साल बाद पाइप भी बिछ गया पर आज तक उसमें पानी नहीं आया।

गांव में 2009-2010 में पानी फिल्टर करने वाला प्लांट लगा, जिसको चलाने का काम एक कंपनी को दिया गया। लेकिन 2016 में फिल्टर का कैमिकल खत्म हो गया, जिसके बाद चार सालों तक प्लांट बंद रहा। लेकिन जब अखबारों फिर से खबरें छपीं तो कैमिकल डालकर फरवरी 2020 में फिर से प्लांट को चालू किया गया। लेकिन फिर बोरिंग खराब हो गई और कैमिकल खत्म हो गया जिसके बाद से प्लांट बंद है।

भूप नगर फ्लोराइड का दंश झेलने वाला कोई इकलौता गांव नहीं है। बिहार के लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग की माने तो राज्य में 11 जिलों के 98 प्रखंड के करीब चार हजार से ज्यादा बसाहटों के भूजल में फ्लोराइड की मात्रा सामान्य से काफी अधिक है।

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