चार दिनों से मणिपुर में क्यों बंद हैं टीवी चैनल और अखबार?

चार दिनों से मणिपुर में क्यों बंद हैं टीवी चैनल और अखबार?

भारत के पूर्वोत्तर के राज्य हिंदी मीडिया के लिए अंजान जगह हैं। शायद की कभी हिंदी के अखबारों और टीवी चैनलों पर यहां की आम खबरें जगह बना पाती हैं। यह कहने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि राजधानी दिल्ली की मीडिया मुख्यत: हिंदी बेल्ट की मीडिया है न कि भारत की। देखा जाए तो पूर्वोत्तर के मणिपुर में अखबारों के दफ्तरों और पत्रकारों पर हमले की घटनाएं कोई नई बात नहीं हैं। यह और बात है कि मुख्यधारा की मीडिया में इन खबरों को जगह नहीं मिल पाती।

ताजा घटनाक्रम ये है कि यहां पिछले करीब चार दिनों से अखबार और टेलीविजन चैनल बंद हैं। एक मीडिया हाउस पर हुए बम हमले के बाद यहां संपादक और पत्रकार घटना के विरोध में धरने पर है। इसलिए बीते चार दिनों से मणिपुर में न तो कोई अखबार छपा है और न ही टीवी चैनलों पर खबरों का प्रसारण हो रहा है।

मुख्यमंत्री एन। बीरेन सिंह ने बम हमले की जांच का जिम्मा चार-सदस्यीय विशेष कार्य बल (एसआईटी) को सौंपा है। लेकिन अभी तक इस मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। इस बीच, मणिपुर राज्य मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार से इस मामले में 25 फरवरी को रिपोर्ट मांगी है। वहीं, मीडिया से भी आयोग ने अपना आंदोलन वापस लेने का अनुरोध किया है।

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महिला हमलावर

राजधानी इंफाल स्थित मणिपुरी भाषा के प्रमुख अखबार पोक्नाफाम के दफ्तर पर एक महिला हमलावर ने रविवार को बम से हमला किया था। महिला ने अखबार के दफ्तर पर एक चीन-निर्मित ग्रेनेड फेंका था। हालांकि, वह फटा नहीं।

पुलिस का कहना है कि अगर वह ग्रेनेड फट गया होता को भारी तादाद में कर्मचारियों और वहां पहुंचने वाले लोगों की मौत हो सकती थी। किसी भी संगठन ने अब तक उक्त हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है। न ही अब तक पुलिस जांच में अब तक कोई ठोस सुराग मिल सका है। सीसीटीवी फुटेज में अखबार के दफ्तर के सामने रुककर एक मोटरसाइकिल सवार अकेली महिला को बम फेंकते हुए देखा गया है।

घटना के बाद से पत्रकार संगठनों की ओर से अपील की गई थी। इसके बाद से लामबंद होकर तमाम अखबार और संपादक हमलावरों की गिरफ्तारी की मांग में सोमवार से धरने पर बैठे हुए हैं।

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एसटीएफ करेगा जांच

मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने चौतरफा बढ़ते दबाव के बीच इस मामले की जांच एसटीएफ को सौंप दी है। विधानसभा में मुख्यमंत्री ने एक बयान में कहा, “यह मीडिया पर एक कायराना हमला था। मैं इसकी निंदा करता हूं। हमलावरों को शीघ्र गिरफ्तार कर लिया जाएगा।”

बीरेन सिंह ने मीडिया संगठनों से आम लोगों के हित में काम शुरू करने की भी अपील किया और कहा कि अखबारों को सुरक्षा मुहैया कराया जाएगा। देखा जाए तो मणिपुर में पत्रकारों और अखबारों पर हमले की घटनाएं कोई नई बात नहीं हैं।

इंफाल में कई अखबारों के दफ्तरों पर पहले भी हमले हो चुके हैं। और हमले के खिलाफ अखबारों और टेलीविजन चैनलों के संपादक व पत्रकार कई सप्ताह तक धरना भी दे चुके हैं। राजधानी से 32 अखबारों का प्रकाशन होता है जिनमें से ज्यादातर स्थानीय भाषा के हैं।

चार दिनों से मणिपुर में क्यों बंद हैं टीवी चैनल और अखबार?
पत्रकार मणिपुर में धरना प्रदर्शन करते हुए (फोटो क्रडिट- ट्वीटर भारतीय पत्रकार संघ)

बीते साल इससे पहले एक उग्रवादी संगठन की धमकी की वजह से राज्य में दो दिनों तक अखबार नहीं छपा था और न ही टीवी चैनलों पर कोई प्रसारण हुआ था। 25 और 26 नवंबर 2020 को कोई अखबार नहीं छपा।

मणिपुर प्रेस क्लब के सामने पत्रकारों ने इसके विरोध में धरना भी दिया था। इसी तरह साल 2013 में भी जब कुछ संगठनों ने अपने बयानों को बिना काट-छांट के छापने की धमकी दी थी। इसके बाद चार दिनों तक अखबारों का प्रकाशन बंद रहा था। उससे पहले 2010 में भी 10 दिनों तक अखबार नहीं छपे थे।

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मुख्यमंत्री को ज्ञापन

ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन और एडिटर्स गिल्ड ऑफ मणिपुर के बैनर तले अब ताजा हमले के बाद संपादकों और पत्रकारों ने हमलावरों की गिरफ्तारी, पत्रकारों और मीडिया घरानों को सुरक्षा मुहैया कराने समेत कई मांगों के समर्थन में धरना शुरू किया है। अपनी मांगों के समर्थन में इन संगठनों के एक साझा प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री से मिलकर एक ज्ञापन भी सौंपा है।

इस बीच, राज्य सरकार से मणिपुर राज्य मानवाधिकार आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष खैदम मानी ने इस मुद्दे पर 25 फरवरी तक अपनी रिपोर्ट देने को कहा है। उन्होंने मीडिया संगठनों से भी राज्य के आम लोगों के हित में काम शुरू करने की अपील किया है।

प्रदर्शनकारी संगठनों के एक प्रवक्ता ने कहा है कि आगे की रणनीति ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट्स और एडिटर्स गिल्ड ऑफ मणिपुर की साझा बैठक में तय की जाएगी। मणिपुर में उग्रवादी संगठनों की धमकियों के बीच जान हथेली पर लेकर काम करना पत्रकारों की नियति बन गई है।

उग्रवादी संगठनों का खौफ इस कदर है कि कोई भी संपादक या पत्रकार किसी संगठन का नाम नहीं लेना चाहता। एक वरिष्ठ पत्रकार नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि राज्य में पत्रकार दुधारी तलवार पर चल रहे हैं। यहां कभी उग्रवादी संगठन हमें धमकियां देते हैं तो कभी राज्य सरकार।

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