प्रेम का आयातित पर्व ‘वेलेन्टाइन डे’ जैसे-जैसे निकट आता जा रहा था, पप्पू जी के दिल का रोमांच दिन-दूनी और रात चौगुनी गति से बढ़ता जा रहा था। पप्पू जी के पिता जी दिल्ली के खेल विभाग में अधिकारी थे और फिलहाल कॉमनवेल्थ घोटाले की वजह से तिहाड़ जेल में कैद थे। उनकी मां एक नामी-गिरामी प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका थीं। दिल्ली के एक पॉश इलाके में उनकी अपनी कोठी थी। कोठी मिर्जापुर में भी थी जहां उनका पुश्तैनी निवास था। पप्पू जी अपने दादा-दादी के दुलारे थे, कुल के एकमात्र चिराग थे, इसलिए 12वीं तक की शिक्षा उन्होंने मिर्जापुर में ही पाई और इस दौरान पूरे लोफर बन गए। हिंदी के प्रसिद्ध लेखक पांडेय बेचन शर्मा उग्र भी मिर्जापुर की आबोहवा में पल-बढ़ कर लोफर बने थे। इससे लगता है कि लोफर बनने के लिए मिर्जापुर बड़ी ही मुफ़ीद जगह है।
बहरहाल, पप्पू जी गाहे-ब-गाहे दिल्ली आते रहते थे। कनाट प्लेस उनके घूमने की मनपसंद जगह थी। यहां के बाज़ारों में अति आधुनिक नवयुवतियों को देख कर उनका दिल बल्लियों उछलने लगता था, पर स्कूली पढ़ाई पूरी करने के लिए उन्हें फ़िर मिर्जापुर ही जाना पड़ता था। वैसे आधुनिकता की हवा के झोंके मिर्जापुर में भी आ चुके थए और जींस-टॉप पहनने वाली लड़कियां वहां भी सड़कों पर नज़र आने लगी थीं, पर कुछ भी हो मिर्जापुर था तो एक कस्बा ही, दिल्ली जैसा खुला माहौल वहां कहां? पप्पू जी ने मिर्जापुर में भी चोरी-छुपे कई गर्लफ्रेंड्स बना रखी थी। वहां भी वेलेन्टाइन डे मनाते थे, पर सिर्फ़ मोबाइल फोन पर ही प्रेम संदेशों का आदान-प्रदान करके ही। प्रेमिकाओं से खुलेआम मिल पाना संभव नहीं था। चोरी-छिपे मिल कर किसी को बांहों में भर भी लिया तो एक अनजाना भय रोमांस के सारे मजो को किरकिरा कर देता था। हां, वहां गांजा-भांग का नशा करने में कोई दिक्कत नहीं थी। यह काम खुलेआम करते थे। जब दिल्ली आते तो भांग का माजूम और गांजे की पुड़िया साथ लाना न भूलते। उनके कुछ गंजेड़ी साथी बजरंग दल के सदस्य थे। उन्होंने पप्पू जी को भी बजरंग दल का सदस्य बना दिया था। ये वेलेन्टाइन डे का खुला विरोध करते थे। पप्पू जी विरोध-प्रदर्शनों में शामिल तो होते थे, पर मोबाइल से अपनी प्रेमिकाओं को वेलेन्टाइन संदेश देना नहीं भूलते थे।
बहरहाल, पप्पू जी ने जब बारहवीं पास कर लिया तो उन्होंने कहा कि करियर के लिहाज से अब उनका दिल्ली के ही किसी कॉलेज में नाम लिखवाना ठीक रहेगा। मिर्जापुर में उच्च शिक्षा हासिल करने की सुविधा नहीं है। उनके पिता इस बात से सहमत हुए और उनका नामांकन दिल्ली यूनिवर्सिटी के किसी कॉलेज में करा दिया। किसी अच्छे कॉलेज में एडमिशन तो उन्हें मिला नहीं, क्योंकि बारहवीं में नंबर ही बहुत कम आए थे। किसी हिंदी ऑनर्स में एडमिशन मिला। पर पप्पू जी के लिए यह भी एक उपलब्धि थी। सबसे पहले कॉलेज आने-जाने के लिए उन्होंने एक बाइक खरीदवाई और कॉलेज में एडमिशन होने के पखवाड़े भर के भीतर ही चार-पांच लड़कियों से दोस्ती गांठ ली। गांजा-भांग का पर्याप्त स्टॉक लेकर आए थे। छुप-छुपाकर कॉलेज में दो-तीन बार सिगरेट में गांजा भर कर दम लगा लिया करते थे और कक्षा में जाने की जगह कैंटीन में जा बैठते थे। जिन लड़कियों से दोस्ती गांठी थी, उनमें से भी एक-दो कैंटीन में आ बैठतीं और फ़िर पप्पू जी समोसे-चाय का ऑर्डर देकर उनसे रंगीली-रसीली बातें शुरू कर देते।
मिर्जापुर की साहित्यिक आबोहवा का असर उन पर पड़ना स्वाभाविक था। उन्होंने रीतिकालीन कवियों के कुछ कवित्त, सवैये, दोहे आदि रट लिए थे और सस्वर उन्हें अपनी गर्लफ्रेंड्स के सामने पेश करते, उनका अर्थ बताते और उनकी व्याख्या करते-करते महर्षि वात्स्यायन कृत ‘कामसूत्र’ की चर्चा भी ले बैठते। ‘कामसूत्र’ की एक सचित्र प्रति बराबर वे अपने थैले में रखते और अपनी गर्लफ्रेंड्स को बताते कि साहित्यिक कृतियों में इसका सर्वश्रेष्ठ स्थान है और इसके अध्ययन के बिना साहित्य पढ़ना व्यर्थ है, पर इसे पढ़ने में सावधानी बरतनी पड़ती है, इसे गुप्त रूप से पढ़ना पड़ता है। किसी किताब के बीच इस किताब को छुपाओ और फिर इस महान कृति को पढ़ने का आनंद लो। जब उनकी एक गर्लफ्रेंड ने उनसे यह किताब पढ़ने को मांगी तो उन्होंने देने में आनाकानी की। उन्हें शक था कि वह गोपनीय रूप से इसे पढ़ पाएगी या नहीं। इस पर उस लड़की ने बेझिझझक कहा कि अरे, अपन ने तो मस्तराम को भी पढ़ रखा है, कोई कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। यूं ही बीए (हिंदी ऑनर्स) में दाखिला नहीं लिया है। उसके इस खुलेपन पर पप्पू जी चौंके। मस्तराम के साहित्य का उन्होंने भी पूर्ण गंभीरता के साथ व्यापक अध्ययन किया था। अभी तक उन्होंने इस बात की कल्पना नहीं की थी कि कोई लड़की भी उस साहित्य को पढ़ सकती है। पर यह सुन कर उनके रोमांच का कोई ठिकाना ही नहीं रहा कि उनके सामने बैठी लड़की ने मस्तराम के साहित्य का अध्ययन किया है और खुलेआम इस बात को कह भी रही है। उन्होंने सोचा कि इस बोल्ड लड़की को ‘कामसूत्र’ ग्रंथ दिया जा सकता है और यह लड़की उनकी सारी फैंटेसियों को वास्तविकता में बदल सकती है। उन्होंने अपने थैले से वह किताब निकाली और उसे दे दी। उस लड़की ने पप्पू जी से हाथ मिला कर और उनके गाल पर एक चुटकी काट कर धन्यवाद जैसा दिया। पप्पू जी ने चाय का फ़िर से ऑर्डर दिया और यह कह कर कि तुरंत आया, गांजे का दम लगाने के लिए कैंटीन के पीछे चले गए जहां कुछ झाड़ियां उग आई थीं। गांजे का दम लगा कर जब पप्पू जी कैंटीन में आए तो वह लड़की चाय की चुस्की ले रही थी। पप्पू जी ने यूं ही उसकी पीठ को सहला दिया और अपनी कुर्सी पर बैठ कर चाय पीने लगे। तभी उस लड़की ने कहा, “तुम्हें पता है, वेलेन्टाइन डे आने वाला है।”
“हां, आने वाला तो है। जब मैं मिर्जापुर में था तो मैसेज भेज कर वेलेन्टाइन डे मना लेता था। यहां पता नहीं, कैसे मनाते हैं?” पप्पू जी ने उत्सुकता भरे अंदाज में कहा।
“अरे, यहां तो पूरी मौज-मस्ती से जहां मर्जी हो, वहां वेलेन्टाइन डे मनाओ। चाहे पार्क में, चाहे किसी होटल में, कोई रोक-टोक नहीं। पार्कों में तो पुलिस की व्यवस्था रहती है, ताकि प्रेमी-प्रेमिकाओं को कोई तंग न करे। कोई चाहे तो वेलेन्टाइन डे होटल के बंद कमरे में मनाए। असली मजा तो वहीं आएगा। वो क्या कहते हैं, गीत है न…हम-तुम एक कमरे में बंद हों और चाबी खो जाए…।” लड़की ने यह कहते हुए एक आंख दबा दी।
यह सुन कर पप्पू जी मदहोश-से होने लगे। वेलेन्टाइन डे मनाने का यह खुला आमंत्रण। उन्होंने कहा, “तो क्या तुम मेरे साथ वेलेन्टाइन डे मनाओगी?”
“क्यों नहीं, आख़िर हम दोस्त हैं। जब चाहो, जहां चाहो, जैसे चाहो, मैं तुम्हारे साथ और सिर्फ़ तुम्हारे साथ ही वेलेन्टाइन डे मनाऊंगी। और सुनो, वेलेन्टाइन डे तो कल से ही शुरू हो रहा है।” लड़की ने मुस्कुराते हुए शरारती अंदाज़ में कहा। “कल से ही कैसे?” पप्पू जी ने आश्चर्य से पूछा। “अरे, वेलेन्टाइन डे पूरे एक हफ्ते का होता है। रोज़ डे, हग डे, किस डे, थैंक्स गिविंग डे और भी कई डे। पूरे हफ़्ते का मौज-मजा होता है। अब तो लड़कियां महंगे गिफ्ट के लालच में कइयों के साथ वेलेन्टाइन डे मना लेती हैं, पर मैं ऐसा नहीं करती। यह प्रेम का पर्व है और मौज-मस्ती चाहे जितने से कर लो, प्रेम तो किसी एक से ही कर सकते हैं, नहीं तो वेलेन्टाइन डे मनाने का मतलब ही क्या?” लड़की ने कहा।
इधर पप्पू जी के मन में लड्डू फूट रहे थे कि यह लड़की तो बंद कमरे में भी वेलेन्टाइन डे मनाने को तैयार है। यह बात अलग है कि इसे महंगी गिफ़्ट देनी पड़ेगी और साथ में अच्छा खर्च भी करना पड़ेगा। यह है दिल्ली में होने का मजा। खुला खेल फर्रूखाबादी। पप्पू जी कुर्सी पर बैठे-बैठे कल्पना की दुनिया में विचरण कर रहे थे कि लड़की ने कहा, “कल रोज़ डे है। मैं तुम्हें गुलाब भेंट करूंगी। बताओ, तुम्हें किस कलर का गुलाब पसंद है?” “जो तुम्हें पसंद हो। तुम्हारी पसंद ही अब मेरी पसंद है। हां तुम बता दो, तुम्हें किस कलर का रोज़ पसंद है?” पप्पू जी ने पूछा।
लड़की ने कहा, “जब तुम्हारी पंसद और हमारी पसंद एक हो गई तो पूछने का सवाल ही पैदा कहां होता है। गुलाब तो मैं आज ही खरीद लूंगी, कल तो बड़े महंगे मिलेंगे और पसंद के मिलें या न मिलें, कोई ठीक नहीं।”
“मैं भी आज ही खरीद लूंगा। अच्छा अब हम चलें। कल मिलेंगे। फोन पर तय कर लेंगे कि कहां और कब मिलना है।”
“ठीक है। चलो चलें।” कहते हुए लड़की ने पप्पू जी के हाथों को थाम लिया। दोनों हाथों में हाथ डाले कैंटीन के बाहर निकले। लड़की बस स्टैंड की तरफ जाने लगी।
पप्पू जी ने कहा, “चाहो तो मैं तुम्हें बाइक से ड्रॉप कर दूं।”
लड़की ने कहा, ”ठीक है। ” इधर पप्पू जी ने बाइक स्टार्ट किया और लड़की पीछे बैठ कर उनकी पीठ से चिपक गई। पप्पू जी के शरीर में मानो बिजली का करंट दौड़ने लगा। उन्होंने बाइक की रफ़्तार तेज़ कर दी। सड़क पर हर हिचकोले के साथ लड़की उनसे और जोर से चिपट जाती। पप्पू जी ने मन ही मन सोचा कि अभी तो यह ट्रेलर दिखा रही है। जब ट्रेलर ऐसी है तो फ़िल्म कितनी धांसू होगी। लड़की को उसकी गली के पास छोड़ कर पप्पू जी बाज़ार की तरफ़ निकले ताकि गुलाब खरीद सकें। फूलों की दुकानों पर लड़के-लड़कियों की भीड़ लगी थी। यहां तक कि स्कूलों के बच्चे भी दिखाई पड़ रहे थे। हर तरह के गुलाब थे। गुलाबी तो थे ही, काले, पीले, नीले, बैंगनी। सफ़ेद रंग के गुलाबों की भी कोई कमी नहीं थी। पप्पू जी ने एक दुकानदार से पूछा, “भाई, गुलाबों के क्या रेट लगाए?”
“जी, एक गुलाब डेढ़ सौ का। किसी भी कलर का ले जाओ।” “ये तो बड़े महंगे हैं। क्या कुछ कम नहीं लगाओगे?”
“महंगे? अजी, आज तो सस्ते हैं। कल दो-ढाई सौ से कम में भी एक गुलाब नहीं मिलेगा। फ़िर जो मिलेगा, इस क्वालिटी का नहीं होगा। कल दोपहर तक तो गुलाब ढूंढे नहीं मिलेगा। बस, एक दिन का कारोबार है जी। बोलो, किस कलर का गुलाब पैक करूं?” दुकानदार ने कहा।
पप्पू जी की समझ में नहीं आ रहा था कि किस कलर का गुलाब लें। उन्हें सभी कलर अच्छे लग रहे थे। उन्होंने सोचा कि एक गुलाब की जगह अगर आधा दर्जन गुलाब भेंट करूं तो लड़की पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा और कलर के चुनाव की झंझट भी नहीं रहेगी।
उन्होंने पूछा, “अगर आधा दर्जन गुलाब लूं तो किस भाव लगाओगे?”
दुकानदार ने कहा, “चलो, आधा दर्जन लेते हो तो सौ रुपए कम दे देना। पर इससे कम न होगा। गुलाब तो मेरे सारे बिकेंगे।”
पप्पू जी ने भीड़-भाड़ देख कर ज्यादा मोल-भाव करना ठीक नहीं समझा और कहा, “सभी कलर के अच्छे गुलाब छह पैक कर दो।”
दुकानदार ने गुलाब पैक कर दिए और उसे पैसे चुका कर पप्पू जी ने घर की तरफ़ फर्राटा मार दिया। घर पहुंचे तो मम्मी अभी स्कूल से नहीं आई थी। इकलौती बहन तन्वी भी नहीं थी। तन्वी बारहवीं में पढ़ती थी और साथ ही मेडिकल एंट्रेंस की तैयारी कर रही थी। वह पढ़ने में बहुत तेज थी और सभी कक्षाओं में अव्वल दर्जे में रही थी। पप्पू जी ने घर पहुंचते ही गुलाब का पैकेट फ्रिज में रख दिया ताकि उसकी ताजगी बनी रहे। इसके बाद उन्होंने अपने गुप्त थैले से एक माजूम निकाला और उसे पानी से गटक कर नौकर को चाय बनाने का आदेश दिया। पांच मिनट के भीतर नौकर चाय लेकर हाज़िर हुआ। पप्पू जी वेलेन्टाइन डे की कल्पनाओं में लीन धीरे-धीरे चाय की चुस्कियां लेने लगे। माजूम का नशा भी धीरे-धीरे उन पर छाने लगा था। तभी तन्वी भी आ गई। आते ही उसने अपने थैले से पैक किया हुआ एक लाल गुलाब निकाला और उसे फ्रिज में रख दिया। तन्वी के हाथों में गुलाब देख कर पप्पू जी का माथा ठनका। उन्होंने पूछा, “गुलाब लेकर कैसे आई?” तन्वी ने कहा, “भैया, वेलेन्टाइन डे आ रहा है न। कल रोज़ डे है। मैं अपने दोस्त को गुलाब भेंट करूंगी।”
यह सुनते ही पप्पू जी के माथे पर बल पड़ गए। उन्होंने गुस्से में कहा, “तो तू वेलेन्टाइन डे मनाएगी? क्या तुझे यह पता नहीं कि यह भारतीय संस्कृति के खिलाफ़ है। यह पश्चिमी संस्कृति का हमला है। मैं वेलेन्टाइन डे का सख़्त विरोधी हूं और मेरी बहन ही वेलेन्टाइन डे मनाएगी! हद हो गई। पता नहीं, इस समाज का अब क्या होगा? लड़कियों ने लाज-शर्म सब छोड़ दी। सुन तन्वी, क्या तुझे पता नहीं कि जब मैं मिर्जापुर में था तो बंजरंग दल में इसीलिए शामिल हुआ था कि लड़के-लड़कियों के चरित्र को भ्रष्ट बनाने वाली इस विदेशी संस्कृति का विरोध करूं। हमने हर साल वहां वेलेन्टाइन डे के विरोध में सड़कों पर प्रदर्शन किए थे, जुलूस निकाले थे और पुलिस की लाठियां भी खाई थीं। यहां अपने कॉलेज में वेलेन्टाइन डे जैसी गंदी चीज़ का विरोध करने के लिए मैं बजरंग दल में शामिल हो चुका हूं। 14 फरवरी को हम वेलेन्टाइन डे का विरोध करने के लिए जान की बाजी लगाने जा रहे हैं और तू मेरी बहन होकर वेलेन्टाइन डे मनाएगी? यह मेरे लिए बड़े ही शर्म की बात होगी। सुन, तू वेलेन्टाइन डे नहीं मनाएगी। किसी को गुलाब भेंट नहीं करेगी। तू पूरे हफ़्ते घर से बाहर नहीं निकलेगी।”
इस बीच हाथ-मुंह धो कर तन्वी ने कहा, “भैया, मैं तो वेलेन्टाइन डे मनाऊंगी। पहले भी मनाती थी। इस बार भी मनाऊंगी। मेरी सभी सहेलियां मना रही हैं तो मैं क्यों न मनाऊं? रही गंदगी की बात तो जो गंदे कैरेक्टर के हैं, वे वेलेन्टाइन डे मनाएं या नहीं, गंदे काम करते हैं और जिनका कैरेक्टर ठीक है, वे वेलेन्टाइन डे मना कर भी कोई गंदा काम नहीं करते। जहां तक भारतीय संस्कृति की बात है, आज तो ग्लोबल संस्कृति की बात चल रही है। भारतीय संस्कृति में ऐसी कितनी ही बातें हैं जो शर्मनाक हैं।”
यह सुन कर पप्पू जी का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। गुस्से में जोर-जोर से बोलने लगे, “तू मुझे पाठ पढ़ाएगी। अब मुझे तुझसे सीखने की जरूरत है। भूल मत, मैं तुमसे बड़ा हूं और मैं जो कहूंगा, तुझे करना होगा। मेरे यहां रहते तू वेलेन्टाइन डे नहीं मना सकती।”
“क्यों नहीं मना सकती? क्या मैं कोई गलत काम करने जा रही हूं? और जहां तक बजरंग दल में शामिल हो कर आपने इसका विरोध किया था तो उन बजरंगियों को भी मैं जानती हूं। क्या मुझे यह नहीं पता कि एक तरफ आप वेलेन्टाइन डे के विरोध में जुलूस निकालते थे और शाम होते ही लड़कियों को मैसेज करते थे। ” तन्वी गुस्से में बोली।
अभी पप्पू जी इसके जवाब में कुछ बोलते कि उनकी मम्मी आ गई। उन्होंने घर के दरवाजे पर पहुंचते ही सुन लिया था कि भाई-बहन के बीच किसी बात पर तू-तू, मैं-मैं हो रही है। आते ही उन्होंने पूछा, “क्या बात है तन्वी? किस बात पर झगड़ा हो रहा है?”
तन्वी कुछ बोलती कि पहले ही पप्पू जी गुस्से में बोल पड़े, “मम्मी, आप लोगों ने तन्वी को पूरा बिगाड़ कर रख छोड़ा है। यह वेलेन्टाइन डे मनाएगी। गुलाब का फूल खरीद कर लाई है। आप जानती हैं कि वेलेन्टाइन डे भारतीय संस्कृति के खिलाफ़ है। इसकी आड़ में बदमाश लड़के भोली-भाली लड़कियों को फांस कर उनके साथ न जाने क्या-क्या करते हैं। बड़ी गंदी चीज़ है यह। मैं तो इसका कट्टर विरोधी हूं। बजरंगी हूं मैं। यहां भी मैं बजरंग दल में शामिल हो कर इसका विरोध करूंगा। यही बात इसको समझा रहा था, पर यह समझने को तैयार नहीं है। कहती है कि मैं वेलेन्टाइन डे मनाऊंगी ही और मुझे भी उलटा-सीधा कह रही है।”
मम्मी ने कहा, “हां, है तो विदेशी संस्कृति की चीज़ ही, पर अब इतनी फैल चुकी है कि इसे रोक पाना संभव नहीं लगता। स्कूलों के छोटे-छोटे बच्चे भी वेलेन्टाइन डे मना रहे हैं। गिफ़्ट खरीदने के लिए मां-बाप से पैसे मांगते हैं और उन्हें भी बच्चों की खुशी के लिए देना ही पड़ता है। तुम्हारा कहना भी ठीक है कि इसके बहाने कुछ लोफर किस्म के लड़के भोली-भाली लड़कियों को बहका कर उनके साथ बदसलूकी करते हैं। पर तन्वी के बारे में तुझे चिंता करने की जरूरत नहीं है। यह समझदार लड़की है। मुझे इस पर पूरा भरोसा है। यह सिर्फ़ अपने एक दोस्त को गुलाब भेंट करेगी। सीधा-सादा लड़का है, मैं उसे जानती हूं।”
इस पर पप्पू जी ने कहा, “मम्मी, आप भी तन्वी की ही तरफ़दारी करने लगीं। क्या आपको पता नहीं कि वेलेन्टाइन डे के नाम पर आवारा लड़के कैसे-कैसे गुल खिलाते हैं। अब वेलेन्टाइन डे के नाम पर किस डे, हग डे भी मनाया जाता है। इसका क्या मतलब है? यह तो लड़कियों को चरित्र-भ्रष्ट करने का मामला है। मैं तो वेलेन्टाइन हफ़्ते में तन्वी को घर से निकलने नहीं दूंगा। इसके लिए चाहे जो हो।”
मम्मी ने कहा, “बेटे, तुम्हारी बातों से मुझे इनकार नहीं है। पर तन्वी किस डे और हग डे नहीं मनाती। यह तो सिर्फ़ रोज़ डे मनाती है। इसके लिए तू रोकेगा तो इसे रंज होगा। मैं भी इन बुराइयों के खिलाफ़ हूं।” इस पर पप्पू जी कुछ नरम पड़े और बोले, “अगर मामला सिर्फ़ गुलाब भेंट करने का है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं, पर बात इससे आगे नहीं बढ़नी चाहिए।”
इसी बीच, तन्वी फ्रिज से कुछ सामान निकालने गई तो उसकी नज़र एक पैकेट पर पड़ी। उसने बाहर निकाल कर देखा तो उसमें गुलाब के फूल पैक नज़र आ रहे थे। वह समझ गई कि भैया ने ये फूल किसी को भेंट करने को लाए हैं। उसे बहुत ही गुस्सा आया। मैं किसी को एक गुलाब भेंट करूं तो उस पर आफत और इन्होंने आधा दर्जन गुलाब खरीद रखे हैं, यानी आधा दर्जन लड़कियों को फांसेंगे और बातें भारतीय संस्कृति की कर रहे हैं। यह है इनका दोहरा चरित्र। सारे मर्दों के साथ यही बीमारी है। ख़ुद तो अपना बहनों-बेटियों को सात पर्दों के भीतर रखना चाहते हैं और ख़ुद अनेक लड़कियों को साथ गुलछर्रे उड़ाना चाहते हैं। गुस्से से तन्वी तिलमिला गई। वह आधा दर्जन गुलाबों के उस पैकेट को लेकर वहां पहुंची जहां भैया और मम्मी के बीच बातें चल रही थीं। उसने गुलाबों का पैकेट मम्मी के हाथों में देते हुए कहा, “ये गुलाब कौन लाया है? भैया, ये गुलाब क्या आप लाए हैं? वेलेन्टाइन डे पर आधा दर्जन लड़कियों को गुलाब भेंट करेंगे? अभी तो आप वेलेन्टाइन डे को बहुत ही गंदी चीज़ बता रहे थे। इसके खिलाफ़ प्रदर्शन करने की बात कर रहे थे। फिर ये गुलाब…? आप तो किस डे और हग डे भी मनाएंगे। आप पुरुष हैं, इसलिए स्वतंत्र हैं। जो जी में आए, वो करें। पर जिन लड़कियों के साथ आप वेलेन्टाइन डे मनाएंगे, वे भी तो किसी न किसी की बहन और बेटी होंगी। क्या आप यह भूल गए? क्या भारतीय संस्कृति में यही दोहरापन सिखाया जाता है? मैं जानती हूं, वेलेन्टाइन डे का विरोध करने वाले सारे बजरंगी दोहरे चरित्र वाले हैं। एक तरफ वे इसका विरोध करते हैं, पर चोरी-छुपे वेलेन्टाइन डे की आड़ में लड़कियों के साथ ग़लत काम करने में आगे भी वे ही होते हैं। क्या इसका कोई जवाब है आपके पास?”
तन्वी की बातें सुन कर पप्पू जी को मानो काठ मार गया था। मम्मी भी चुप थीं। पप्पू जी उन क्षणों को कोस रहे थे जब गुलाब का पैकेट उन्होंने फ्रिज मे रखा था। अपने बैग में ही रखते तो इस मौसम में वो मुर्झाते नहीं। पर अब तो वे रंगे हाथों पकड़े गए थे। फ़िर भी वे चुप नहीं रहे। उन्होंने कहा, “मैं लड़का हूं और तू लड़की है। लड़की के लिए सबसे बड़ा धन उसकी इज्जत होती है। इसे संभाल कर रखना पड़ता है। यह इज्जत खतरे में नहीं पड़नी चाहिए। इसलिए मैं तुझे समझा रहा था।” तन्वी ने कहा, “इज्जत क्या होती है, मैं भी जानती हूं और यही नहीं, इसकी रक्षा करना भी जानती हूं। पर इज्जत के इस बेमानी सवाल ने ही औरतों को गुलाम बना रखा है। मर्द सिर्फ़ अपने घरों की लड़कियों-औरतों की इज्जत की फ़िक्र करते हैं। बाकी लड़कियों को अपनी अय्याशी का साधन मानते हैं। यही डबल स्टैंडर्ड आज समाज को गारत में लिए जा रहा है।” इस बार पप्पू जी निरुत्तर ही रहे। साथ ही, उन्होंने वहां से उठ कर चलने में ही अपना भलाई समझी।
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