संयुक्त किसान (एसकेएम) मोर्चा ने सोमवार को सदन में दिए गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण के दौरान ‘आंदोलनजीवी’ बयान पर रोष प्रकट किया है। उन्होंने कहा है कि प्रधानमंत्री द्वारा किसानों के किए गए अपमान से वह बेहद आहत है और उसकी कड़े शब्दों में निंदा की। किसान संगठनों के समूह ने कहा कि ‘आंदोलनों’ के कारण भारत को औपनिवेशिक शासन से आजादी मिली और उन्हें गर्व है कि वे ‘आंदोलनजीवी’ हैं।
दरअसल, मोदी ने सोमवार को विदेशों से आंदोलन को प्रभावित करने के प्रयासों का जिक्र करते हुए उन्हें ‘विदेशी विध्वंसक विचारधारा’ (एफडीआई) करार दिया और कहा कि देश में आंदोलनकारियों की ‘नई नस्ल’ पैदा हो गई है जो बिना किसी हंगामे के नहीं रह सकती।
इसपर एसकेएम ने कहा, “किसान प्रधानमंत्री को याद दिलाना चाहेंगे कि वे आंदोलनजीवी ही थे जिन्होंने भारत को औपनिवेशिक शासकों से मुक्त करवाया था और इसीलिए हमें आंदोलनजीवी होने पर गर्व भी है। भाजपा और उसके पूर्ववर्तियों ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन नहीं किया और वे हमेशा आंदोलनों के खिलाफ रहे। वे अब भी जन आंदोलनों से डरे हुए हैं।”
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उन्होंने आगे कहा, “सरकार अगर किसानों की वैध मांगों को मान लेती है तो किसानों को अपने खेतों में लौटने में खुशी होगी और सरकार के अड़ियल रवैये के कारण ज्यादा ‘आंदोलन-जीवी’ पैदा हो रहे हैं।”
संगठन ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “एमएसपी पर खाली बयानों से किसानों को किसी भी तरह से फायदा नहीं होगा और अतीत में भी इस तरह के अर्थहीन बयान दिए गए थे। किसानों को वास्तविकता में और समान रूप से टिकाऊ तरीके से तभी लाभ होगा जब सभी फसलों के लिए एमएसपी को ख़रीद समेत कानूनी गारंटी दी जाती है।”
उन्होंने आगे कहा, “हम सभी तरह के एफडीआई का विरोध करते हैं। पीएम का एफडीआई दृष्टिकोण भी खतरनाक है, यहां तक कि हम खुद को किसी भी एफडीआई ‘विदेशी विनाशकारी विचारधारा’ से दूर करते हैं। हालांकि, एसकेएम रचनात्मक लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के साथ खड़ा है जो दुनिया में कहीं भी बुनियादी मानवाधिकारों को बनाए रखते हैं और पूरी दुनिया में सभी न्यायसंगत विचारधारा वाले नागरिकों से समान पारस्परिकता की अपेक्षा करते हैं क्योंकि कहीं भी हो रहा अन्याय हर जगह के न्याय के लिए खतरा है।”
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मोर्चा ने कहा कि हम इस तथ्य पर सवाल उठाते हैं कि सरकार किसान संगठनों को ड्राफ्ट बिल वापस लेने का आश्वासन देने के बावजूद विद्युत संशोधन विधेयक संसद में पेश कर रही है। नेताओं ने कहा कि हम लोगों की आवाज को दबाने के प्रयासों का कड़ा विरोध करते हैं।
साथ ही नेताओं ने कहा, “उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश में किसान महापंचायतों द्वारा दिए गए विशाल समर्थन से दिल्ली के धरनों पर बैठे किसानों में उत्साह बढ़ा है। आने वाले दिनों में इन महापंचायतों से किसान दिल्ली धरनों में शामिल होंगे।”
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