अशोका यूनिवर्सिटी विवाद: मेहता के समर्थन में हार्वर्ड, ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज जैसे संस्थानों के 150 बुद्धिजीवियों ने लिखा ओपन लेटर

अशोका यूनिवर्सिटी विवाद: मेहता के समर्थन में हार्वर्ड, ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज जैसे संस्थानों के 150 बुद्धिजीवियों ने लिखा ओपन लेटर

सोनीपत की अशोका यूनिवर्सिटी विवाद की गुंज देश से बाहर भी पहुंच गई है। हार्वर्ड, फ्रिंसेटन, ऑक्सफोर्ड, कोलंबिया, याले और कैंब्रिज जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से जुड़े तकरीबन 150 अकैडमीशियन ने प्रताप भानू मेहता के समर्थन ओपन लेटर लिखा है।

अशोका यूनिवर्सिटी के ट्रस्टीज, एडमिनिस्ट्रेटर्स और फैकल्टी को लिखे गए पत्र में कहा गया है, “जिस तरह से राजनीतिक दबाव के चलते मेहता से इस्तीफा लिया गया, उससे सभी आहत और हतप्रभ हैं।” अधिकतर लोगों को मानना है कि मेहता अपने लेखन की वजह से सरकार के निशाने पर हैं। पिछले कुछ सालों से मेहता नरेंद्र मोदी सरकार और भाजपा की नीतियों का मुखर होकर आलोचना करते रहे हैं।

ओपन लेटर में एकेडमिशियन की ओर से कहा गया कि उन्हें लगता है कि अशोका के ट्रस्टीज ने मेहता का बचाव करने के जगह उन्हें त्यागपत्र देने पर बाध्य किया। एकेडमिशियन्स ने लिखा कि वे सभी मेहता के समर्थन में खड़े हैं। उन्हें लगता है कि हमेशा मेहता ने संवैधानिक मूल्यों को सम्मान करते हुए अपनी बात रखी है। वे हमेशा फ्री स्पीच, टॉलरेंस और लोकतांत्रिक मूल्यों की वकालत करते थे।

अशोका यूनिवर्सिटी विवाद: मेहता के समर्थन में हार्वर्ड, ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज जैसे संस्थानों के 150 बुद्धिजीवियों ने लिखा ओपन लेटर

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निशाने पर फ्री स्पीच और टॉलरेंस

इतना ही नहीं लेटर में कहा गया कि इस्तीफा देने के लिए मेहता को बाध्य करना इन सभी मूल्यों पर कुठाराघात की तरह से है। सार्वजनिक तौर पर कही गई बात को लेकर किसी स्कॉलर को दंडित किया जाता है तो फ्री स्पीच, टॉलरेंस और लोकतांत्रिक मूल्य भी निशाने पर आ जाते हैं। एकेडमिशियन्स का कहना है कि मेहता का मसला एक शर्मसार करने वाली घटना है।

जिन यूनिवर्सिटीज के एकेडमिशियन्स ने ओपन लेटर पर साइन किया है उसमें हार्वर्ड, होमी के. भाभा, अन्ने एफ. रॉथनबर्ग, यू.सी. बर्कले स्कूल ऑफ ला के डीन एर्विन केमिरिंसकी, पेंसिलवेनिया विवि के रोजर स्मिथ, क्रिस्टोफर एच. ब्राउन, मिलन वैश्नव, ऑक्सफोर्ड के केटे ओ. रीगन के साथ हार्वर्ड के डेनियल एलन के नाम शामिल हैं।

मेहता ने मंगलवार को इस्तीफा दिया था। इसके दो दिन बाद उनके समर्थन में पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने गुरुवार को अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने इस्तीफा देते वक्त कहा था कि विश्वविद्यालय अब अकादमिक स्वतंत्रता नहीं दे सकता। सुब्रमण्यम ने यह बात स्पष्ट की थी कि मेहता के जाने के चलते ही वे इस्तीफा दे रहे हैं।

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सुब्रमण्यम का वीसी को पत्र

अरविंद सुब्रमण्यम ने कुलपति को लिखे पत्र में भी कहा कि दो दिन पहले दिया गया प्रताप भानु मेहता का इस्तीफा दिखाता है कि ‘निजी ओहदे और निजी वित्त’ भी यूनिवर्सिटी में अकादमिक अभिव्यक्ति और स्वतंत्रता सुनिश्चित नहीं कर सकते। उन्होंने लिखा था, “मैं उस विस्तृत संदर्भ से वाकिफ हूं, जिसमें अशोका और इसके ट्रस्टियों को काम करना है और अब तक यूनिवर्सिटी ने इसे जैसे संभाला, मैं उसकी प्रशंसा करता हूं। हालांकि, उन्होंने आगे कहा, “मेहता जैसे निष्ठावान और प्रखर व्यक्ति, जो अशोका के विजन को पूरा करते थे, को इस तरह इसे छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।”

अशोका यूनिवर्सिटी विवाद: मेहता के समर्थन में हार्वर्ड, ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज जैसे संस्थानों के 150 बुद्धिजीवियों ने लिखा ओपन लेटर

इतना ही नहीं मेहता के साथ एकजुटता दिखाते हुए यूनिवर्सिटी के तकरीबन 90 फैकल्टी सदस्यों ने सार्वजनिक तौर पर प्रशासन से कहा कि मेहता को वापस यूनिवर्सिटी बुलाया जाए। इन सभी ने हस्ताक्षरित एक पत्र कुलपति मालबिका सरकार को भेजा है।

फैकल्टी सदस्यों ने अपने पत्र में कहा है, “प्रोफेसर मेहता के विश्वविद्यालय से जाने की आधिकारिक घोषणा से पहले प्रसारित मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह संभव है कि उनका इस्तीफा एक बुद्धिजीवी और सरकार के आलोचक के रूप में उनकी सार्वजनिक भूमिका का परिणाम था। हम इससे बहुत परेशान हैं। इससे भी अधिक परेशान करने वाली संभावना यह है कि हमारा विश्वविद्यालय शायद प्रोफेसर मेहता को हटाने के दबाव या आग्रह के सामने झुक गया हो और उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया हो।”

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छात्रों का विरोध-प्रदर्शन

उन्होंने आगे लिखा है, “हम विश्वविद्यालय से निवेदन करते हैं कि वे प्रोफेसर मेहता से उनका इस्तीफा रद्द करने के लिए कहें। साथ ही, हम यह भी अनुरोध करते हैं कि विश्वविद्यालय फैकल्टी की नियुक्ति और बर्खास्तगी के अपने आंतरिक प्रोटोकॉल को स्पष्ट करे और शैक्षणिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों के लिए अपनी संस्थागत प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करे।”

उल्लेखनीय है कि यूनिवर्सिटी कैंपस में छात्रों ने गुरुवार को मेहता के जाने के बारे में पारदर्शिता न बरतने को लेकर प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन किया था। छात्रों का कहना है कि मेहता को वापस लाया जाए। छात्रों ने कुलपति मालबिका सरकार के साथ हुई एक वर्चुअल टाउनहॉल मीटिंग में भी यह बात उठाई थी। हालांकि, वर्चुअल टाउनहॉल मीटिंग वीसी ने कहा कि ट्रस्टीज के तरफ से मेहता को इस्तीफे के लिए नहीं कहा गया। लेकिन वे संस्थापकों और मेहता के बीच हुई बातचीत से वाकिफ नहीं हैं।

मेहता का त्यागपत्र

आपको बता दें कि प्रतिष्ठित राजनीतिक विश्लेषक और टिप्पणीकार प्रताप भानु मेहता ने वीसी को भेजे गए त्यागपत्र में यह स्पष्ट किया था कि यूनिवर्सिटी प्रशासन उनके जुड़ाव को एक ‘राजनीतिक जवाबदेही’ (political liability) के रूप में देखता था। उन्होंने लिखा था, “स्वतंत्रता के संवैधानिक मूल्यों और सभी नागरिकों के लिए समान सम्मान देने का प्रयास करने वाली राजनीति के समर्थन में मेरा सार्वजनिक लेखन विश्वविद्यालय के लिए जोखिम भरा माना जाता है।”

उन्होंने आगे लिखा था, “यह साफ है कि मेरे लिए यह अशोका छोड़ने का समय है। एक उदार विश्वविद्यालय को फलने-फूलने के लिए उदारवादी राजनीतिक और सामाजिक संदर्भों की जरूरत होती है। मुझे उम्मीद है कि ऐसे माहौल को बचाने में यूनिवर्सिटी अपनी भूमिका निभाएगी। नीत्शे ने एक बार कहा था कि एक विश्वविद्यालय के लिए सच में जीना मुमकिन नहीं होता। आशा है कि यह सच न हो। लेकिन आज के माहौल के मद्देनजर संस्थापकों और प्रशासन को अशोका के मूल्यों के लिए नए सिरे से प्रतिबद्धता और अशोका की आजादी सुरक्षित रखने के लिए नए साहस की जरूरत होगी।”

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