म्यांमार में पुलिस ने रविवार को सैन्य तख्तापलट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों पर गोलियां चलाई जिसमें कम-से-कम 18 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई। जबकि करीब 30 लोग जख्मी हो गए हैं। पुलिस के इस कार्रवाई को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने तख्तापलट के विरोध में की जा रही रैलियों का सबसे घातक दिन बताया है। खबरों के मुताबिक, म्यांमार के कई शहरों जैसे- यंगून, दवेई और मंडाले में भी कई लोग मारे गए हैं। बताया जा रहा है कि पुलिस की तरफ से लोगों के खिलाफ असली गोलियां और आंसू गैस के गोलों का इस्तेमाल किया गया।
At least 18 people were killed & 30 wounded in #Myanmar today. “We strongly condemn the escalating violence against protests in Myanmar & call on the military to immediately halt the use of force against peaceful protestors,” says spox Ravina Shamdasani 👉https://t.co/nqhVYtXZfv pic.twitter.com/sAvKPwR4F7
— UN Human Rights Asia (@OHCHRAsia) February 28, 2021
संयुक्त राष्ट्र ने म्यांमार पुलिस की कार्रवाई की निंदा की है। देश के सैन्य शासकों से संस्था की ओर से कहा गया है कि प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसक और बलपूर्वक कार्रवाई तुरंत रोका जाए। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय की प्रवक्ता रवीना शामदासानी ने अपने एक बयान में कहा, “हम म्यांमार में विरोध प्रदर्शनों के खिलाफ बढ़ती हिंसा की कड़ी निंदा करते हैं और शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बल के इस्तेमाल को तुरंत रोकने के लिए सेना से आग्रह करते हैं।”
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शामदासानी ने आगे कहा, “म्यांमार के लोगों को शांति के साथ इकट्ठा होने और लोकतंत्र की बहाली की मांग करने का अधिकार है।” उन्होंने कहा, “इन मौलिक अधिकारों का सम्मान सेना और पुलिस द्वारा किया जाना चाहिए, न कि हिंसा और और खूनी दमन किया जाना चाहिए।” म्यांमार के तीन शहरों यंगून, दवेई और मंडाले में सबसे अधिक कार्रवाई हुई है। पुलिस ने इन शहरों में नागरिक आंदोलन को खत्म करने के लिए बल का इस्तेमाल किया और शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे लोगों को निशाना बनाया।
Pictures of injured protesters in Mandalay. One was shot in the head and is in a critical condition. #WhatsHappeningInMyanmar #2021uprising #myanmarcrackdown pic.twitter.com/ojMyucIRVv
— Myanmar Now (@Myanmar_Now_Eng) February 28, 2021
सैन्य कार्रवाई की निंदा
म्यांमार की सेना ने 1 फरवरी को विद्रोह किया था और चुनी हुई सरकार को सत्ता से बेदखल कर डाला था। हालांकि, देश की सेना का कहना है कि पिछले साल नवंबर में आम चुनाव में धांधली हुई थी। लोगों ने सैन्य तख्तापलट को पसंद नहीं किया था पर शुरूआती कुछ दिनों में विरोध-प्रदर्शन शुरू नहीं हुए थे। हालांकि, आगे चलकर सेना के खिलाफ लोगों के विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गया। धीरे-धीरे प्रदर्शनों में गति पकड़ना शुरू कर दिया।
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सुरक्षाबलों की इस कार्रवाई की अमेरिकी सरकार ने निंदा की है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने ट्वीट किया, “हम बर्मा के साहसी लोगों के साथ दृढ़ता के साथ खड़े हैं और सभी देशों को उनकी इच्छा के समर्थन में एक स्वर से बोलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”
स्थानीय खबरों के मुताबिक, रविवार को यंगून में भारी संख्या में छात्रों और शिक्षकों को हिरासत में लिया गया था। कई जख्मी लोगों की तस्वीर भी मीडिया में सामने आई हैं। समाचार एजेंसी रॉयटर्स एक टीचर के हवाले लिखा है, “पुलिस ट्रक से उतरी और उसके बाद बिना किसी चेतावनी के स्टेन ग्रेनेड फेंकना शुरू कर दिया।”
प्रतिबंधों पर अंतिम निर्णय
अमेरिकी सरकार के अलावा यूरोपीय संघ के शीर्ष नेताओं ने भी सेना की इश कार्रवाई की निंदा की है। विदेश नीति प्रमुख जोसेफ बोरेल ने, “उन्होंने एक बार फिर दोहराया कि ईयू तख्तापलट के विरोध में प्रतिबंध लगाएगा। उन्होंने एक बयान में कहा, “हिंसा लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को अवैध रूप से उखाड़ फेंकने को वैधता नहीं देगी। निहत्थे नागरिकों के खिलाफ गोलीबारी में, सुरक्षा बलों ने अंतरराष्ट्रीय कानून की सख्त अवहेलना दिखाई है और इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए।” उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ आने वाले दिनों में प्रतिबंधों पर अंतिम निर्णय लेगा।

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दूसरी तरफ देश की सेना की ओर से कहा है कि उन्होंने सेना के विरोध में बात करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के लिए अपने राजदूत क्यॉ मो तुन को निकाल दिया है। उल्लेखनीय है कि एक दिन पहले ही क्यॉ मो तुन ने संयुक्त राष्ट्र में म्यांमार के राजदूत तौर पर सेना को सत्ता से बेदखल करने के लिए मदद मांगी थी। उन्होंने अपने संबोधन में कहा था कि किसी को भी सेना के साथ सहयोग नहीं करना चाहिए, जब तक सेना लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को सत्ता हस्तांतरित नहीं कर देती।
रॉयटर्स एजेंसी ने संयुक्त राष्ट्र में मौजूद सूत्रों के हवाले खबर दी है कि संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि वो म्यांमार की सैन्य सत्ता को मान्यता नहीं देती, इस कारण क्यॉ मो तुन संयुक्त राष्ट्र में म्यांमार के राजदूत बने रहेंगे। शनिवार को म्यांमार के सरकारी टेलीविजन पर सेना ने उन्हें पद से हटाए जाने का ऐलान किया गया था। सेना की ओर से कहा गया कि उन्होंने देश के साथ गद्दारी की है और एक अनाधिकृत संगठन की तरफ से भाषण दिया है जो देश का प्रतिनिधित्व नहीं करता है।
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