सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का पसंदीदा भोजन था बीफ और मटन: शोध

सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का पसंदीदा भोजन था बीफ और मटन: शोध

नई दिल्ली: भले भारत को शाकाहार को लेकर दुनियभर में जाना जाता हो लेकिन यहां के लोग पहले मांसभक्षी हुआ करते थे। यहां तक की वे लोग बीफ का सेवन भी करते थे। एक हालिया शोध में सामने आया है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग मोटे तौर पर मांसभक्षी थे। वे लोग गाय, भैंस और बकरी के मांस खाते थे।

कैम्ब्रिज यूनिवर्सटी से पुरातत्व-विज्ञान में पीएचडी और अब फ्रांस में रह रहे पोस्ट-डॉक्टोरल फेलो अक्षिता सूर्यनारायण का एक शोधपत्र प्रकाशित हुआ है जिसमें सिंधु घाटी क्षेत्र में मिले मिट्टी के बर्तन और खान-पान के तौर-तरीके आधार दावा किया गया है कि यहां के लोग मांसभक्षक थे।

सूर्यनारायण का यह शोधपत्र जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजिकल साइंस (जेएएस) के जनवरी 2021 के अंक में ‘उत्तर पश्चिम भारत में सिंधु सभ्यता के मिट्टी के बर्तनों में लिपिड अवशेष’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। हालांकि, इससे पहले भी सिंधु घाटी के लोगों की जीवन-शैली के बारे में कई शोध हो चुके हैं लेकिन सूर्यनारायण की शोध में मूल रूप से उस क्षेत्र में उगाई गई फसलों पर फोकस किया गया है।

सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का पसंदीदा भोजन था बीफ और मटन: शोध
शोधार्थी अक्षिता सूर्यनारायण

उनका यह शोध सिंधु घाटी में उगने वाले फसलों के साथ मवेशियों और लोगों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले बर्तनों पर केंद्रित है। पुरातात्विक खोजों में मिले बर्तनों की वैज्ञानिक विधि से पड़ताल बताती है कि प्राचीन भारत के लोग उनमें क्या खाते-पीते थे।

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पसंदीदा मांस बीफ और मटन

इस तरह के अध्ययन पूरी दुनिया में पुरातत्व-विज्ञानी कर रहे हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के मिट्टी के बर्तनों पर भी इसी मिलता-जुलता शोध किया गया है। शोध में सामने आया है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग मूल गेहूं, जौ, चावल के साथ-साथ अंगूर, खीरा, बैंगन, हल्दी, कपास, सरसों, जूट और तिल की भी पैदावार करते थे।

गाय और भैंस पशुपालन में मुख्य मवेशी थे। इस इलाके में मिले हड्डियों के 50-60 प्रतिशत अवशेष गाय-भैंस के हैं जबकि लगभग 10 प्रतिशत हड्डियां बकरियों की हैं। इसी के आधार पर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि घाटी के लोगों का पसंदीदा मांस बीफ और मटन रहा होगा।

सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का पसंदीदा भोजन था बीफ और मटन: शोध
हड़प्पा सभ्यता के अवशेष। चित्र साभार: विकिपीडिया / सारा जिलानी

इस शोध में यह भी कहा गया है कि गायों को मुख्य रूप से दूध के लिए जबकि बैलों को खेती-किसानी के लिए पाला जाता था। हालांकि, सूअर की हड्डियां भी खुदाई में मिली हैं पर सूअर किस काम आते रहे होंगे, अभी ये स्पष्ट नहीं हो पाया है। इसके अलावा हिरण और पक्षियों के भी कुछ अवेशष मिले हैं।

हरियाणा में सिंधु सभ्यता के स्थल राखीगढ़ी को इस शोध के लिए चुना गया था। आलमगीरपुर, मसूदपुर, लोहारी राघो और कुछ अन्य जगहों से मिले मिट्टी के बर्तनों को भी एकत्र किया गया। इसके बाद इन मिले बर्तनों से सैंपल लिए गए और वैज्ञानिक विधि से विश्लेषण किया गया जिसमें ये पता चला कि उन बर्तनों में पशुओं का मांस खाया जाता था।

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शहरी और ग्रामीण इलाकों के खान-पान

शोध से पता चला है कि इन बर्तनों में जुगाली करने वाले पशुओं के मांस, जुगाली करने वाले दूध से बने उत्पाद और वनस्पती सामाग्री पकाई जाती थीं। इसमें यह भी कहा गया है कि सिंधु घाटी के शहरी और ग्रामीण इलाकों में इस खान-पान के बारे में कोई अंतर नहीं था। इसके अलावा कुछ अन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भी इन बर्तनों का प्रयोग किया जाता था।

तब सिंधु घाटी के इलाके में जुगाली करने वाले कई पशु थे और इन बर्तनों में दुग्ध उत्पादों का सीधा इस्तेमाल तुलनात्मक रूप से कम होता थ। इससे पहले गुजरात में हुए एक अध्ययन से पता चला था कि मुख्य रूप से मिट्टी के कई बर्तनों में दुग्ध उत्पाद ही पकाए जाते थे। ये शोध साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुआ था।

अपने शोध के संबंध में अक्षिता सूर्यनारायण का कहना है कि शोध के अगले चरण में ये पता किया जाएगा कि संस्कृति और जलवायु परिवर्तन की पृष्ठभूमि में खान-पान के तौर-तरीकों में सिलसिलेवार तौर पर क्या बदलाव आए। शोधकर्ता का कहना है कि मिट्टी के बर्तनों के अवशेष इसके बारे में पता लगाने में अहम भूमिका निभाएंगे।

सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का पसंदीदा भोजन था बीफ और मटन: शोध
कराची (पाकिस्तान) के पास सिंधु घाटी सभ्यता के शहर मोहनजोदड़ो के अवशेष: फोटो साभार: गेट्टी / ए. हसन

शोध में सिंधु सभ्यता के बारे में अन्य जानकारियां

सूर्यनारायण का ये भी कहना है कि दक्षिण एशियाई शहरों के पुरातात्विक जगहों से मिले मिट्टी के बर्तनों का विश्लेषण करके हम प्रागैतिहासिक काल में दक्षिण एशिया में खान-पान में विविधता को समझ सकेंगे। शोधकर्ता ने अपने शोध में सिंधु सभ्यता के बारे में कुछ अन्य जानकारियों को भी शामिल किया है।

शोध के मुताबिक, प्रागैतिहासिक काल में सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार भौगोलिक रूप से आधुनिक पाकिस्तान, उत्तर-पश्चिम भारत, दक्षिण भारत और अफगानिस्तान के इलाकों में था। सिंधु सभ्यता का विस्तार मैदान, पहाड़, नदी-घाटी, रेगिस्तान और समुद्र तटीय अलग-अलग इलाकों में था। इसमें पांच मुख्य शहर और कई छोटी-छोटी आबादियां शामिल हैं। इन आबादियोंकी अवधि ईसापूर्व 2600 से ईसापूर्व 1900 के बीच है।

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सिंधु सभ्यता की खासियतों में हार-चूड़ी, वजन मापने के टुकड़े और मोहर शामिल हैं। सिंधु घाटी में लेन-देन में वस्तुओं की अदला-बदली का व्यापक प्रचलन था। हालांकि, यह नहीं कहा जा सकता कि सिंधु सभ्यता में शहरों का गांवों पर दबदबा था या दोनों का संबंध मुख्य रूप से आर्थिक आदान-प्रदान पर आधारित था।

सिंधु सभ्यता के पश्चिमी भाग ईसापूर्व 2100 के बाद धीरे-धीरे खाली होते गए और पूर्वी भाग विकसित हुए। सिंधु सभ्यता में इस दौर में शहर कम गाँव अधिक थे। शहर कम और गाँव अधिक होने की कई वजहें बताई जाती हैं जिनमें खराब मॉनसून को सबसे बड़ा कारण बताया जाता है। ईसापूर्व 2150 के बाद के कई सदियों तक यही हालात सिंधु घाटी में रहे।

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