ऑटिज्म क्या है? ये लक्षण दिखे तो समझो आपका बच्चा है बीमार

ऑटिज्म क्या है? ये लक्षण दिखे तो समझो आपका बच्चा है बीमार

बीते कुछ समय से ऑटिज्म शब्द अधिक सुनाई दे रहा है। इससे पता चलता है लोग अब लोग इस बीमारी को लेकर जागरुक हो रहे हैं। मेडिकल की लैंग्वेज में ऑटिज्म (Autism) को ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (autism spectrum disorder) कहा जाता है। यह एक प्रकार का न्यूरोलॉजिकल और मानसिक विकास संबंधि विकार है। अब तक ये सामने आया है कि कि यह महिलाओं की तुलना में अधिक पुरुषों को प्रभावित करता है। जिन लोगों को आटिज्म होता है उन्हें ऑटिस्टिक ( autistic) कहलाते हैं। ऑटिज्म के रोगियों को अक्सर आम आदमी की तरह बातचीत करने में, पढ़ने-लिखने में और लोगों के मेलजोल करने में परेशनी आती है।

ऑटिज्म में इस बीमारी के पीड़ित व्यक्ति का दिमाग दूसरे समान्य लोगों के दिमाग की तुलना में अलग तरीके से काम करता है। वहीं, इससे पीड़ित लोग भी एक-दूसरे से अलग होते हैं। यानी इसका मतलब ये है कि ऑटिज्‍म के अलग-अलग मरीजों में अलग-अलग लक्षण देखने को मिल सकते हैं। हालांकि, अभी कत इस मर्ज के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। साथ ही साथ अभी तक इसका कोई कम्‍प्‍लीट इलाज ही सामने आया है।

ऐसा देखा गया है कि ऑटिज्म के मरीजों को नौकरी करने, परिवार और दोस्तों के साथ मेल-मिलाप करने में सक्षम होते हैं, पर उन्हें कई बार इशके लिए दूसरे लोगों की मदद की जरूरत पड़ती है। ऐसा भी देखा गया है कि कुछ मरीजों को पढ़ने-लिखने में दिक्कते आती हैं। लेकिन वहीं कुछ ऑटिज्‍म के मरीजों में ये भी देखा गया है कि वे पढ़ने-लिखनें काफी तेज होते हैं। इस तरह के मरीज परिवार, दोस्त या टीचर्स की मदद से नई स्किल्स सीखने में भी सक्षम होते हैं और बिना किसी सहारे के काम कर पाते हैं।

ऑटिज्म से संबंधित कुछ स्टडीज में ये भी सामने आया है कि रोगी को डायग्नोसिस और इंटरवेंशन ट्रीटमेंट सर्विसेज की जल्द मदद से सामाजिक व्यवहार और नई स्किल्स सीखने में काफी मदद मिलती है जिससे, वे अपना जीवन बेहतर तरीके से जी पाते हैं।

ऑटिस्टिक डिसऑर्डर के प्रकार

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ऑटिज्म के प्रकार में से ऑटिस्टिक डिसऑर्डर भी एक हैं जिसमें बच्चे को बात करने, भाषा संबंधी दूसरी दिक्कतें आती हैं। मरीजों में सीखने और दूसरों के साथ अपने विचार शेयर करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसे लोगों में अपना विचार शेयर करने की क्षमता कम होती या बिगड़ जाना शामिल है। अब सवाल उठता है कि ऑटिस्टिक डिसऑर्डर को कितने हिस्सों में बांटा जा सकता है। यह मुख्यत: तीन प्रकार का होता है- क्लासिक ऑटिज्म (Classic Autism), अस्पेर्गेर सिंड्रोम (Asperger) और पर्वेसिव डेवलपमेंट डिसऑर्डर (Pervasive Developmental Disorder)।

  1. क्लासिक ऑटिज्म (Classic Autism): यह ऑटिज्म का सबसे आम प्रकार है। जो लोग ऑटिज्‍म के इस डिसऑडर से प्रभावित होते हैं उन्‍हें सामाजिक व्यवहार में और अन्य लोगों से बातचीत करने में मुश्किलें होती हैं। साथ ही असामान्य चीज़ों में रूचि होना, असामान्य व्यवहार करना, बोतले समय अटकना, हकलाना या रूक-रूक कर बोलने जैसी आदतें भी ऑटिस्टिक डिसऑर्डर के लक्षण हो सकते हैं। वहीं, कुछ मामलों में बौद्धिक क्षमता में कमी भी देखी जाती है।
  2. अस्पेर्गेर सिंड्रोम (Asperger): इस सिंड्रोम को ऑटिस्टिक डिसऑडर का सबसे हल्का रूप माना जाता है। इस सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति कभी कभार अपने व्यवहार से भले ही अजीब लग सकते हैं लेकिन, कुछ खास विषयों में इनकी रूचि बहुत अधिक हो सकती है। हालांकि इन लोगों में मानसिक या सामाजिक व्यवहार से जुड़ी कोई समस्या नहीं होती है।
  3. पर्वेसिव डेवलपमेंट डिसऑर्डर (Pervasive Developmental Disorder): आमतौर पर इसे ऑटिज्म का प्रकार नहीं माना जाता है। कुछ विशेष स्थितियों में ही लोगों को इस डिसऑर्डर से पीड़ित माना जाता है।

ऑटिज्म के लक्षण (Symptoms of autism)

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आमतौर पर 12-18 महीनों की आयु में (या इससे पहले भी) इस बीमारी के लक्षण दिखते हैं जो सामान्‍य से लेकर गम्भीर हो सकते हैं। ये समस्याएं पूरे जीवनकाल तक रह सकती हैं। नवजात शिशु जब ऑटिज्‍म का शिकार होते हैं उनमें विकास के निम्‍न संकेत दिखाई नहीं देते हैं-

  • इक्का-दुक्का शब्द बार-बार बोलना या बड़बड़ाना।
  • किसी चीज़ की तरफ इशारा करना।
  • मां की आवाज़ सुनकर मुस्कुराना या उसे प्रतिक्रिया देना।
  • हाथों के बल चलकर दूसरों के पास जाना।
  • आंखों में आंखें मिलाकर ना देखना या आई-कॉन्टैक्ट नहीं बनाना।

ऑटिज्म प्रभावित बच्‍चों में लक्षण

  • दूसरे बच्चों से घुलने-मिलने से बचना।
  • अकेले-अकेले रहना।
  • खेल-कूद में हिस्सा न लेना या रूचि न दिखाना।
  • किसी एक जगह पर घंटों अकेले या चुपचाप बैठना।
  • किसी एक ही वस्तु पर ध्यान देना या कोई एक ही काम को बार-बार करना।
  • दूसरों से सम्पर्क नहीं करना।
  • अलग तरीके से बात करना जैसे- प्यास लगने पर ‘मुझे पानी पीना है’ कहने की बजाय ‘क्या तुम पानी पीओगे’ कहना।
  • दूसरे व्यक्ति के हर शब्द को बातचीत के दौरान दोहराना।
  • सनकी व्यवहार करना।
  • किसी भी एक काम या सामान के साथ पूरी तरह व्यस्त रहना।
  • खुद को चोट लगाना या नुकसान पहुंचाने के प्रयास करना।
  • गुस्सैल, बदहवास, बेचैन, अशांत और तोड़-फोड़ मचाने जैसा व्यवहार करना।
  • किसी काम को लगातार करते रहना जैसे- झूमना या ताली बजाना।
  • एक ही वाक्य लगातार दोहराते रहना।
  • दूसरे व्यक्तियों की भावनाओं, दुख-दर्द को महसूस नहीं कर पाना।
  • दूसरों की पसंद-नापसंद को न समझ पाना।
  • किसी खास तरह की आवाज़, स्वाद और गंध के प्रति अजीब प्रतिक्रिया देना।
  • पुरानी स्किल्स को भूल जाना।

ऑटिज्म के कारण और कारक (Causes and Factors of autism)

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ऑटिज्म के कारण (Causes of autism)

ऑटिज्‍म के अभी तक सही कारणों का पता नहीं चल सका है। हालांकि, विभिन्न स्टडीज में कहा गया गया है कि यह डिसऑर्डर कुछ अनुवांशिक और पर्यावरणीय कारणों से होता है। जो कि गर्भ में पल रहे बच्चे के दिमाग के विकास को बाधित करते हैं। जैसे-

  • दिमाग के विकास को नियंत्रित करने वाले जीन में कोई गड़बड़ी होना।
  • सेल्स और दिमाग के बीच सम्पर्क बनाने वाले जीन में गड़बड़ी होना।
  • गर्भावस्था में वायरल इंफेक्शन या हवा में फैले प्रदूषण कणों के सम्पर्क में आना।

ऑटिज्म के कारक (Factors of autism)

आइए देखते हैं ऑटिज्म का खतरा सबसे अधिक कैसे बच्चों में होता है-

  • ऐसे माता-पिता के बच्चे जिनका पहले से कोई बच्चा ऑटिज्‍म का शिकार हो।
  • समय से पहले पैदा होने वाले यानि प्रीमैच्योर बच्चे।
  • कम बर्थ वेट यानि जन्म के समय कम वजन के साथ पैदा होने वाले बच्‍चे।
  • उम्रदराज़ माता-पिता के बच्चे।
  • जेनेटिक/ क्रोमोसोमल कंडीशन जैसे- ट्यूबरस स्केलेरोसिस या फ्रेजाइल एक्स सिंड्रोम।
  • प्रेगनेंसी के दौरान खाई गईं कुछ दवाइयों का साइड-इफेक्ट।

ऑटिज्म से बचाव (Prevention of autism)

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चूंकि अध्ययनों में अभी तक ऑटिज्म के कारणों का सही तरीके से पता नहीं चल सका है, इसीलिए वर्तमान में इस डिसऑर्डर से बचाव के कोई कारगर उपाय भी उपलब्ध नहीं है। फिलहाल, ऑटिज्म के डायग्नोसिस या निदान के लिए कोई विशिष्ट टेस्ट नहीं है। आमतौर पर, अभिभावकों को बच्चे के व्यवहार और उनके विकास पर ध्यान देने के लिए कहा जाता है। ताकि, डिसऑर्डर का पता लगाने में मदद हो। विशेषज्ञों द्वारा मरीज की देखने, सुनने, बोलने और मोटर कॉर्डिनेशन की क्षमता का आंकलन किया जाता है। यदि बच्चे में निम्‍न प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं तो उसे ऑटिजम से पीड़ित माना जाता है-एक ही बात या एक्टिविटी को बार-बार करना। और अलग-अलग सामाजिक स्थितियों में लोगों के साथ बातचीत करने या सम्पर्क करने में दिक्कत आना।

दो साल की उम्र के आसपास बच्चों में आमतौर पर ऑटिज्म होने का पता चल जाता है। लेकिन, कुछ बच्चों में ये लक्षण जल्दी नहीं दिखते हैं। इसीलिए जब बच्चा स्कूल जाने लगता है या जब वह टीनेजर हो जाता है तब उसके ऑटिस्टिक होने का पता चलता है।

ऑटिज्म का उपचार (Autism treatment)

ऑटिज्म के लिए अभी तक कोई उपचार उपलब्ध नहीं है। हालांकि, स्टडीज़ में ऐसे संकेत दिए गए हैं जिसमें बचपन में ही इंटरवेंशनल ट्रीटमेंट सर्विसेज़ की मदद से ऑटिस्टिक बच्चों को पढ़ने-लिखने जैसी ज़रूरी स्किल्स सीखने में सहायता मिल सके। इसमें एजुकेशनल प्रोग्राम और बिहेवियरल थेरेपी के साथ-साथ ऐसे स्किल्‍स ओरिएंटेड ट्रेनिंग सेशन्स भी कराए जाते हैं जो बच्चों को बोलना, सामाजिक व्यवहार और सकारात्मक व्यवहार सीखने में मदद करते हैं।

चूंकि, हर व्यक्ति में ऑटिज्म के लक्षण अलग अलग होते हैं, इसलिए हर व्यक्ति को विशेष उपचार देने से ही बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। ऑटिज्म के मुख्य लक्षणों का इलाज करने में दवाइयां कारगार नहीं होती हैं। लेकिन वे बेचैनी, डिप्रेशन, सनकी और जुनूनी व्यवहार को कंट्रोल करने में मदद कर सकती हैं, जो आमतौर पर ऑटिज्‍म के मरीजों में देखी जाती है। ऑटिज्म के मरीजों को डॉक्‍टर्स निम्‍न दवाइयों के सेवन की सलाह भी दे सकते हैं-

  • एंटी-एंग्जायटी दवाइयां (बेचैनी वाले व्यवहार को कंट्रोल करने के लिए)।
  • चिड़चिड़ापन, गुस्सा और बार-बार एक जैसा व्यवहार दोहराने वगैरह से राहत के लिए एंटी-सायकोटिक दवाइयां दी जाती हैं।
  • अशांत और बेचेनी भरे व्यवहार से राहत के लिए सेंट्रल नर्वस सिस्टम स्टिमुलैंट्स दवा दी जाती हैं।
  • डिप्रेशन और बार-बार दोहरानेवाले व्यवहार से राहत के लिए एंटी-डिप्रेसेंट्स दवाएं प्रिस्क्राइव की जाती हैं।

ऑटिज्म में लाइफस्टाइल

ऑटिज्म क्या है? ये लक्षण दिखे तो समझो आपका बच्चा है बीमार

ऐसे बच्चे जो ऑटिज्म से पीड़ित हैं उनके लिए ये लाइफस्टाइल से जुड़े बदलाव मददगार साबित हो सकते हैं-

ऑटिज्म के शिकार लोगों के साथ हमारा व्यवहार

  1. बच्‍चों के साथ कम्‍युनिकेशन को आसान बनाएं। बच्‍चों के साथ धीरे-धीरे और साफ आवाज़ में बात करें। ऐसे शब्‍दों का प्रयोग करें जो समझने में आसान हो। बच्चे से बातचीत करते समय बार-बार बच्चे का नाम दोहराएं। ताकि बच्चा यह समझ सके कि आप उसी से बात कर रहे हैं। बच्चे को आपकी बात समझने और फिर उसका जवाब देने के लिए पर्याप्त समय लेने दें। बातचीत के दौरान हाथों से इशारे करें और तस्वीरों की मदद भी ले सकते हैं। आप किसी स्पीच थेरेपिस्ट की सहायता भी ले सकते हैं।
  2. ऑटिज्म वाले बच्चें अक्सर खाने-पीने से आनाकानी करते हैं और किसी विशेष रंग या प्रकार का ही भोजन खाते हैं। वे बहुत अधिक या बहुत कम मात्रा में भी खा सकते हैं। वहीं, उन्हें खाना खाते समय भोजन अटकने या खांसी की समस्याएं भी हो सकती हैं। ऐसे मामलों में अभिभावकों को अपने बच्चे के खाने-पीने से जुड़ी आदतें एक डायरी में लिख कर रखनी चाहिए। ताकि, वे बच्चे की समस्याओं को समझ सकें और उससे बचने के उपाय अपना सकें। इसी तरह बच्चे को अगर खाने में दिक्कत हो तो अपने डॉक्टर से बात करें।
  3. जब बच्चे को सोने में परेशानी हो तो पेरेंट्स किसी डायरी में बच्चे के सोने-जागने से जुड़ी आदतों के नोट्स बनाएं और समस्या को समझें। बच्चे का कमरा शांत और अंधेरे से भरा हो। बच्चे के सोने और जागने का समय निश्चित करें। जरूरत हो तो बच्चे को ईयरप्लग्स पहनने दें।
  4. कुछ बच्चों में भावनाओं को कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है और वे अक्सर रो पड़ते हैं। ऐसे बच्चों की मदद करने के लिए माता-पिता हर बार डायरी में उन बातों या घटनाओं के बारे में लिखें जिसके बाद बच्चे ने रोना शुरू किया हो। बच्चे के कमरे से भड़कीली बत्तियां और बल्ब हटा दें। बच्चे को मधुर और सूकूनभरा संगीत सुनने दें। बच्चे की दिनचर्या में किसी प्रकार के बदलाव करने से पहले उन्हें इसकी जानकारी दें।
  5. माता-पिता अपने बच्चों को साफ-सुथरा रहने का महत्व ज़रूर समझाएं। बच्चे को उनकी साफ-सफाई रखना सिखाएं और इसके लिए दिन में समय निश्चित करें।
  6. कुछ बच्चे बहुत भावुक और सवेंदनशील होते हैं। ऐसे बच्चे भीड़, शोर और तेज़ रोशनी से घबरा जाते हैं । ऐसे बच्चों के पेरेंट्स को ऐसी स्थितियों से बचने के लिए इन बातों का ध्यान रखना चाहिए। जैसे- अगर बच्चे को शोर से दिक्कत है तो उसे शोर कम करने वाले हेडफोन या इयरप्लग्स का इस्तेमाल करने दें। बच्चे से बातचीत करते समय उन्हें आपकी बात समझने के लिए समय दें। अगर, बच्चे फिर भी समझ ना पाएं तो माता-पिता दोबारा तेज़ आवाज़ में बोलें। अगर, बच्चा नयी जगह में सहज नहीं है तो अभिभावक उन्हें उन जगहों पर तब ले जाएं, जब वहां बहुत भीड़ ना हो या शांति हो। फिर, धीरे-धीरे वहां, बच्चे के रहने का समय बढ़ाते जाएं। जिससे, वे सहज हो जाएं। बच्चे की भावनाओं को संभालने के लिए उनके लिए शांत माहौल का निर्माण करें।

ऑटिज्म का परिणाम (Result of autism)

ऑटिज्म जीवनभर रहनेवाली एक समस्या है। ऐसे में बच्चे को हमेशा विशेष सहयोग और सपोर्ट की ज़रूरत पड़ सकती है। हालांकि, उम्र बढ़ने के साथ ऑटिज्म के लक्षण कम होने लगते हैं। जिससे, वह आगे चलकर सामान्‍य लोगों की तरह जीवन जी पाते हैं। इसलिए ऑटिस्टिक बच्चे के माता-पिता को बच्चे की बदलती ज़रूरतों के साथ तालमेल बिठाने के लिए तैयार रहना चाहिए।

नोट: यह एक सामान्य जानकारी है। यह लेख किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करना बेहतर है।


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