तकरीबन 87 दिनों से देशभर के किसान केंद्र सरकार के कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। आंदोलन के दौरान अब तक 248 किसानों की मौत हो चुकी है। किसानों के आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) की तरफ से इकट्ठा किए गए आंकड़ों के मुताबिक, सभी मृतकों में से 202 किसान पंजाब, 36 हरियाणा, छह उत्तर प्रदेश, एक-एक मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तराखंड के करने वाले थे।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट अनुसार, अधिकतर लोगों की मौत दिल का दौरा पड़ने, ठंड की वजह से बीमारी और दुर्घटनाओं से हुई हैं। 26 नवंबर 2020 से इस साल 20 फरवरी के बीच ये आंकड़े इकट्ठा किए गए हैं। संयुक्त किसान मोर्चा के मुताबिक, अकेले पंजाब में पिछले साल 261 किसानों ने आत्महत्या की थी।
जहां औसतन पिछले साल हर हफ्ते पांच किसानों ने आत्महत्या की। वहीं, मोदी सरकार के कृषि कानूनों का विरोध कर रहे बीते करीब तीन महीनों यानी 26 नवंबर से 19 फरवरी के बीच दिल्ली की सीमाओं और पंजाब के कुछ हिस्सों में प्रत्येक सप्ताह 16 किसानों ने आत्महत्या की।
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रिपोर्ट के मुताबिक, जब इस साल जनवरी महीने में शीतलहरी चरम पर थी, तब प्रदर्शन के दौरान तकरीबन 120 किसानों की मौत हुई, जिसमें से अकेले पंजाब के 108 किसान थे। मरने वालों में अधिकतर किसान दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे थे, जबकि कुछ अन्य की विरोध-प्रदर्शनों में आने-जाने के दौरान दुघर्टनाओं में मौत हुई।
पंजाब के 41 किसानों की इस महीने की 19 फरवरी तक मौत हुई। इस अवधि के दौरान अन्य राज्यों के लगभग 10 किसानों की मौत हुई। दिसंबर में पिछले साल पंजाब के 48 किसानों और हरियाणा के करीब 10 किसानों की मौत हुई थी। जब किसानों ने 26 नवंबर को कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब से दिल्ली मार्च किया था तब से 30 नवंबर 2020 तक पंजाब के पांच किसानों की मौत हुई थी।
भारतीय किसान यूनियन के महासचिव जगमोहन सिंह ने बताया, “हमारे किसान विषम परिस्थितियों में भी ट्रैक्टर ट्रॉली में रह रहे हैं। यहां स्वच्छता भी नहीं है, क्योंकि सड़कों पर स्वच्छ शौचालय नहीं है, जिसकी वजह से कई किसान बीमार हो गए और ठंड, दिल का दौरा पड़ने, ब्रेन हैमरेज, मधुमेह और निमोनिया जैसी बीमारियों की वजह से किसानों की मौत हो गई। कई किसानों की मौत दुर्घटनाओं में भी हुई है।”
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उन्होंने कहा कि कई किसानों को मौत सही समय पर चिकित्सा सहायता नहीं मिल पाने के चलते हुई। आंकड़ों के मुताबिक, हर आयु वर्ग (18 से 85 वर्ष) के किसानों की मौत हुई है। उन्होंने कहा, “ये हत्याएं हैं क्योंकि किसानों के दिल्ली सीमाओं पर पहुंचने के एक हफ्ते के भीतर सरकार को समस्याएं हल कर देनी चाहिए थीं, लेकिन सरकार अपने ही लोगों के प्रति उदासीन थी।”
वहीं, बीकेयू (उगराहां) की लहरा गागा इकाई के ब्लॉक अध्यक्ष धर्मेंद्र सिंह पशौर ने बताया कि 12 किसानों ने बीते साल जनवरी में आत्महत्या की थी। जबकि फरवरी में 20, मार्च में नौ, अप्रैल में 16, 15 मई से 20 जून के बीच 15 किसानों ने आत्महत्या की।
जारी रिपोर्ट के मुताबिक, 20 जून से 19 अक्टूबर (2020) के बीच, बीते पांच महीनों सिर्फ 93 किसानों ने आत्महत्या की। यानी हर महीने औसतन 18 से 19 किसानों ने सुसाइड किया। हालांकि, 96 किसानों ने 20 अक्टूबर से 31 दिसंबर (2020) के बीच आत्महत्या की, क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा तीन अध्यादेशों को कानून में तब्दील करने से किसान निराश हो गए थे और पिछले साल 14 अक्टूबर को केंद्र के साथ किसानों की बातचीत भी असफल रही थी।
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बीकेयू (उगराहां) के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरीकलां ने कहा कि सरकार की क्रूरता की वजह से 20 से 40 की उम्र के बीच के किसानों की मौत हुई। कोकरीकलां ने कहा, “हम उनके संघर्ष को व्यर्थ नहीं जाने देंगे। जब तक हमारी मांगें नहीं मानी जातीं हम अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।”
राजस्व एवं पुनर्वास के अतिरिक्त मुख्य सचिव एवं वित्तीय आयुक्त विश्वजीत खन्ना ने कहा, “पंजाब सरकार कृषि कानूनों के विरोध प्रदर्शन के दौरान जान गंवा चुके किसानों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपये का मुआवजा प्रदान कर रही है।” उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री कोष से यह अनुदान दिया जा रहा है। वहीं, कोकरीकलां ने कहा, “मालवा इलाके में हमें विरोध प्रदर्शनों के दौरान जान गंवा चुके लगभग 100 किसानों के परिवार वालों के लिए मुआवजा जारी किया गया है।”
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