जल्द आएगा कोरोना की तीसरी लहर, वैक्सीन आने से पहले हो सकते हैं बुरे हालात: WHO

जल्द आएगा कोरोना की तीसरी लहर, वैक्सीन आने से पहले हो सकते हैं बुरे हालात: WHO

जेनेवा: विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पूरे विश्व को खासकर यूरोपीय देशों को खबरदार किया है कि अगर समय रहते नहीं सुधरे तो कोरोना वायरस की तीसरी लहर फैलने की प्रबल आशंका है। डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि यूरोपीय देशों ने पर्याप्‍त उपाय नहीं किए गए, जिसके कारण यूरोपीय देशों में कोविड-19 की दूसरी लहर आई है। डब्ल्यूएचओ ने फटकार लगाते हुए यूरोप को कहा कि गर्मियों में हालात बेहतर होने के बावजूद कई देशों ने लापरवाही दिखाई और अब उन्हें और भी घातक तीसरी लहर का सामना करना पड़ सकता है।

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, संक्रमण की दर बढ़ रही है। बीते शनिवार को जर्मनी और फ्रांस में संयुक्‍त रूप से 33 हजार नए मामले सामने आए। वहीं स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रिया में भी रोजाना हजारों केस सामने आ रहे हैं। ईरान में रविवार को 13 हजार से ज्यादा मामले सामने आए। इससे भी ज्यादा परेशानी की बात यह है कि इसी दौरान 475 लोगों की मौत हो गई। सरकार का कहना है कि उसने अपनी तरफ से सख्त उपाय किए हैं, लेकिन लोगों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।

घातक होगी तीसरी लहर

स्विट्जरलैंड के अखबार सोलोथुर्नर साइटुंग से विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेष दूत डेविड नाबारो ने कहा कि जिस तरह के हालात चल रहे हैं, बहुत मुमकिन है कि 2021 की शुरुआत में यूरोप को महामारी की घातक तीसरी लहर का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, इस वक्त सबकी उम्मीदें वैक्सीन पर टिकी हैं। सभी को लगता है कि वैक्सीन आने पर इस बीमारी से निजात पा लिया जाएगा। लेकिन नाबारो के अनुसार, यूरोप को वैक्सीन के बाजार में आने से पहले ही शायद काफी बुरे हालात देखने होंगे। डेविड नाबरो ने लोगों से मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का सख्ती से पालन करने का आग्रह किया है।

अखबार से बातचीत में नबारो ने कहा, “गर्मियों में जब पहली लहर काबू में आ गई थी, तब वे आवश्यक बुनियादी ढांचे का निर्माण करने से चूक गए। अब हमारे सामने दूसरी लहर है। अगर अब भी वे जरूरी बुनियादी ढांचा खड़ा नहीं करते हैं, तो अगले साल की शुरुआत में हमारे पास तीसरी लहर होगी।”

एशियाई देशों से सीखने की जरूरत

डेविड नाबरो ने सवाल करते हुए कहा, ” क्‍या रिसॉर्ट खोलने का वक्‍त आ गया है? क्‍या शर्तों के साथ रिसॉर्ट खोले गए हैं?” इसके साथ ही उन्‍होंने एशियाई देशों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि यूरोप को एशियाई देशों से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। उन्‍होंने कहा, “यूरापीय देशों की तुलना में एशियाई मुल्‍कों ने समय से पहले प्रतिबंधों में ढील नहीं दी। एशियाई मुल्‍कों ने इस तरह का उपबंध किया है कि कोरोना वायरस का प्रसार मंद हुआ। वह बीमार होने पर दूरी बना कर रखते हैं। मास्‍क पहनते हैं। हाथों को धोते हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “वायरस से निपटने के लिए जल्द और ठोस फैसले लेने होते हैं। खास कर शुरुआत में, जब वायरस लोगों के बीच धीरे-धीरे फैल रहा होता है। अगर आप आधे-अधूरे से फैसले लेंगे, तो समस्या बहुत जल्दी ही बिगड़ जाएगी।” नोबरो ने दक्षिण कोरिया द्वारा उठाए गए कदमों की भी खूब सराहना की।

नेताओं की समझ से परे

नबारो का ये भी कहना है कि वायरस को लेकर नेताओ की समझ ‘समझ’ से परे है। उन्होंने कहा, “एक बड़ी समस्या यह रही कि बहुत से नेताओं को तो यह समझ में ही नहीं आया कि वायरस ‘एक्स्पोनेंशियली’ फैलता है, ‘अरिथमैटिकली’ नहीं, ‘एक्स्पोनेंशियल’ का मतलब होता है कि संख्या एक सप्ताह में आठ गुना बढ़ सकती है, दो हफ्तों में यह 40 गुना हो सकती है और तीन हफ्तों में 300 गुना, फिर चार हफ्तों में शायद 1000 गुना से भी ज्यादा और इसी तरह यह बढ़ती रहेगी।”

उन्होंने आगे कहा, ” इस बीच एशिया के देशों में संख्या अपेक्षाकृत रूप से कम है क्योंकि लोग पूरी तरह से वायरस के फैलाव को रोकने में लगे हुए हैं…वे दूरी बना कर रखते हैं, मास्क पहनते हैं, बीमार होने पर अलग-थलग रहते हैं, हाथ और सतह साफ करते रहते हैं, जिन लोगों को सबसे ज्यादा खतरा है उन पर विशेष ध्यान देते हैं।”

नाबारो ने देश में लॉकडाउन हटाने को लेकर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, “एशिया ने समय से पहले प्रतिबंधों में ढील नहीं दी, उन्होंने संख्या कम होने का इंतजार किया, जबकि यूरोप ने जल्दबाजी दिखाई और अधूरे फैसले लिए। यूरोपीय देशों को एशिया का यह संदेश समझना चाहिए कि अगर हम चाहते हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत हो और हमारी स्वतंत्रता भी बनी रहे, तो हमें कुछ बुनियादी नियमों का पालन करना ही होगा।”

उनका कहना है कि एक बार संक्रमण की दर बढ़ने के बाद उस पर काबू पाना काफी कठिन हो जाता है। गौरतलब है कि दुनियाभर में अब तक 5.89 करोड़ से ज्यादा लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 4.07 करोड़ लोग ठीक हो चुके हैं, जबकि 13.93 लाख लोगों की जान जा चुकी है। हालांकि, अब भी 1.68 करोड़ मरीज ऐसे हैं जिनका इलाज चल रहा है।

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