बशीर के माथे से 11 साल बाद आतंकवादी होने का कलंक हटा, बरी होकर श्रीनगर लौटे

बशीर के माथे से 11 साल बाद आतंकवादी होने का कलंक हटा, बरी होकर श्रीनगर लौटे

गुजरात पुलिस ने 11 साल पहले आतंक के आरोप में पेशे से एक कंप्यूटर ऑप्रेटर को गिरफ्तार किया था। अब बशीर अहमद बाबा को वडोदरा की एक अदालत ने यह कहते हुए रिहा कर दिया कि अभियोजन पक्ष यूएपीए के तहत उनके खिलाफ आरोपों को साबित नहीं कर पाई। इसके बाद बशीर जेल छुटकर वापस श्रीनगर अपने घर लौट आए हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने 19 जून को बचाव पक्ष के इस तर्क को बरकरार रखा कि बशीर अहमद बाबा कैंसर के बाद की देखभाल पर चार दिवसीय शिविर में भाग लेने के लिए गुजरात का दौरा कर रहे थे, ताकि किमाया फाउंडेशन के माध्यम से घाटी में रोगियों को ऐसी सेवाएं प्रदान की जा सकें। वे फाउंडेशन के एक हिस्सा थे।

बशीर के माथे से 11 साल बाद आतंकवादी होने का कलंक हटा, बरी होकर श्रीनगर लौटे

बशीर अहमद को 13 मार्च, 2010 को गिरफ्तार किया था। अब उनकी उम्र 43 साल हो गई है। 23 जून को श्रीनगर के रैनावाड़ी में अपने घर पहुंचे। बशीर अहमद को गुजरात एटीएस ने आणंद से गिरफ्तार किया था। और उन पर एक आतंकी नेटवर्क स्थापित करने और 2002 के दंगों से नाराज मुस्लिम युवाओं को हिजबुल मुजाहिदीन के लिए भर्ती करने के लिए राज्य में रेकी करने का आरोप लगाया था।

ये भी पढ़ें: जाने-माने पत्रकार पी. साईनाथ जापान के ग्रैंड फुकुओका पुरस्कार से सम्मानित

बशीर अहमद पर एटीएस ने फोन और ईमेल पर हिजबुल प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन और एक बिलाल अहमद शेरा के संपर्क में रहने का आरोप लगाया था। आणंद जिला न्यायालय के चौथे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एस.ए. नाकुम ने 87 पन्नों के फैसले में कहा है, “आरोपी के खिलाफ आरोप कि वह गुजरात में रुका था और 13 मार्च को आणंद में पाया गया था और गुजरात में आतंकवादी नेटवर्क स्थापित करने के लिए उसे वित्तीय सहायता मिली थी, पर्याप्त साबित नहीं हुआ, न ही यह साबित करने के लिए कोई सबूत पेश किया गया है कि उसने इस तरह के लाभ प्राप्त किए या एक आतंकी मॉड्यूल स्थापित किया।”

बशीर के माथे से 11 साल बाद आतंकवादी होने का कलंक हटा, बरी होकर श्रीनगर लौटे

जज ने आगे कहा, “अभियोजन पक्ष स्पष्ट रूप से आरोपी के खिलाफ आरोप साबित करने में विफल रहा है। अभियोजन पक्ष यह साबित करने के लिए कोई सबूत स्थापित करने में भी विफल रहा है कि वह हिजबुल मुजाहिदीन के वांछित कमांडरों के संपर्क में था।” द वायर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीनगर स्थित अपने घर से फोन पर बात करते हुए बशीर अहमद ने बताया कि वह 15 दिनों के प्रशिक्षण कार्यक्रम के बाद वापस आने की उम्मीद में गुजरात के लिए रवाना हुए थे। वह गुजरात स्थित एक एनजीओ के प्रोजेक्ट हेड थे, जिसने कटे होंठ के साथ पैदा हुए बच्चों की मदद की।

वहीं, उनके वकील खालिद शेख ने कहा कि श्रीनगर के एक डॉक्टर ने सिफारिश की थी कि वह घाटी में कैंसर के बाद की देखभाल सेवाओं की स्थापना के लिए प्रशिक्षण लेने के लिए शिविर की यात्रा करें। उन्हें 28 फरवरी, 2010 को प्री-बुक किए गए रिटर्न टिकट पर वापस लौटना था। लेकिन, एटीएस ने बशीर अहमद को उनके छात्रावास से उठा लिया, टीवी कैमरों के सामने उनकी परेड कराई और उन्हें हिजबुल आतंकवादी करार दिया।

बशीर के माथे से 11 साल बाद आतंकवादी होने का कलंक हटा, बरी होकर श्रीनगर लौटे

ये भी पढ़ें: इस्राइल ने अभियान चलाकर कम-से-कम 3,100 फिलिस्तीनियों को हिरासत में लिया

खालिद शेख ने कहा, “एटीएस ने तर्क दिया कि बाबा ने उस डॉक्टर के लैपटॉप का इस्तेमाल किया था जिनके शिविर में वह पाकिस्तान में अपने हिजबुल आकाओं को ईमेल भेजने के लिए जा रहे थे। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें भोजन या प्रार्थना करने के बहाने दिन में कई बार संदिग्ध फोन कॉल करते और शिविर से बाहर जाते देखा गया।”

दूसरी तरफ बशीर अहमद ने कहा, “अंत में घर वापस आकर खुशी हुई, वह कभी निराश नहीं हुए। मुझे पता था कि मैं निर्दोष हूं और इसलिए मैंने कभी उम्मीद नहीं खोई। मुझे पता था कि मुझे एक दिन सम्मान के साथ रिहा किया जाएगा।” कमाल की बात ये कि बशीर अहमद ने जेल में रहते हुए राजनीति और लोक प्रशासन की पढ़ाई की और मास्टर्स डिग्री हासिल की।

बशीर के माथे से 11 साल बाद आतंकवादी होने का कलंक हटा, बरी होकर श्रीनगर लौटे

उनके लौटने पर उन्हें लेने आने वालों में सबसे पहले उनके भतीजे और भतीजी थे, जिन्होंने उन्हें पहली बार देखा था। बशीर ने कहा, “मैं कैसे बताऊं कि मुझे कैसा लगा? यह एक साथ अपार खुशी और दुख का क्षण था।” उनका स्वागत करने के लिए आए लोगों में से एक चेहरा नहीं था जो उनके पिता गुलाम नबी बाबा का था। सात साल तक उनके पिता ने अपने बेटे की रिहाई के लिए हर दरवाजे पर दस्तक दी थी। पर साल 2017 में कैंसर से उनकी मौत हो गई।

ये भी पढ़ें: भारतीय किसान यूनियन के 200 कार्यकर्ताओं पर FIR दर्ज, तोड़फोड़ का आरोप

बशीर अहमद बाबा ने अपने वकीलों को मुफ्त में अपना केस लड़ने के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि उन्हें हमेशा इस बात का पछतावा रहेगा कि उनके पिता उन्हें घर आने पर नहीं देख पाए। उन्होंने कहा, “वह नियमित रूप से जेल में मुझसे मिलने आता थे।” बशीर अहमद जब जेल में थे तब उनके छोटे भाई नजीर ने घर की सारी ज़िम्मेदारियां उठाईं। उनकी दो बहनों की शादी बीते 12 सालों में हुई, पर सेल्समैन का काम करने वाले नजीर ने ऐसा नहीं किया। अब बशीर इन जिम्मेदारियों को पूरा करने की उम्मीद कर रहे हैं।


(प्रिय पाठक, पल-पल के न्यूज, संपादकीय, कविता-कहानी पढ़ने के लिए ‘न्यूज बताओ’ से जुड़ें। आप हमें फेसबुक, ट्विटर, टेलीग्राम और इंस्टाग्राम पर भी फॉलो कर सकते हैं।)

Leave a Reply

Your email address will not be published.